नई दिल्ली / बिहार विधानसभा चुनावों की मैराथन मतगणना आखिरकार देर रात जाकर समाप्त हुई। जब सभी 243 सीटों पर आखिरी रिजल्ट घोषित किया गया तो एनडीए का खेमा उत्साह से भर गया। एनडीए ने 125 सीटों पर जीत के साथ बहुमत का आंकड़ा प्राप्त कर लिया है। वहीं तेजस्वी के नेतृत्व में महागठबंधन की गिनती 110 पर सिमट गई। वहीं चिराग पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी को 1 और अन्य के खाते में 7 सीटें आई, इसमें से 5 सीटों पर ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का प्रत्याशी जीता है।
कोरोना संक्रमण के चलते अभूतपूर्व परिस्थिति में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम की तस्वीर आधी रात के बाद साफ हो सकी। एनडीए ने भले नीतीश की अगुवाई में चुनाव लड़ा, लेकिन उनकी खुद की पार्टी जदयू को पिछले विधानसभा चुनाव से 28 सीटें कम मिली। जबकि वोट प्रतिशत घटने के बावजूद भाजपा की सीटें बढ़ी हैं। वहीं, राजद 75 सीटों पर जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी है।
चुनाव आयोग ने पहले ही बता दिया था कि बिहार विधानसभा चुनाव की मतगणना में सामान्य से अधिक समय लगेगा और यह देर रात तक चलेगी, क्योंकि इस बार 63 प्रतिशत अधिक ईवीएम का इस्तेमाल किया गया है। चुनाव आयोग के अधिकारियों ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पत्रकारों को बताया कि तीन चरणों में हुए चुनाव में करीब 4.16 करोड़ मत पड़े थे। बिहार में कुल करीब 7.3 करोड़ मतदाताओं में से 57. 09 प्रतिशत लोगों ने मताधिकार का प्रयोग किया |
कोविड-19 वैश्विक महामारी के मद्देनजर सामाजिक दूरी बनाए रखने के नियम के पालन के लिए आयोग ने 2015 विधासनसभा चुनाव की तुलना में इस बार मतदान केन्द्रों की संख्या बढ़ा दी थी। इससे पहले, 2015 चुनाव में करीब 65,000 मतदान केन्द्र स्थापित किए गए थे, जिन्हें बढ़ाकर इस बार 1.06 लाख कर दिया गया था।
इसके चलते इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) भी अधिक इस्तेमाल करनी पड़ीं। इस बार हर मतदान केंद्र पर मतदाताओं की संख्या 1,000 से 1,500 तक तय की गई थी, ताकि सामाजिक दूरी सुनिश्चित की जा सके। इसके लिए मतदान केंद्रों की संख्या बढ़ानी पड़ी।
15 साल सरकार में रहने और कोरोनाकाल की कठिन परिस्थितियों के बावजूद नीतीश की अगुवाई में एनडीए को वैसा नुकसान नहीं उठाना पड़ा, जैसा एग्जिट पोल में दिखाया जा रहा था। जदयू और नीतीश के खिलाफ नाराजगी के बावजूद सरकार विरोधी वोट बांटने की रणनीति कामयाब रही। चुनाव प्रबंधन और सियासी समीकरण ऐसे बने कि बिहार में करीब 20 साल बाद भाजपा बड़े भाई की भूमिका में आ गई। वहीं, चुनाव से ठीक पहले जीतनराम मांझी की हम और मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी के महागठबंधन से अलग होने का नुकसान राजद को उठाना पड़ा।