रायपुर: छत्तीसगढ़ में एक ब्राह्मण कुमार की नौकरी बहाली की याचना सुर्ख़ियों में है। ब्राह्मण कुमार एक सरकारी महकमे के चर्चित अधिकारी बताये जाते है, पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में भूपे राज की ब्राह्मण विरोधी लहर की चपेट में आये इस सरकारी सेवक को बगैर किसी ठोस प्रमाणों के तत्कालीन मुख्यमंत्री बघेल और उनकी प्रधान राज सेविका, उपसचिव सौम्या चौरसिया का कोपभाजन बनना पड़ा था।

राजनैतिक दंपति ने इस ब्राह्मण कुमार को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर प्रताड़ित करने के फरमान जारी किये थे। बताते है कि करीब 2 सालों से ब्राह्मण कुमार अपनी नौकरी बहाली के लिए हाथ पैर मार रहे है, लेकिन बीजेपी राज में भी उन्हें कामयाबी नहीं मिल पाई है। नौकरी बहाली के पर्याप्त आधारों के बावजूद सुध नहीं लेने से थक-हार कर अब पीड़ित ने बीजेपी सरकार की मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व वाली राजपीठ से न्याय की गुहार लगाई है। सत्संगी ब्राह्मण कुमार की बहाली याचना रोचक बताई जा रही है, इसमें राहत का पैगाम ‘सनातनी’ अंदाज ए बयां, कहा जा रहा है।

दरअसल, सरकारी महकमों में नौकरशाहों और कर्मियों द्वारा सरकारी कार्य के संपादन के लिए विशेष कार्यालीन भाषा का उपयोग किया जाता है। सरकारी सेवक कभी छुट्टी तो कभी अन्य कार्यों के लिए इसी कार्यालीन भाषा का इस्तेमाल कर पत्राचार करते है। आमतौर पर ये आवेदन एक खास शैली में लिखे जाते है। लेकिन जब शासन प्रशासन ही पीड़ित की सुध नहीं ले रहा हो तब इंसाफ का अलख जलाने के लिए सत्संगी ब्राह्मण ने खुद मोर्चा संभल लिया है। यह पहला मौका है, जब प्रदेश में किसी सरकारी सेवक ने अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए सनातनी शैली में ना केवल अपना आवेदन पेश किया है, बल्कि छत्तीसगढ़ शासन को अपनी मनोदशा से भी अवगत कराया है।

पीड़ित ब्राह्मण कुमार अपनी खास कार्यशैली के लिए सरकारी मशीनरी से लेकर राजनैतिक गलियारों तक जाने-पहचाने जाते है। उनकी नेतृत्वशीलता, कार्यशैली और सक्रियता से सरकारी महकमे की रचनात्मक गतिविधियां भी जोरो पर रहती है। बताते है कि पिछले 2 सालों से निलंबित चल रहे ब्राह्मण कुमार इन दिनों अपनी नौकरी बहाली को लेकर दो-चार हो रहे है। उनका अंदाज ए बयां ही उनकी पीड़ा को जाहिर कर रहा है। पीड़ित ब्राह्मण कुमार के नौकरी बहाली आवेदन को मंत्रालय से लेकर राजनैतिक गलियारों में सनातनी गुहार के रूप में देखा जा रहा है। नौकरी बहाली का ऐसा आवेदन-निवेदन पहली बार लोगों के सामने आया है, इसकी चर्चा भी खूब हो रही है।

बताते है कि ब्राह्मण कुमार ने निलंबन अवधि में अपनी आजीविका के लिए आध्यात्मिक पीठ का दामन थाम लिया था। लेकिन अब उन्हें अपनी नौकरी की चिंता सता रही है, दुष्टो ने उनके खिलाफ दुष्प्रचार छेड़ कर परेशान करने का मंसूबा दिखाया था। लेकिन अब दुष्टो की टोली जेल में और पीड़ित बेल में सामने आ कर इंसाफ की गुहार लगा रहे है। ऐसे पीड़ितों में इस ब्राह्मण कुमार का नाम भी लिया जा रहा है। सरकारी नौकरी से नाता टूटने पर ब्राह्मण कुमार ने प्रसिद्ध साधु-संतों और शंकराचार्य की शरण में ही जाना मुनासिफ समझा था। उन्होंने जीवन के इस संघर्ष को इन दिनों आध्यात्मिक जीवन शैली की ओर मोड़ दिया है, लेकिन स्वाभिमान पर लगी ठेस, इस सत्संगी ब्राह्मण को भुलाये नहीं भूल रही है।

