डकैत डीजी मुकेश गुप्ता को “अदालत” से दो-दो बार आखिर क्यों “नो कोरेसिव एक्शन” ? “पीड़ितों” के बजाय आरोपी को “क़ानूनी संरक्षण” क्यों ? ये पब्लिक है , सब जानती है |
रायपुर / छत्तीसगढ़ में खाकी वर्दी पहनकर दिन-रात आम जनता के साथ लूटपाट कर करोड़ों रूपये की “बेनामी” संपत्ति अर्जित करने वाले डकैत डीजी मुकेश गुप्ता को गंभीर अपराधों में लगातार दूसरी बार “नो कोरेसिव एक्शन” का अदालती फरमान “देश भर” में चर्चा का विषय बना हुआ है | वर्ष 1988 बैच के इस आईपीएस अधिकारी ने अपने पद और प्रभाव का दुरूपयोग करते हुए लोगों की “निजता” पर डाका डाला था | “अवैध” रूप से उनके “फोन टेपिंग” कर अपनी स्वार्थसिद्धि की थी | यही नहीं “नान घोटाले” का “मास्टर माइंड” बनकर इस आरोपी ने , ना केवल “छत्तीसगढ़ शासन” की छवि धूमिल की , बल्कि घोटाले की लाखों की रकम , हर माह “MGM” ट्रस्ट में जमा करवाई थी | आरोपी के अपराधिक क्रिया कलाप यही नहीं थमे, बल्कि उसने भिलाई में “साडा” की बेशकीमती जमीनों को “धोखाधड़ी” कर खुद अपने नाम आबंटित कर लिया था | ऐसे गंभीर मामलों में इस आईपीएस अधिकारी के खिलाफ “छत्तीसगढ़ सरकार” ने लगातार तीन गंभीर मामलों में “FIR” दर्ज की है | भिलाई के सुपेला थाने में दर्ज “धोखाधड़ी” के मामले में “वांटेड” यह आरोपी अदालत से आखिर कैसे “नो कोरेसिव एक्शन ” का निर्देश पाने में कामयाब हो गया ? यह सोचनीय है | जबकि सामान्य धोखाधड़ी के मामले में कई आरोपी या तो हवालात की सैर करते है , या फिर “जेल ” की हवा तक खाते है |
“बगैर” डायरी देखे , अदालत ने आखिर क्यों “नो कोरेसिव एक्शन” जैसी इबारत लिखी ? यह भी गौरतलब है | मामला यहां तक भी सीमित नहीं है | अदालत ने कुख्यात आरोपी मुकेश गुप्ता के तीनों प्रकरणों की सुनवाई के बाद “फैसला” आखिर क्यों रिजर्व रखने की परिपाटी कायम की है ? यह कानून के जानकारों के लिए “शोध” का विषय बना हुआ है | यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि “अवैध फोन टेपिंग” और “नान घोटाले” के प्रकरणों में हुई सुनवाई के बाद बिलासपुर हाईकोर्ट ने आरोपी मुकेश गुप्ता पर “फैसला” लगभग दो हप्ते तक “रिजर्व” रखा था | “रिजर्व प्रकरण” में जब फैसला आया , तो आरोपी मुकेश गुप्ता को काफी राहत मिल गई है | राहत भी ऐसी की अदालत के आदेशों की “धज्जियां उड़ाते” हुए यह आरोपी ना तो जांच में सहयोग कर रहा है , और ना ही अपने बयान दर्ज कराने के लिए EOW मुख्यालय में उपस्थित हो रहा है |

भिलाई के सुपेला थाने में दर्ज “धोखाधड़ी” के मामले में इस डकैत डीजी की “अग्रिम जमानत ” याचिका पर भी सुनवाई पूरी हुए लगभग दो हप्ता पूरा हो रहा है | इस मामले में भी अदालत ने आखिर क्यों “फैसला “रिजर्व” रखा है ? क्या यह सामान्य प्रकरण है या फिर कानून की कोई जटिलता ? आरोपी की “अग्रिम जमानत ” को लेकर कोई संवैधानिक प्रश्न है या फिर कोई गहन क़ानूनी दाँवपेच ? इसे कानून के जानकार समझना चाहते है | दरअसल आरोपी मुकेश गुप्ता के अपराधिक प्रकरणों के शिकार “पीड़ित” राज्य के “महाधिवक्ता ” कार्यालय से यह जानना चाहते है कि आखिर क्यों मुकेश गुप्ता को क़ानूनी संरक्षण प्राप्त हो रहा है ? जबकि वो “पीड़ित” नहीं बल्कि कुख्यात “आरोपी” और अपने गिरोह का “सरगना” है |
