दिल्ली | 2009 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने नक्सलियों को ख़त्म करने के लिए एक ऑपरेशन चलाया | इस ऑपरेशन को “ऑपरेशन ग्रीनहंट” नाम दिया गया | अभी निशाने पर माओवादी दिख रहे हैं, लेकिन जब ये ऑपरेशन लॉन्च हुआ तो कहा गया कि सरकार “ऑपरेशन ग्रीनहंट” इसलिए चला रही है, क्योंकि जंगलों से आदिवासियों को हटाया जा सके और जंगल की ज़मीन को बड़ी कंपनी को दिया जा सके, ताकि जंगल और जंगल के पहाड़ों पर खनन किया जा सके | कहा गया कि निशाने पर माओवादी नहीं, बल्कि मासूम आदिवासी हैं | उस समय तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम थे | कहा जाता है कि निजी फायदे के लिए चिदंबरम ने ये फैसले लिए और इस फैसले के बाद कई मासूम आदिवासियों के घर और उनके खून हैं |
क्या है पूरा मामला?
2009 में देश के तीन माओवादी प्रभावित राज्यों में तत्कालीन गृह मंत्रालय के आदेश के बाद माओवादी निरोधी ऑपरेशन चलाया गया | राज्यों की पुलिस थी, और साथ में थी केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस फ़ोर्स यानी CRPF | जानकारी के मुताबिक दोनों संयुक्त बलों ने तीन दिनों तक ये ऑपरेशन ग्रीनहंट चलाया गया | इसकी नींव साल की शुरुआत में ही पड़ चुकी थी | सरकार ने कहा था CRPF के 80 हज़ार जवानों को छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ में तैनात किये जाएंगे | इन सभी राज्यों के बीच फैला है भारत का रेड कॉरिडोर, वो गलियारा जहां माओवादी गुट सक्रिय हैं | और ऑपरेशन ग्रीन हंट उसी साल सितम्बर के बाद चलाया गया | तीन दिनों तक सुरक्षा बलों ने इन राज्यों के जंगलों में ऑपरेशन को अंजाम दिया | कितने माओवादी मारे गए, इसके बारे में कोई भी नहीं संख्या आई और सामने आई भी तो हर जगह माओवादियों की संख्या में अंतर पसरा हुआ था |
जब ऑपरेशन के बादल छंटे तो पी. चिदंबरम सामने आए | उन्होंने कहा कि हमने “ऑपरेशन ग्रीन हंट” नाम का कोई ऑपरेशन नहीं चलाया था | ये बात सामने आई कि मीडिया ने ऑपरेशन ग्रीन हंट नाम निकाला था और ग्रीन हंट क्यों ? क्योंकि गृहमंत्री पी. चिदंबरम और मीडिया दोनों के हिसाब से इस ऑपरेशन के निशाने पर दो अलग-अलग लोग थे | माओवादी. देश में माओवाद लम्बे समय से एक समस्या है | कहा जाता है कि चीन से फंडिंग मिलती है और आदिवासी देश-राज्य की सरकार के खिलाफ बंदूक उठा लेते हैं | प्रतिबंधित लाल किताब पढ़ते हैं, और बन जाते हैं माओवादियों की फेहरिस्त में | इन माओवादियों की धर-पकड़ और सफाए के लिए ही “ऑपरेशन ग्रीन हंट” चलाया गया था, ऐसा सरकार कहती है |
लेकिन क्या असल निशाना निर्दोष आदिवासी थे?
ऐसा भी कहा जाता है, क्यों? क्योंकि सरकार का एक हिस्सा तब एक बड़े कॉर्पोरेट घराने को खनिजों के खनन के लिए ज़मीन और जंगल मुहैया कराना चाहता था, ऐसे आरोप सरकार पर लगते हैं | कौन-सा कॉर्पोरेट घराना, वेदांता, बड़ा संगठन, छोटे से बड़े कई उद्योगों में वेदांता ने हाथ फंसाए हैं | लेकिन सबसे बड़ा काम है कि खनन का | कहा जाता है कि वेदांता की उड़ीसा के डोंगरिया कोंध की पहाड़ियों पर लम्बे समय से नज़र थी | इलाके के लोग इन पहाड़ियों को अपने भगवान की तरह पूजते थे | लेकिन इन पहाड़ों के नीचे स्टरलाईट कॉपर का बड़ा खजाना था, तो ज़ाहिर था कि वेदांता की नज़र भी थी | और लम्बे समय तक कॉर्पोरेट वकील रहे थे पी. चिदंबरम | और उनके मुवक्किलों की सूची में नाम था वेदांता समूह का भी नाम था | बाकायदे कंपनी के बोर्ड में भी शामिल थे |
2004 में वित्तमंत्री बनने के तुरंत पहले तक चिदंबरम वेदांता की वकालत कर रहे थे | 2009 में गृहमंत्री थे और तभी हुआ ऑपरेशन ग्रीन हंट | लोगों ने आरोप लगाया कि पी. चिदंबरम ने माओवादियों को हटाने के लिए नहीं, बल्कि आदिवासियों को हटाने के लिए ऑपरेशन चलाया था | क्योंकि वेदांता को खनिजों से भारी ज़मीन दिलाई जा सके | कहा गया कि वे वेदांता को फायदा पहुंचाना चाह रहे हैं. उड़ीसा के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने वेदांता के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की | इसी दौरान वेदांता की सहायक कंपनी को पी. चिदंबरम ने जंगल में फैक्ट्री लगाने की इजाज़त दे दी | आर्डर देकर कह दिया कि ऐसा करने में कोई दिक्कत नहीं है | कहा कि जंगल खोद लो, और सारे खनिज निकाल लो | ये इसके बावजूद कि सुप्रीम कोर्ट की एक्सपर्ट कमिटी ने कहा था कि कंपनियों को खनन की इजाज़त नहीं देनी चाहिए, क्योंकि इससे जंगल बर्बाद हो जायेंगे. साथ ही पानी के सोते, पर्यावरण और कई हज़ार आदिवासियों के जीने का आधार भी |

