छत्तीसगढ़ की कार्पोरेट सेक्टर में निगेटिव मार्किंग, निवेशकर्ताओं ने खींचा हाथ, कांग्रेस सरकार के डेढ़ साल के कार्यकाल में कोई बड़ा निवेश और MOU नहीं, राज्य में वर्षों से काबिज नामी गिरामी उद्योग धंधे भी अब समेटने लगे कारोबार, मौजूदा स्थिति में रोजगार और औद्योगिक उत्पादन को लेकर पिछड़ने लगा छत्तीसगढ़

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रायपुर / छत्तीसगढ़ में धीरे धीरे कई बड़ी औद्योगिक इकाइयां अपना काम समेटती जा रही है | इन इकाईओं में उत्पादन में जहां जबरदस्त गिरावट आई है, वही कई निवेशकर्ताओं ने अपने हाथ खींच लिए है | राज्य में बीते डेढ़ साल में बड़े निवेशकर्ताओं के आने की उम्मीद थी, लेकिन राज्य की नीतियों और लॉकडाउन से निर्मित स्थिति की वजह से परिस्थितियां अनुकूल नहीं हो पाई | मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत समेत अधिकारीयों के एक दल ने राज्य में निवेश बढ़ाने को लेकर विदेश का दौरा भी किया था | लेकिन इस दौरे के बाद भी निवेशकर्ताओं ने राज्य में कोई रूचि नहीं दिखाई | आखिर क्यों ? इसे लेकर औद्योगिक घरानों और बैंकिंग सेक्टर में माथा पच्ची हो रही है |

जानकारों की दलील है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को औद्योगिक विकास के लिए योजनाबद्ध तरीके से प्लानिंग करनी होगी | वे मानते है कि मौजूदा स्थितियों में निवेशकर्ताओं के बीच छत्तीसगढ़ की नकारात्मक छवि बनती जा रही है | राज्य में NMDC के उत्पादन में गिरावट आई है | कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद NMDC और राज्य सरकार के बीच कई मौकों पर रस्साकसी की स्थिति देखी जा रही है |

यह भी चर्चा आम हो चली है कि अडानी इंडस्ट्री ने भी निवेश और नई योजनाओं से हाथ खींच लिए है | जानकारी के मुताबिक बालको, एस्सार, टाटा और NMDC ने अब छत्तीसगढ़ के बजाये दूसरे राज्यों का रुख किया है | एस्सार ग्रुप ने बस्तर में अपनी सारी औद्योगिक इकाईयां बंद कर दी है |

NMDC और CMDC प्रोजेक्ट भी ठप्प हो गया है | अब इनके पुनरागमन की कोई सम्भावनाये नज़र नहीं आ रही है | इन कंपनियों की राज्य से रवानगी प्रदेश के राजस्व ने बड़े नुकसान की ओर इशारा कर रही है | अडानी इंडस्ट्रीज के भी छत्तीसगढ़ से अपने सभी कारोबार समेटना शुरू कर दिया है | दिलचस्प बात यह है कि यह तमाम औद्योगिक  समूह छत्तीसगढ़ के बजाये अन्य दूसरे कांग्रेसशासित राज्यों का रुख कर रहे है |

इनमे राजस्थान, झारखंड, महाराष्ट्र और पंजाब शामिल है |बालकों ने भी राज्य में अपनी विकास योजनाओं को रोक दिया है | बताया जाता है कि कांग्रेस सरकार के सत्ता में आते ही पहली गाज बालको की सोनाखान योजना पर गिरी थी |इसके बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने टाटा समूह की बस्तर से रवानगी कर दी |

टाटा समूह ने यहाँ स्थापित होने वाले इस्पात संयंत्र में अरबो के निवेश का फैसला किया था | लेकिन वो स्थानीय परस्थितियों की वजह से समय पर उद्योग स्थापित नहीं कर पाए | आखिरकार राज्य सरकार ने दिसम्बर 2008 में अधिगृहीत की गई 1707 किसानों की 1764 एकड़ से अधिक जमीन उन्हें वापस कर दी | हालाँकि प्रभावित किसान राज्य सरकार से अपनी भूमि वापस दिलाने की मांग लम्बे समय से कर रहे थे। राज्य में निवेश वापसी का कदम यही नहीं थमा | बस्तर में ही NMDC और CMDC के एक संयुक्त प्रोजेक्ट को भी छत्तीसगढ़ सरकार ने झटका दिया | इस प्रोजेक्ट को रद्द करने के पीछे कई कारण गिनाये गए |