कई अपराधिक मामलों के आरोपी , डकैत डीजी मुकेश गुप्ता के प्रकरणों को लेकर “कानून ” का रुख आखिर क्यों स्पष्ट नजर नहीं आ रहा है ? इसे लेकर देश भर में मंथन का दौर शुरू हो गया है | दरअसल कुख्यात आरोपी मुकेश गुप्ता की “गिरफ्तारी” और “अग्रिम जमानत” को लेकर लगातार दूसरी बार “बिलासपुर हाईकोर्ट” ने फैसला “सुरक्षित” रखा है | पहली बार , “अवैध फोन टेपिंग” और नान घोटाले को लेकर दर्ज FIR में आरोपी की गिरफ्तारी की आशंका के चलते “नो कोरेसिव एक्शन” वाला फैसला लगभग दो हप्ते तक अदालत ने “सुरक्षित” रखा था | इसके बाद आये फैसले से “पीड़ितों” और “जांच एजेंसियों” के अरमानों पर पानी फिर गया था | फैसले में दर्ज दिशा निर्देशों के पालन की उम्मीद राज्य की जनता ने इस निलंबित सरकारी मुलाजिम से की थी | लेकिन इस कुख्यात आरोपी ने अदालत के दिशा निर्देशों की अवेलहना करते हुए जांच अधिकारियों और दूसरी सरकारी एजेंसियों के साथ दूर दूर तक कोई “सहयोग” नहीं किया है | यहां तक की EOW में अपने बयान दर्ज कराने के मामले में भी यह आरोपी लगातार बच रहा है | बिलासपुर हाईकोर्ट ने अपने फैसले में आरोपी मुकेश गुप्ता को गिरफ्तारी से राहत देते हुए साफतौर पर जांच में सहयोग करने के निर्देश दिए थे | वही दूसरी ओर “अदालत” के निर्देशों की धज्जियां उड़ाते हुए इस आरोपी ने मात्र एक बार EOW मुख्यालय में अपनी उपस्थिति दर्ज कर दूसरी बार “कन्नी काट” ली | उसने EOW के नोटिसों का ना तो कोई संतोषजनक जवाब दिया और ना ही दूसरी बार बयान दर्ज कराने के लिए EOW मुख्यालय में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई | नतीजतन यह मामला लगातार खिंचता चला जा रहा है |

डकैत डीजी मुकेश गुप्ता के खिलाफ दर्ज “चार सौ बीसी” के मामले में “अग्रिम जमानत” की सुनवाई का प्रकरण भी सुर्ख़ियों में है | आरोपी मुकेश गुप्ता को इस मामले में “बेल” मिलेगी या फिर , होगी “जेल” ? इसे लेकर भी मंथन का दौर जारी है | दरअसल इस मामले में “बगैर” डायरी पेश हुए “माननीय” अदालत ने आरोपी मुकेश गुप्ता को फौरी राहत दे दी थी | इसके उपरांत नियत तिथि को आरोपी की “केस डायरी” पेश होने के बाद अदालत में मामले की सुनवाई तो हुई , लेकिन इस बार भी उसके पूर्व प्रकरणों की तर्ज पर “अदालत” ने फिर “फैसला” सुरक्षित रख लिया है | जबकि इस अपराधिक प्रकरण में बगैर डायरी देखे अदालत “नो कोरेसिव एक्शन” वाली इबारत पहले ही लिख चुकी थी | दोनों ही मामलों में “महाधिवक्ता कार्यालय” की “भूमिका” सवालों के घेरे में है | आखिर क्यों ? आरोपी मुकेश गुप्ता के खिलाफ वैधानिक कार्रवाई दम तोड़ रही है ? इसका “उत्तर” राज्य की जनता “महाधिवक्ता कार्यालय” से जानना चाहती है |
दरअसल आरोपी मुकेश गुप्ता के अपराधिक प्रकरणों को लेकर “शासन” का पक्ष अदालत में पूरी मजबूती के साथ रखने का दारोमदार “महाधिवक्ता कार्यालय” पर निर्भर होता है | लेकिन जिस तरह से आरोपी मुकेश गुप्ता को “क़ानूनी संरक्षण” मिल रहा है , उससे “महाधिवक्ता कार्यालय” की “कार्यप्रणाली” चर्चा का विषय बनी हुई है | फ़िलहाल राज्य की जनता को “ठगी” के मामले में आरोपी मुकेश गुप्ता की गिरफ्तारी का इंतजार है | आरोपी की “अग्रिम जमानत ” को लेकर बिलासपुर हाईकोर्ट ने फैसला अब तक “रिजर्व” रखा है | हालांकि इन प्रकरणों को लेकर अदालत परिसर के “माननीय” की “चर्चा” भी खूब हो रही है |