“समाचार संग्राहक-संप्रेषक पत्रकार नहीं”, छत्तीसगढ़ में नए दौर की पत्रकारिता काफी सजग और जागरूक , भीखमचंद-मांगीलाल पत्रकारिता का झंडा बुलंद करने वालों का रुदन सिर्फ ईर्ष्या , कालातीत स्वयंभू पत्रकारों के अधकचरे ज्ञान से भटक चुकी पत्रकारिता की दशा-दिशा तय करने के लिए नए दौर के पत्रकारों ने कसी कमर , वरिष्ठ पत्रकार “राज”की कलम से…..

0
6

संपादकीय –रायपुर / पत्रकार शब्द का अर्थ बड़ा व्यापक है | पत्रकार को समझने के लिए पहले समाचार संस्थान को समझना होगा | आमतौर पर लोग प्रेस-मीडिया में कार्यरत लोगों को पत्रकार समझने की भूल कर जाते है | वो इस तथ्य से अजनाज रहते है कि पत्रकार होने का तमगा लटकाने वाला शख्स ही पत्रकार है , जबकि यह सही नहीं है , असल में वह स्वयंभू पत्रकार होता है | समाचार पत्र में नाम छप जाने या समाचार संग्रहण करने वाला शख्स एक संग्राहक होता है , पत्रकार नहीं | उस शख्स के पत्रकार बनने या होने का प्रमाणपत्र जनता देती है | बाजार में गली कूचों में स्वयंभू पत्रकारों की लंबी कतारे देखी जा सकती है | आमतौर पर रायपुर में ही होली-दीपावली और राष्ट्रीय पर्वों के मौकों पर कई ऐसे स्वयंभू पत्रकार लिफाफा भेंट में लेने के लिए राजनेताओं के दरबार में खड़े नजर आते है |

दरअसल प्रेस-मीडिया के दफ्तर में हॉकर , कंप्यूटर ऑपरेटर , तकनीशियन और रिपोर्टर-संवाददाता होते है | इनके सामूहिक प्रयासों के जरिये ही संकलित किये गए समाचार खबरों के रूप में आम पाठकों-दर्शकों तक पहुंचते है | इन्ही खबरनबीजों में कुछ शख्स ही ऐसे होते है , जिनकी कलम से हलचल मचती है और शासन-प्रशासन हकीकत से वाकिफ होकर वैधानिक कदम उठाने के लिए अग्रसर हो जाता है | वास्तव में ऐसे कलमकार पत्रकार होते है | “समाचार संग्राहक-संप्रेषक पत्रकार नहीं होते”| यही नहीं वे हो भी नहीं सकते , क्योकिं पत्रकारिता की शिक्षा-दीक्षा से ना तो वे वाकिफ होते है , और ना ही उनकी योग्यता-दक्षता पत्रकारों से मेल खाती है | 

बाजार में ऐसे पत्रकार गिने चुने होते है , जिन्हे पाठक-दर्शक पत्रकार का दर्जा देते है | वर्ना भीड़ समाचार संग्राहकों और संप्रेषणकर्ताओं की है , जिन्होंने स्वयंभू रूप से पत्रकार का चोला ओढ़ रखा है | ऐसे ही स्वयंभू पत्रकार इन दिनों बरसाती मेंढक की तरह छत्तीसगढ़ी-गैर छत्तीसगढ़ी पत्रकारिता का रुदन कर रहे है | दिलचस्प बात यह है कि सरयू किनारे से पलायन कर छत्तीसगढ़ दाखिल होने वाले स्वयंभू पत्रकारों ने छत्तीसगढ़ियाँ और गैर छत्तीसगढ़ियाँ के बीच दीवार खींचने की मुहीम छेड़ी है | दरअसल कालातीत हो चुके ऐसे समाचार संग्राहकों के कारण ही कई राजनेता पत्रकारिता के पेशे से जुड़े लोगों को भीखमचंद-मांगीलाल कहकर पुकारने लगे है | कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ की उत्कृष्ट पत्रकारिता की दशा-दिशा को भटकाने वाले यही संप्रेषक थे | पत्रकारिता के असल मूल्यों पर खरे उतर रहे पत्रकारों की दलील है कि ऐसे ही समाचार संप्रेषकों-संग्राहकों के चलते छत्तीसगढ़ का गठन 1980 के दशक के बजाये 2001 में हुआ था | उनके मुताबिक इस दौर के चुनिंदा पत्रकारों की राह में ऐसे ही समाचार संग्राहक-संप्रेषकों के गिरोह ने विघ्न डाला था | नतीजनत इस राज्य का गठन 20 साल पीछे खिसक गया | 