मंदिरों से लेकर महाकुम्भ तक उनकी स्वर लहरियाँ गूंजती है। कभी मॉडिवेटर के रूप में तो कभी सत्संगी आचार्य के रूप में उनके व्याख्यान चर्चा में बने रहते है। ब्राह्मण कुमार की फैंस फॉलोइंग भी लंबी चौड़ी बताई जाती है। इसमें नेता-मंत्री से लेकर आम भक्त शुमार है, कांग्रेसी भक्तों की भी फैंस फॉलोइंग में कोई कोई कमी नहीं है। बावजूद इसके एक दौर में चर्चित सरकारी सेवक ब्राह्मण कुमार इन दिनों अपनी नौकरी बहाली को लेकर हैरान-परेशान दिखाई दे रहे है।

उनमे सत्संगी रंग नजर आने लगा है। इसी तर्ज पर ब्राह्मण कुमार का नौकरी बहाली आवेदन भी दिखाई दे रहा है, “मेरी शक्ति नहीं थकी है, ना उद्यम से माना हूं हार। हुवा चूर पुरुषार्थ गर्व का, अनिल, सौम्या कहती पुकार ” शक्तिमान, हो, शक्तिरस्रोत हो, करुणामय हो परम उदार। हरो सभी विपदा को सूरज, करो दीव्य आभा विस्तार॥ आखिर ऐसा क्या ही हुवा है, मध्य हिंडोला भूलूं, झूलू बारम्बार’ मिटा मान मैं का अभिमान, अहम् मात्र का शुद्र विचार।। कैसी प्रार्थना, कैसे करूँ, शक्तिमान हे सर्वाधार भोग्य नहीं, भोक्ता नहीं, भर्ता बनो मेरे, सरकार। अनुरोध है नियमानुसार, निलंबन से बाली का आदेश जारी करने की महति कृपा करेंगे।


पीड़ित की माने तो नियमों के तहत निलंबन आदेश के साठ दिवस के भीतर सरकारी सेवक को आरोप पत्र देना अनिवार्य होता है। लेकिन भूपे राज में उन्हें बगैर सुनवाई एक तरफ़ा निलंबित कर दिया गया था। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा उन्हें आज दिनांक तक भी कोई आरोप पत्र नहीं सौंपा गया है। जबकि नियमों के मुताबिक 60 दिवस के भीतर आरोप पत्र नहीं सौंपे जाने पर उस सरकारी सेवक की बहाली का भी प्रावधान है।


पीड़ित के मुताबिक राज्य में बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के डेढ़ साल बाद भी उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं। उनके मुताबिक, न्यायालय में केस लंबित रहने के आधार पर किसी भी सरकारी सेवक को लंबे समय तक निलंबित नहीं रखा जा सकता। उनकी यह भी दलील है कि पूर्ववर्ती सरकार के राजनैतिक द्वेष का खामियाजा उन्हें भोगना पड़ा है। उनकी माने तो बलात्कार और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के बावजूद कई सरकारी सेवकों का निलंबन तो दूर समय-सीमा के भीतर जांच कार्यवाही कर नौकरी बहाली रखी गई। जबकि भूपे राज में उनके खिलाफ बगैर किसी ठोस कारण के मिथ्या आरोप लगाए गए थे। आखिरकार पीड़ित ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सरकार की पीठ से नौकरी बहाली की गुहार लगाई है।


