दिल्ली/ रायपुर: सुप्रीम कोर्ट में आज छत्तीसगढ़ सरकार और उसके मुख्यमंत्री की उस समय फजीहत होते नजर आई,जब 2 हजार करोड़ के आबकारी घोटाले में अदालत के रुख को भांपते ही मुख्य याचिकाकर्ताओं ढेबर बंधुओ और राज्य के आबकारी सचिव निरंजन दास की ओर से दायर याचिकाए अचानक गोता खाने लगी। अदालती सूत्र बताते है कि आज सुनवाई का दौर शुरू होते ही याचिकाकर्ताओ ने अदालत को बगैर कोई ठोस कारण जाहिर किए, अपनी याचिका ही वापिस ले ली।
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देश में पहली बार अदालत के भीतर छत्तीसगढ़ शासन और उसके अफसरों की आधिकारिक रूप से छवि और कार्यप्रणाली तार-तार हो गई। अदालत में मौजूद सॉलिसिटर मुकुल रोहतगी ने राज्य सरकार की ऐसी बखियां उधेड़ी कि शासन के कर्णधारो ने सुनवाई से पहले ही अदालत से भाग निकलना मुनासिब समझा।
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बताते है कि ED की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ने अदालत में डिजिटल सबूतों और काले कारनामो की वो लम्बी फेहरिस्त सौंपी जिसे देखते ही मुख्यमंत्री बघेल के कारोबारी साथियो के होश फाख्ता हो गए। लिहाजा उन्होंने CBI जांच के अंदेशे के चलते अपनी याचिका ही वापिस ले ली। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री समर्थको की याचिका वापिसी का मामला अदालती गलियारों से लेकर राजनीति के मैदान में सुर्खियां बटोर रहा है।
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ताजा घटनाक्रम में आबकारी घोटाले के आरोपियों की ED एक्ट को चुनौती देने वाली याचिका की वापसी भी सवालों के घेरे में बताई जा रही है। हालांकि याचिकर्ताओं की ओर से अभी आधिकारिक रूप से जाहिर नहीं किया गया है कि आखिर किन कारणों से याचिका वापिस ली गई है।
न्यूज़ टुडे नेटवर्क ने अदालत परिसर में मौजूद पक्षकारो से संपर्क भी किया लेकिन कानूनी कार्यो में व्यस्त रहे का हवाला देकर उन्होंने बातचीत से इंकार किया।
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जबकि IAS निरंजन दास के संपर्क सूत्रों ने दावा किया कि ED का समन प्राप्त होने के बाद वे रायपुर जाने की तैयारी कर रहे है, फिलहाल स्वास्थ्य ख़राब है, डॉक्टरों के इजाजत के बाद ही ED दफ्तर में हाजिर होंगे।
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उधर,करीब 20 करोड़ से ज्यादा की रकम आबकारी घोटाले की जांच अवरुद्ध के लिए एक मात्र याचिका पर मात्र 2 याचिकाकर्ताओं ने खर्च कर दिया। इसके लिए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे नामचीन कानून के जानकारों को अदालत में उतारा गया।
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छत्तीसगढ़ शासन द्वारा याचिककर्ताओं की भी हर संभव मदद किए जाने की मीडिया रिपोर्ट्स भी सुर्खियों में रही। इसके बावजूद भी दोनों याचिकर्ताओ का अदालत से पलायन कर जाने का मामला चर्चा में है।
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मुख्यमंत्री भूपेश बघेल समेत ED के कई संदेही और आरोपी उस पर प्रताड़ना का लगातार आरोप लगा रहे है, सीएम बघेल कई मौको पर कारोबारियों और गवाहों पर जोर जबरदस्ती किए जाने की शिकायत लेकर ED की घेराबंदी में जुटे है।
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इसके बाद भी याचिकाओ का वापस होना मुख्यमंत्री बघेल की कार्यप्रणाली पर भी प्रश्नचिन्ह लगा रहा है। बघेलखंड का यह हैरत अंगेज कदम अदालती गलियारों में गौरतलब बताया जा रहा है। कानून के जानकारों के मुताबिक आबकारी घोटाले की जांच जल्द CBI के हवाले सौंपी जा सकती है।
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इधर,आबकारी घोटाले की जांच को प्रभावित करने वाली याचिका के ध्वस्त होते ही कई अधिकारियों, नेताओं, उनके पुत्र-पुत्रियों और दामाद की मुश्किलें बढ़ गई है। बताते है कि धर दबोचे जाने के अंदेशे के चलते इनकी चौकसी बढ़ा दी गई है।
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खाकी वर्दी वाले जवानो की तैनाती के साथ ही उन पर खुफिया विभाग की तीमारदारी की तैनाती हो रही है। इस बीच उस “प्रमुख अधिकारी” पर ED की निगाहे गड़ी हुई है,जिसने IAS अनिल टुटेजा की सुरक्षित सेवा निर्वत्ति की राह आसान और सुविधाजनक बना दी है।
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सूत्र बताते है कि चिप्स घोटाले में मुख्य रूप से शामिल प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी की कार्यप्रणाली एजेंसियों के गलियारे में कुख्यात आरोपियों के रूप में दर्ज बताई जा रही है।
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बताते है कि 36 हजार करोड़ के नान घोटाले, 500 करोड़ के कोल खनन परिवहन घोटाले, 2 हजार करोड़ के आबकारी घोटाले समेत कई सरकारी विभागों में गैर कानूनी ठेके,निविदा-टेंडर में गड़बड़ी जैसी गंभीर शिकायतों और दर्ज आपराधिक मामलों के बावजूद प्रभारी मुख्य सचिव ने IAS अनिल टुटेजा को ना तो निलंबित किया है, और ना ही कोई आरोप पत्र सौंपा है।
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जबकि अगले 20 घंटो के भीतर आरोपी अनिल टुटेजा सरकारी सेवा से रिटायर हो जाएंगे।
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सूत्र बता रहे है कि मुख्यमंत्री की टोली में सुपर सीएम टुटेजा लंबे अरसे से गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त है। उसके खिलाफ ED ने कई वैधानिक शिकायतो का पुलिंदा छत्तीसगढ़ शासन को सौंपा है। इस पर प्रभारी मुख्य सचिव ने समय रहते कोई कार्यवाही नहीं की थी।
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यही नहीं ACB-EOW समेत अन्य विभागीय जांच की फाइल को भी अलमारी में कैद कर दिया है, नतीजतन छत्तीसगढ़ की गरीब जनता की गाढ़ी कमाई वाली सरकारी तिजोरी पर हाथ साफ़ करने वाला चर्चित शख्स हजारो करोडो रूपए पार कर अब “सरकारी रिहाई” की ओर तेजी से अपने कदम आगे बढ़ा रहा है।