महानदी में निकला 500 साल से भी पुराना मंदिर, गुजरात में समुद्र में डूबी कृष्ण भगवान की द्वारिका नगरी की तर्ज पर एक और पानी में डूब चुकी नगरी के मिले अवशेष, देखने उमड़ी भारी भीड़, मंदिर के अवशेष को लेकर कई रहस्मय कहानियां

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भुवनेश्वर वेब डेस्क / महानदी के किनारे कई प्राचीन मंदिर आज भी मौजूद है | फर्क सिर्फ इतना है कि ये सभी मंदिर पानी में समां चुके है | कभी कोई प्राकृतिक घटना या फिर पानी के इधर उधर होने से उन मंदिरों के अवशेष लोगों के सामने आते है | इतिहास बताता है कि महानदी के उद्गम स्थल छत्तीसगढ़ से लेकर ओडिशा तक एक प्राचीन सभ्यता मौजूद थी | यही नहीं जल यातायात के जरिये आवागमन का साधन भी था | छत्तीसगढ़ की धरती से निकलने वाली महानदी के तमाम तटों पर बंदरगाह के प्रमाण भी मिलते है | यह भी बताया जाता है कि इस नदी के दोनों ओर कई प्राचीन महानगर थे | छत्तीसगढ़ से निकलने वाली यह नदी ओडिशा की जीवन रेखा है | यह नदी आगे जाकर समुद्र में मिल जाती है |

हाल ही में ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर के नयागढ़ स्थित महानदी के तट पर करीब 500 साल पुराना एक मंदिर पानी से उभर आया है | इस मन्दिर को देखने के लिए दूर दूर से लोग आ रहे है | हालाँकि अचानक नदी में उभरकर ऊपर आये मंदिर को देखकर लगता है कि यह इसका एक हिस्सा है | शेष मंदिर आज भी पानी में समाया हुआ है | इसकी खोज की जरुरत है | लोगों के मुताबिक उभर आये इस मंदिर को गोपीनाथ का अति प्राचीन मंदिर के रूप में बताया जा रहा है | कुछ लोगों के मुताबिक मंदिर का यह हिस्सा कुछ साल पहले भी दिखाई दिया था | तब भी इसे देखने के लिए लोगों की भीड़ लग गई थी |

जानकारी के मुताबिक इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज की महानदी वैली हेरिटेज साइट्स डॉक्यूमेंटेशन के एक प्रोजेक्ट को पूरा करने में जुटी है | इसी बीच इस मंदिर के उभर आने से यह प्रोजेक्ट चर्चा में आ गया है | इस प्रोजेक्ट के असिस्टेंट दीपक कुमार नायक ने इसके बारे में अपने फेसबुक पर विस्तार से अपने विचार व्यक्त किये है | उन्होंने इससे जुड़ी तस्वीरें भी साझा की हैं | दीपक कुमार नायक ऐतिहासिक धरोहरों के बारे में रुचि रखने वाले रवीन्द्र कुमार की मदद से इस साइट का मुआयना किया था | उन्होंने बताया कि इस जगह पर कई वर्ष पहले गोपीनाथ मंदिर भगवान श्रीकृष्ण का ही मंदिर था |

कुछ लोगों ने यह भी बताया कि पहले इस जगह पर पद्मावती गांव था | यह पद्मावती गांव का मंदिर है | दीपक कुमार नायक ने अपने खोज के माध्यम से बताया कि अतीत में पद्मवती गांव सतपतना का हिस्सा था, अर्थात 7 गांव का गठजोड़ था | उनके मुताबिक 19वीं शताब्दी में एक बाढ़ के कारण धीरे-धीरे पद्मावती गांव का बड़ा हिस्सा गहरे जल में डूब गया | जान बचाने के लिए इस गांव की आबादी आसपास के ऊंचे स्थानों पर आ बसी | दीपक कुमार नायक ने यह भी लिखा कि कई बार वहां जाने के बावजूद विभिन्न कारणों से हम इसकी खोज नहीं कर पाए थे | 

लेकिन 7 जून को अचानक उनके मित्र राणा ने उन्हें बताया कि मंदिर का ऊपरी भाग अब नदी में कुछ दिनों से दिखने लगा है | इसके बाद वे यहाँ का जायजा लेने पहुंचे | उन्होंने यह सब देखा और कैमरे में कैद किया | अपने फेसबुक पोस्ट में दीपक लिखते हैं कि गोपीनाथ मंदिर को बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाला पत्थर वही लग रहा है जिनका प्रयोग 15वीं और 16वीं शताब्दी में मंदिरों को बनाने के लिए किया जाता था | इसके अलावा वे उन जगहों पर गए जहां गोपीनाथ की पूजा की जाती है | इससे पहले भी 11 वर्ष पूर्व गोपीनाथ मंदिर का कुछ भाग दिखाई दिया था | लेकिन तब यह बहुत कम समय के लिए उभरा था 

उधर महानदी प्रोजेक्ट के प्रमुख अनिल धीर के मुताबिक इंडियन नेशनल ट्रस्ट फार आर्ट एण्ड कल्चरल हेरिटेज ने डॉक्यूमेंटेशन ऑफ दि हेरिटेज आफ दि महानदी रिवर वैली प्रोजेक्ट शुरू किया है | उनके मुताबिक छत्तीसगढ़ से महानदी के निकलने वाले स्थान से जगतसिंहपुर जिले के पारादीप तक 1700 किमी. (दोनों तरफ) के किनारे से 5 से 7 किमी. के बीच सभी पुरानी कृतियों की पहचान और रिकार्डिंग की जा रही है | उन्होंने बताया कि आने वाले वर्ष फरवरी तक इसकी सूची प्रकाशित की जाएगी | 

उधर पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर से जुड़े कई इतिहासकार बताते है कि प्राचीन काल में इस स्थान पर करीब 22 मंदिर थे | अकेला यही गोपीनाथ मंदिर का कुछ भाग ही पानी का स्तर कम होने पर इसलिए दिखाई देता था, क्योंकि यह उस समय का सबसे बड़ा मंदिर था | उन्होंने कई ओडिशी धार्मिक कहानियों और ग्रंथों में इस मंदिर के स्वरुप के वर्णन का हवाला देते हुए इसे प्राचीन काल की समर्द्ध नगरी बताया है | जो अब गुजरात के द्वारिका की तर्ज पर पानी में डूब चुकी है |