दरअसल छत्तीसगढ़ राज्य के गठन का विरोध कर रहे कुछ राजनेताओं के दरबार में हाजरी देने वाले लिफाफा पकड़ भीखमचंद-मांगीलालों ने अपने अधकचरे ज्ञान के चलते ऐसा रायता फैलाया था कि छत्तीसगढ़ से विरोधाभासी और भ्रामक खबरे उफान पर रही | इस गिरोह ने उस दौर में भी चुनिंदा पत्रकारों के खिलाफ अभियान छेड़ा था | इसके चलते विधानसभा के अंदर और बाहर छत्तीसगढ़ राज्य के गठन की मांग जोर नहीं पकड़ पायी थी | ये और बात है कि इन पत्रकारों की कलम तोड़ने की भरपूर कोशिशों के बावजूद उनकी लेखनी तब तक कहर ढहाते रही , जब तक कि छत्तीसगढ़ का गठन नहीं हो गया | इसका यह भी असर हुआ कि छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता से ऐसे समाचार संप्रेषकों-संग्राहकों की बिदाई हो गई | वे कालातीत हो गए , पाठकों ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया | 

छत्तीसगढ़ की स्वर्णिम पत्रकारिता पर कुठाराघात करने वाले बचे कूचे समाचार संग्राहक-संप्रेषक इन दिनों छत्तीसगढ़ियाँ और गैर छत्तीसगढ़ियाँ की दुहाई देकर एक बार फिर अपनी रोजी-रोटी की तलाश में निकल पड़े है | कालातीत हो चूके स्वयंभू पत्रकारों को यह समझना होगा कि प्रदेश में नक्सली हिंसा में अपनी कुर्बानी देने वाले देश के किसी भी राज्य के जवान भी छत्तीसगढ़ियाँ ही है | भले ही उनकी भाषा ,धर्म और संस्कृति भिन्न भिन्न हो , लेकिन उनके परिवार का इस प्रदेश की मिट्टी से लहू का रिश्ता है | इन्हे यह भी समझना होगा कि मौजूदा दौर में प्रजातंत्र की धरोहरों में व्यवस्थापिका , कार्यपालिका और न्यायपालिका की गुणवत्ता में कमी आई है |

इसका असर चौथे स्तंभ पर भी पड़ा है , क्योकिं प्रत्येक स्तंभ में मौजूदा समाज- समुदाय  से ही लोग आए है | कानून के राज में गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त किसी भी शख्स के खिलाफ वैधानिक कार्रवाइयों के रास्ते खुले हुए है | कानून अपना कार्य कर भी रहा है , ऐसे दौर में नियम कायदों का हवाला देकर पत्रकारिता की भटकी हुई राह को सही दशा-दिशा देने वाले पत्रकारों का आखिर विरोध क्यों ? इन्हे समझना होगा कि प्रजातंत्र के हर दौर में पत्रकारों के वेतन-भत्ते ,सुविधाएं  और मान सम्मान उनकी तुलना में कही ज्यादा होगा जो भीकमचंद-मांगीलाल की तर्ज पर सिर्फ अपनी स्वार्थसिद्धि में जुटे है | 

इनका भीकमचंद-मांगीलाल  बन जाना वक्त का तकाजा नहीं , बल्कि ऐसे तत्वों की योग्यता और अहर्ता ही है | दरअसल एक समय अख़बारों की एजेंसी लेने वाले और हॉकर तक पत्रकार होने का दावा करने लगे थे | स्वरोजगार की तलाश में जुटे ऐसे तत्वों के जमावड़े ने पत्रकारिता का दामन थामकर उसकी दशा और दिशा पर सवालियां निशान खड़ा कर दिया | लेकिन अब इस क्षेत्र में पढ़े-लिखे युवा दस्तक दे रहे है | पत्रकारिता की शिक्षा-दीक्षा लेकर प्रजातांत्रिक मूल्यों का अलख जगा रहे ये नौजवान काबिले तारीफ है | वे उन दरबारों में नजर नहीं आते जहां कतार लगाकर ऐसे ही संप्रेषक-संग्राहक नौकरशाही और राजनेताओं के आगे घुटने टेकते नजर आते है |

छत्तीसगढ़ में स्वर्णिम पत्रकारिता का वही युग अब दस्तक देने लगा है , जिसकी कल्पना हमारे धरोहर वरिष्ठ पत्रकारों ने की थी | लेखनी के धनी ऐसे पत्रकार निष्पक्ष और निर्भीकता के साथ प्रजातांत्रिक मूल्यों को बरकरार रखते हुए अपना कार्य कर रहे है | राज्य सरकार भी पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर सक्रियता दिखा रही है | ऐसे दौर में कालातीत संप्रेषकों-संग्राहकों को धैर्यता का परिचय देना चाहिए | हमारे पत्रकार साथी उनकी रोजी-रोटी और रोजगार को लेकर रचनात्मक कदम उठा रहे है |