साहित्य से लेकर समाज तक सब कुछ बाजार के दबाव में -संपत सरल

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उपेंद्र डनसेना  


वर्तमान दौर क्षरण का- अर्जुन सिसोदिया

रायगढ़ । आज का दौर क्षरण का दौर है इस कठिन दौर में समाज से लेकर साहित्य तक सब बाजारवाद के दबाव में है । इस दौर में कविता और व्यंग लिखना खासकर समाज के मूल्यों व अंतिम आदमी की पीडा को लिखना और उसे प्रस्तुत करना किसी भी कवि के लिए चुनौती पूर्ण है । चक्रधर समारोह में शिरकत करने पहुंचे देश के नामचीन कवियों ने आज मीडिया के सामने इस तरह अपने उद्गार रखे ।


समारोह में शिरकत करने पहुंचे संपत सरल, अर्जुन सिसोदिया, पॉर्थ नवीन, शंभू शिखर, किशोर तिवारी और अतुल अजनबी ने कहा कि कविता या व्यंग लिखना किसी भी दौर में आसान नही रहा है । खासकर लिखने के बाद उसे सुनाना तो और भी कठिन होता है। यह दरअसल लेखक की तैयारी और उसकी चेतना पर निर्भर करता है । एक सच्चे कवि को हमेशा इस बात का ध्यान रखना होता है कि समाज के मूल्य क्या हैं और अंतिम आदमी की पीडा क्या है । इस विषय पर ही कवि की प्रतिबद्धता होनी चाहिए । लेकिन वर्तमान दौर को अगर देखा जाए तो जो पाखंड एक समय तक नेपत्थ्य में था अब वह मंच पर आ गया है । उसने नया कलेवर ओढ लिया है । ऐसे में कविता हो या व्यंग लेखनी की कोई भी विधा कठिन हो जाती है ।


 उन्होंने कहा कि कोई भी समय सरल नही होता दरअसल कोई भी कठिन दौर तैयारी पर आधारित होता है । अब तो आलक यह है कि लोग ध्यान तक कैमरे के सामने लगाते है। बाजारवाद का समाज पर इस तरह का दबाव है कि पूंजीवाद ने देश के 125 करोड लोगों को 125 करोड ग्राहको में बदल दिया है । इस दौर में कविता या व्यंग लिखना और उसे सुनाना आसान कैसे हो सकता है । पत्रकारों के पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि साहित्य और पत्रकारिता सब बाजार के दबाव में है। सिनेमा समाज का आईना होता है और समाज की भलाई को और संक्रमण को दिखाता है । एक कवि भी अपनी लेखनी के माध्यम से इसी तरह का काम करता है । राजनीति और कविता पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि राजनीति पर कविता करना और कविता पर राजनीति होना कोई नई बात नही है । यह हर दौर में था और आने वाले हर दौर में रहेगा । 


पद्मश्री सुरेन्द्र दुबे के कार्यक्रम में नही आने के सवाल पर इन कवियों ने कहा कि पद्मश्री सुरेन्द्र दुबे कविता और खासकर छत्तीसगढ़ की अस्मिता के सुंदर हस्ताक्षर हैं और इस तरह के कवि का चक्रधर समारोह के मंच पर न होना कहीं न कहीं उन्हें दुखी करता है । मगर यह विषय और इस विषय में पूछा गया प्रश्र दरअसल उनसे नही आयोजन समिति से किया जाना चाहिए । जहां तक इस मामले में कवियों की प्रतिक्रिया की बात है तो वे इस बात से दुखी हैं  और आने वाले समय में उन्हें इस सम्मानित मंच पर अवश्य देखना चाहेंगे ।