अब कोरोना संक्रमण के चलते चीन से कई औद्योगिक इकाइयों ने अपना हाथ खींचा है | लेकिन इन औद्योगिक इकाईयों ने छत्तीसगढ़ के बजाये दूसरे प्रदेशों में दिलचस्पी दिखाई है | हालाँकि छत्तीसगढ़ सरकार ने इन कंपनियों और अन्य निवेशकर्ताओं को आकर्षित करने के लिए कुछ योजनाओं का ऐलान भी किया है | लेकिन अब तक राज्य में किसी नए निवेशकर्ताओं या प्रोजेक्ट पर कोई MOU नहीं सामने आया है | छत्तीसगढ़ में औद्योगिक विकास की अभी भी काफी सम्भावनाये है | यहाँ कोयला और इस्पात उद्योग में निवेश की गुंजाइश भरपूर मानी जा रही है | कच्चा माल और मैनपॉवर की भी कोई कमी नहीं है |

इस सब के बावजूद आखिर क्यों औद्योगिक विकास डगमगा रहा है | इस ओर सरकार को सोचना होगा | प्रदेश में अंबिकापुर, रायगढ़, जांजगीर, कोरबा, बस्तर, कांकेर, सुकमा, राजनांदगांव, कर्वधा, धमतरी और बालोद में भी नए औद्योगिक जोन के लिए पर्याप्त संसाधन मौजूद है | राज्य सरकार इन इलाकों में सुनियोजित औद्योगिक विकास की नए सिरे से नींव रख सकती है | कुछ निवेशकर्ताओं की दलील है कि राज्य सरकार अपनी औद्योगिक नीतियां स्वयं निर्धारित करती है | उसी के अनुसार निवेशकर्ता भी अपनी योजनाओं को तैयार करते है | लेकिन जैसे ही उस राज्य में संबंधित दल, विपक्ष या नई सरकार सत्ता में आती है, उसकी औद्योगिक नीति समायोजित नहीं होती बल्कि उसकी दिशा ही बदल जाती है |

इसके चलते निवेशकर्ताओं को भारी भरकम नुकसान उठाना पड़ता है | यही नहीं कुछ निवेशकर्ताओं की यह भी दलील है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के डेढ़ साल के कार्यकाल में औद्योगिक इकाईयां और उनकी समस्याएं यथावत रही | नतीजतन इसका असर उसके उत्पादन पर पड़ा | धीरे -धीरे स्थिति ऐसी निर्मित हुई कि उद्योग धंधे चौपट होने लगे | निवेश ठप्प हो गया | उधर औद्योगिक इकाईयां बंद होने से बेरोजगारी का प्रतिशत अचानक बढ़ गया | यही नहीं जो उद्योग धंधे ठप्प हुए और उद्योगपतियों ने नए निवेश से हाथ खींच लिया, उस पर निर्भर उद्योग भी ठप्प होते चले गए | मसलन मैनपॉवर, छोटे उद्योग धंधों, ट्रांसपोर्ट जैसे कारोबार नई समस्याओं से घिर गए | 

औद्योगिक जानकार बताते है कि एक दल से दूसरे दल की सरकार आने के बाद उद्योगपतियों को निशाने पर ले लिया जाता है | इसके चलते उत्पादन और निवेश दोनों प्रभावित होता है | बेहतर हो कि सत्तारूढ़ होने वाली सरकार औद्योगिक संभावनाओं पर सकारत्मक दृष्ट्रिकोण निर्मित करे | उनका मानना है कि व्यापारी या उद्योगपति किसी विशेष राजनैतिक दल का समर्थक नहीं होता | वो तो बाजार का जोखिम उठाकर राज्य के औद्योगिक विकास में सहभागी बनता है | जानकार यह भी कहते है कि बड़े निवेशक सरकार की नीतियों का पालन करते हुए ही निवेश की ओर प्रवर्त होते है | सत्तारूढ़ होने वाली सरकारों को उन्हें राजनैतिक चश्मे से नहीं देखना चाहिए |

औद्योगिक घरानों और निवेशकर्ताओं को छत्तीसगढ़ सरकार से काफी उम्मीदे है | उनका मानना है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हाल ही में सिंगल विंडो सिस्टम की जो घोषणा की है, उसे जल्द ही अमली जामा पहनाना चाहिए | वो मानते है कि मौजूदा औद्योगिक परिस्थितियों में राज्य सरकार को सिर्फ उद्योग धंधे ठप्प होने से लगभग पांच हज़ार करोड़ सालाना राजस्व का नुकसान हो रहा है | जबकि चालीस से पंचास हज़ार करोड़ का निवेश बजाये छत्तीसगढ़ के दूसरे राज्यों में स्थानांतरित हो गया है|   

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