ब्राह्मण कुमार के पिता से ताल्लुख रखने वाले कई जानकार भू-पे दौर को याद करते हुए यातनाओं की लंबी दास्तान सुनाते है। वे बताते है कि अपने पुत्र की दयनीय हालत देखकर ब्राह्मण कुमार के पिता हरिवंश चतुर्वेदी इतने बेचैन हुए थे कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। बेटे की सरकारी नौकरी और परिवार पर टूटे दुखों के पहाड़ का सामना करते हुए उनके वृद्ध पिता की अचानक मौत हो गई थी।


ब्राह्मण कुमार ने अपने पिता के संकल्पों को पूरा करने के लिए रायपुर के मेकाहारा मेडिकल कॉलेज में उनका देहदान कर प्रदेश में व्याप्त तानाशाही के खिलाफ इंसाफ का बिगुल फूंका था। सूरा-सुंदरी के आलिंगन और आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी भू-पे सरकार ने कायदे-कानूनों और नैतिकता की तमाम हदों को पार करते हुए पूरे 5 वर्ष तक एक बड़ी आबादी का अमन-चैन छीन लिया था। बीजेपी राज में इसकी बानगी सामने आ रही है। केंद्रीय जांच एजेंसियां सरकार की तिजोरी पर हाथ साफ करने वालों से लेकर जनता के अरमानों पर पानी फेरने वालों को उनके असल ठिकाने भेज रही है। पीड़ित परिवार से वाकिफ कई लोग यह भी तस्दीक करते है कि इस ब्राह्मण कुमार की तर्ज पर दर्जनों पीड़ित इंसाफ के लिए भटक रहे है।

बताते है कि सनातनी परिवार से ताल्लुख रखने वाले इस ब्राह्मण कुमार का संघर्ष अभी भी जारी है। पीड़ित ब्राह्मण कुमार पाठ्य पुस्तक निगम में महाप्रबंधक के पद पर कार्यरत बताये जाते है। उनका पूरा नाम अशोक चतुर्वेदी, जबकि आध्यात्मिक दुनिया में इन्हे डॉ. अशोक हरिवंश के नाम से जाना-पहचाना जाता है। चतुर्वेदी की गिनती प्रदेश के प्रभावशील अधिकारियों के रूप में की जाती है। पाठ्य पुस्तक निगम में कार्यरत चतुर्वेदी को अचानक तत्कालीन मुख्यमंत्री करप्शन बघेल के कार्यकाल में उनके गिरोह ने अपने निशाने पर ले लिया था।

भूपे राज में सौम्या चौरसिया के निर्देश पर देखते ही देखते उन पर कई मामले दर्ज कर दिए गए थे। उनके ठिकानों पर ACB-EOW ने छापेमारी की थी। कार्यवाही का मकसद अवैध उगाही बताया जाता है। सूत्र बताते है कि पूर्व मुख्यमंत्री की अघोषित प्रेमिका रूपी पत्नी की गैर-क़ानूनी ‘मांगों’ को नहीं भरने के चलते चतुर्वेदी पर कहर बरपाया गया था। उनके खिलाफ कई मिथ्या आरोप दर्ज कर क़ानूनी कार्यवाही का दावा किया गया था। हालांकि मामला अदालत में विचाराधीन बताया जाता है।

उधर बेजा कार्यवाही और प्रताड़ना का सामना करते हुए पीड़ित का संघर्ष जारी बताया जाता है। इस कड़ी में सनातनी शैली वाला आवेदन सुर्ख़ियों में है। करप्शन बघेल और उनकी ‘पटरानी’ की गैर क़ानूनी गतिविधियों पर IT-ED, CBI और ACB-EOW जैसी जांच एजेंसियों की कार्यवाही जारी है, बघेल गिरोह के शिकार पीड़ितों की फेहरिस्त लंबी बताई जाती है। दरअसल, मौजूदा दौर में भी कई पीड़ितों की गुहार नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह दब कर रह गई है। फ़िलहाल, पीड़ित ब्राह्मण कुमार को न्याय मिल पायेगा ? कहना कठिन है। बीजेपी सरकार के सुशासन तिहार की बेला में बेजा कार्यवाही के शिकार पीड़ितों को भी राहत की उम्मीद बंधी है, वे इंसाफ की गुहार लगा रहे है।