नई दिल्ली / कश्मीर मुद्दा पाकिस्तान के लिए गले की फांस बन गया है | उसे पता नहीं चल रहा कि आगे करना क्या है | विश्व बिरादरी के सामने उसने अनुच्छेद 370 का मुद्दा काफी उठाया लेकिन उसकी एक भी दलील नहीं टिकी | संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के लगभग सभी देशों (चीन को छोड़कर) ने उसे बैरंग लौटा दिया | अब सिर्फ चीन बचा है जो उसकी फरियाद सुन रहा है, वह भी दबाव में क्योंकि चीन का बहुत कुछ पाकिस्तान में दांव पर लगा है | मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में यह दूसरा मौका है जब कश्मीर मुद्दे पर कोई मीटिंग होने जा रही है। पहली बैठक 1965 में हुई थी लेकिन अब दूसरी बार जो बैठक होने जा रही है वो पहली बैठक से अलग है। दरअसल पहली बैठक बंद दरवाजे के पीछे नहीं हुई थी और सुरक्षा परिषद् के अधिकांश सदस्य देशों ने पाकिस्तान का समर्थन किया था।
UNSC के इन देशों ने पाक को कहा ना
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (यूएनएससी) में कुल 15 सदस्य हैं | इनमें 5 स्थाई और 10 अस्थाई हैं | अस्थाई सदस्यों का कार्यकाल कुछ वर्षों के लिए होता है जबकि स्थाई सदस्य हमेशा के लिए होते हैं | स्थाई सदस्यों में अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस शामिल हैं | अस्थाई देशों में बेल्जियम, कोट डीवोएर, डोमिनिक रिपब्लिक, इक्वेटोरियल गुएनी, जर्मनी, इंडोनेशिया, कुवैत, पेरू, पोलैंड और साउथ अफ्रीका जैसे देश हैं | स्थाई सदस्यों में चीन को छोड़ दें तो बाकी के देशों-फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका ने पाकिस्तान को ठेंगा दिखा दिया है | इनका स्पष्ट कहना है कि कश्मीर मुद्दा हिंदुस्तान और पाकिस्तान का आंतरिक मसला है, इसलिए दोनों देश मिलकर निपटें, किसी तीसरे पक्ष की इसमें दरकार नहीं |
चीन की मजबूरी
ऐसा नहीं है कि चीन, पाकिस्तान का घनिष्ठ पड़ोसी है और वह अपने मित्र राष्ट्र के लिए कुछ भी कर सकता है | चीन के सामने बड़ी मजबूरी बेल्ट रोड इनीशिएटिव (बीआरओ) है जिसका बड़ा हिस्सा पाकिस्तान से होकर गुजर रहा है | सड़क निर्माण के इस बड़े प्रोजेक्ट में चीन ने बहुत कुछ झोंक दिया है | अरबों युआन की राशि उसने रोड प्रोजेक्ट में लगाई है और पाकिस्तान से यारी बनाए रखने के लिए वहां बड़ी मात्रा में निवेश किया है |ऐसे में चीन के सामने दो ही विकल्प हैं , पहला यह कि वह पाकिस्तान को झिड़क दे और अपने बूते बीआरओ को आगे बढ़ाए. दूसरा विकल्प उसके सामने सबकुछ बर्दाश्त करते हुए पाकिस्तान को मदद देने का है. पाकिस्तान को चीन झिड़क नहीं सकता क्योंकि उसे पता है इससे उसका पैसा तो डूबेगा ही, रोड प्रोजेक्ट में जान-माल की भी बड़ी क्षति होगी | गौर करने वाली बात यह है कि पाकिस्तानी आतंकी कई देशों में कोहराम मचा चुके हैं लेकिन अभी तक उन्होंने किसी चीनी नागरिक को नहीं छुआ है जो बीआरओ प्रोजेक्ट में लगे हैं | इसलिए चीन हर नफा-नुकसान देखते हुए पहले विकल्प में टिकना चाहता है | लिहाजा यूएनएससी की बैठक में वह पाकिस्तान की मदद कर रहा है |
संयुक्त राष्ट्र देशों की वीटो प्रक्रिया
जैसा की आपको बता चुके हैं संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा में कुल देशों की संख्या 15 हैं, जिनमें 5 स्थाई और 10 अस्थाई हैं। स्थाई सदस्यों में रूस, चीन, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस हैं, जनके पास वीटो पावर है। वीटो पावर को सरल शब्दों में बताया जाए तो इसका मतलब यह हुआ अगर किसी प्रस्ताव पर 5 स्थाई सदस्यों में से कोई एक भी विरोध करता है तो वह प्रस्ताव सुरक्षा परिषद में पास नहीं होता है।अब जब कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को इतने देश नकार चुके हैं तो वो किस मुंह से खुलेआम बैठक करेगा। इसलिए संयुक्त राष्ट्र ने पास अब बंद दरवाजे के पीछे बैठक किए जाने का ऑप्शन है ताकि देश की जगहंसाई होने से बच जाए।
बैठक में शामिल नहीं हो सकेगा पाकिस्तान
बैठक बंद दरवाजे की पीछे चलेगी लेकिन इसमें पाकिस्तान का शामिल होना नामुमकिन है क्योंकि पाकिस्तान न तो स्थाई सदस्य है और न ही अस्थाई | बंद कमरे की बैठक का प्रसारण नहीं किया जाएगा | मतलब, पत्रकारों की उसमें पहुंच नहीं होगी | भारत की ओर से संविधान के अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त किए जाने के बाद पाकिस्तान ने यूएनएससी से कश्मीर मसले पर बैठक बुलाने की मांग की थी | दरअसल, अनुच्छेद 370 और 35ए के प्रावधानों के तहत ही जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त था | सुरक्षा परिषद में शामिल चीन को छोड़कर बाकी सभी चारों स्थायी सदस्यों ने प्रत्यक्ष तौर पर नई दिल्ली के इस रुख का समर्थन किया है कि यह विवाद भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय मसला है | अमेरिका ने भी कहा है कि कश्मीर के संबंध में हालिया घटनाक्रम भारत का आंतरिक मसला है |