बड़ी खबर :  नेताजी सुभाष चंद्र बोस गुमनामी बाबा नहीं थे , जांच आयोग की रिपोर्ट , 34 साल बाद इस रहस्य से उठा पर्दा |

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वेब डेस्क / उत्तर प्रदेश में निवासरत एक शख्स गुमनामी बाबा के नाम से मशहूर था | इमरजेंसी के दौरान कई लोगों का मानना था कि गुमनामी बाबा के नाम से जाना-पहचाना जाने वाला यह शख्स ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस है | नेताजी ने अपनी असलियत छिपाते हुए गुमनामी बाबा का रूप ले लिया है | कई वर्षों तक यह रहस्य बना रहा , एक दिन गुमनामी बाबा भी ओझल हो गए | अदालत ने गुमनामी बाबा की असलियत पर से पर्दा हटाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देशित किया था | इस पर अमल करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने न्यायमूर्ति विष्णु सहाय आयोग का गठन किया था | करीब तीन साल तक की जांच पड़ताल के बाद आयोग ने अब जाकर अपनी रिपोर्ट दी है | इस रिपोर्ट के साथ ही 34 साल पुराने रहस्य से पर्दा उठा गया है |रिपोर्ट में कहा गया है कि गुमनामी बाबा , नेताजी सुभाष चंद बोस नहीं थे | बल्कि वो  भगवन जी उर्फ़ गुमनामी बाबा थे | उनका अक्स सुभाष चंद बोस से जरूर मेल खाता था | वे नेताजी की ही तरह बोलते थे और उनके वैसे ही हाव-भाव थे | उनके घर पर मिली वस्तुओ से यह साबित नहीं हो सका कि 18 सिंतबर 1985 को अयोध्या में मरने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही थे | यह निष्कर्ष न्यायमूर्ति विष्णु सहाय आयोग की जांच रिपोर्ट में कई तथ्यों पर आधारित है |  आयोग पिछले तीन साल से गुमनामी बाबा के बारे में जांच कर रहा था | आयोग ने 130 पेज की रिपोर्ट उत्तर प्रदेश विधानसभा में पेश की है  |

 रिपोर्ट में आयोग ने लिखा कि गुमनामी बाबा नेताजी के अनुयायी थे और उनकी आवाज नेताजी की तरह थी |  गुमनामी बाबा का निधन 16 सितंबर 1985 हो गया था और उनका अंतिम संस्कार 18 सितंबर 1985 को अयोध्या स्थित गुप्तार घाट पर किया गया |  रिपोर्ट में कहा गया, “फैजाबाद (अयोध्या) स्थित राम भवन से चार चीजें बरामद हुईं, जहां गुमनामी बाबा उर्फ भगवानजी अंतिम समय तक निवास करते रहे, जिनसे यह पता नहीं लगाया जा सकता कि गुमनामी बाबा ही सुभाष चंद्र बोस थे| ” कुल 130 पेज की रिपोर्ट में 11 बिंदु बताए गए हैं, जिनमें गुमनामी बाबा के नेताजी का अनुयायी होने के संकेत मिलते हैं |

रिपोर्ट में कहा गया, “वे (गुमनामी बाबा) नेताजी सुभाष चंद्र बोस के अनुयायी थे, लेकिन जब लोग उन्हें नेताजी सुभाष चंद्र बोस बुलाने लगे तो उन्होंने अपना आवास बदल दिया.”आयोग ने कहा कि वे संगीत, सिगार और खाने के शौकीन थे और उनकी आवाज नेताजी की आवाज जैसी थी जो ‘कमांड’ का एहसास कराती थी आयोग ने अपनी बात सिद्ध करने के लिए यह तर्क भी दिए कि गुमनामी बाबा नेताजी हो सकते थे, लेकिन यह कहने के लिए वे नहीं हैं. आयोग ने कहा, “यह शर्मनाक है कि उनका अंतिम संस्कार ऐसे हुआ कि उसमें सिर्फ 13 लोग शामिल हो सके. उन्हें इससे बेहतर विदाई दी जानी चाहिए थी.”न्यायमूर्ति सहाय जांच आयोग को जांच आयोग कानून 1952 के अंतर्गत 28 जून 2016 को गठित किया गया था. आयोग ने अपनी रिपोर्ट 19 सितंबर 2017 को सौंपी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए 31 जनवरी 2013 को आयोग गठित करने का आदेश दिया था | 

आयोग ने कहा कि वे बंगाली थे और वे बंगाली, अंग्रेजी और हिंदी अच्छे से बोलते थे तथा उन्हें युद्ध और समकालीन राजनीति की अच्छी जानकारी थी लेकिन उन्हें भारत में शासन की स्थिति में रुचि नहीं थी | आयोग की रिपोर्ट में न्यायमूर्ति सहाय ने कहा कि 22 जून 2017 को फैजाबाद जिला अधिकारी के कार्यालय स्थित जिला ट्रीजरी में मौजूद दस्तावेजों का निरीक्षण करने पर उन्हें ऐसे सबूत मिले, जिनसे गुमनामी बाबा को नेताजी बताने वाले दावे पूरी तरह नष्ट हो गए | सहाय ने कहा कि उसमें किसी बुलबुल द्वारा कोलकाता से 16 अक्टूबर 1980 को लिखा गया एक पत्र मिला, जिसमें लिखा था, “आप मेरे यहां कब आएंगे? हम बहुत खुश होंगे अगर आप नेताजी की जयंती पर यहां आएं | ” उन्होंने कहा कि इससे स्पष्ट होता है कि गुमनामी बाबा नेताजी नहीं थेइस रिपोर्ट में कहा गया है कि भगवान असाधारण और मेधावी थे | युद्ध राजनीति व सामयिकी की उन्हें गहन जानकारी थी | उनका स्वर और भाव नेताजी की ही तरह था  |  जो उन्हें सुनता वो सम्मोहित हो जाता था | वे पूजा -पाठ और ध्यान में पर्याप्त समय बिताते थे | जांच रिपोर्ट को तथ्य परख साबित करने के लिए आयोग ने केंद्रीय विधि विज्ञान प्रयोगशाला, कोलकाता से भी जांच में सहयोग लिया था |