हर बेटी के भाग्य में पिता होते है लेकिन हर पिता के भाग्य में बेटी नही , जीवन मे कर्म प्रधान है कर्म से भाग्य की रेखाएं बदली जा सकती है -पंडित नरेंद्र नयन शास्त्री |

0
10

उपेंद्र डनसेना | 

रायगढ़ | रायगढ़ के अग्रोहा भवन में गर्ग परिवार गेरवानी द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत के प्रथम दिवस व्यासपीठ पर विराजमान विख्यात पंडित नरेंद्र नयन शास्त्री जी द्वारा अपने मधुरवाणी से राजा परीक्षित के जन्म और भीष्म पितामह के मृत्यु के गुण रहस्य से भक्तों को अवगत कराया गया।संगीतमय भागवत के रसपान में डूबे भक्त पूरे समय आंनद में झूमते रहे । व्यासजी महाराज द्वारा अपने कथा के माध्यम से भक्तों को कथा का रसपान कराते हुए बताया गया कि महाभारत के युद्ध मे जब कौरव सेना पांडव सेना से युद्ध हार गई तो पांडव के गुरुपुत्र असवस्थामा द्वारा पांचों पांडवो को मारने का प्रण लिया गया और रात के अंधेरे में पांडवों के शिविर में घुस गया।सभी पांडव जीत का जश्न मनाने श्री कृष्ण के शिविर में थे और पंडो के शयन में द्रोपती के 5 पुत्र निंद्रा अवस्था मे थे । गुरुपुत्र असवस्थामा ने रात के अंधेरे में उन्हें पांडव समझ कर उनका सर धड़ से अलग कर दिया । 


इसके पश्चात असवस्थामा उत्साह में उन  पांचों सिसो को लेकर मृत्यु की प्रतिक्षरत दुर्योधन के पास पहुँचा।दुर्योधन उन पांचों सीस को देखकर उसमे से भीम के सीस की मांग की गुरुपुत्र द्वारा एक सीस दुर्योधन को दिया गया जिसे दुर्योधन द्वारा दबाए जाने पर वह सीस दब गया । जिसके कारण शोक की समुद्र में डूबकर दुर्योधन द्वारा गुरुपुत्र से कहा गया कि हे असवस्थामा यह तुमने क्या कर दिया । ये पांचों सीस पांडवो के नही है बल्कि द्रोपती के पांचों पुत्रो के है,तुमने अनर्थ कर दिया अब हमारे कुल में कोई दीपक जलाने वाला भी नही रहा।और ऐसे ही शोक के सागर में डूबकर दुर्योधन ने अपने प्राण त्याग दिए ।


उधर पांडो के शिविर में अपने पुत्रों की मृत देह देखकर द्रोपती शोक से आग बबूला हो गई । पार्थ अर्जुन भी क्रोध में आकर गुरुपुत्र के प्राण लेने को आतुर हो गए और सभी पांडव असवस्थामा की खोज में निकल पड़े । असवस्थामा के मिलने पर पांडव पुत्रो ने घेर लिया जिससे अस्वस्थमना ने पांडव पर ब्रम्हास्त्र चला दिया जिसके जवाब में अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र चलाया । दोनों द्वारा चलाये गए ब्रह्मास्त्र से अर्जुन ने सृष्टि की रक्षा के लिए अपने ब्रह्मास्त्र के प्रभाव को शून्य कर दिया गया लेकिन गुरुपुत्र द्वारा अपने ब्रह्मास्त्र की दिशा बदल कर उसे अभिमन्यु पुत्र जो कि उत्तरा के गर्भ में था उसकी ओर मोड़ दिया,जिसे भगवान कृष्ण ने अपने प्रभाव से शून्य कर दिया इस प्रकार राजा परीक्षित का जन्म हुआ।व्यासजी महाराज द्वारा अपने कथा में इन सारे दृश्टान्त का व्यापक विवरण कथा के माध्यम से प्रस्तुत किया जा रहा है ।


श्रीमदभागवत के कथा के दुज़रे दिन व्यासजी द्वारा सृस्टि के निर्माण,ब्रह्म की उत्पत्ति,और इससे जुड़े रोचक कथा एवं चरित्र को कथा के माध्यम से बड़े ही सहज और सरल ढंग से भक्तों को सुनाया गया।आज कथा के तीसरे दिन वामन अवतार की सुनाई गई । व्यासजी द्वारा अपने कथा में सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करते हुए कन्याभ्रूण हत्या,गौ हत्या,माता पिता की वृद्धा अवस्था मे सेवा ना करना अंध विस्वाश से समाज मे फैल रही बुराइयों पर भी अपने विचार रखे और श्रीमद्भागवत में रोचक प्रसंगों के माध्यम से भक्तों को इन कुरीतियो से बचने का सलाह दिया। 
सपीठ से भगवताचार्य पंडित नरेंद्र नयन शास्त्री जी ने एक प्रसंग के दौरान बेटियों को लेकर बड़ी ही मार्मिक बात कही उनके द्वारा कहा गया कि हर बेटी के भाग्य में पिता होता है लेकिन हर पिता के भाग्य में बेटी नही होती । समाज मे कुरीति है कि बेटे के द्वारा मुखाग्नि देने से ही मुक्ति मिलती है जबकि यह एक कोरी अवधारणा है । आज के दौर में बहुतों साहसी बेटियां है जिनके द्वारा अपने पिताओं का अंतिम संस्कार किया गया  । गुरुजी ने कहा कि यह समाज के लिए बड़े ही शर्म का विषय है कि आज पढ़ी लिखी महिलाये जो खुद एक बेटी भी है बेटे की चाह में गर्व में ही बेटियों को मार रही है । ऐसे हत्याओ पर जो बाल हत्या हो उसको पुराणों में भी माफी नही मिलती अतः बाल अथवा भ्रूण हत्या को सामाजिक पाप करार देना चाहिए ।