अहमदाबाद / वर्षाऋतु की समाप्ति के बाद फसल कटाई का दौर शुरू हो गया है | ज्यादातर राज्यों में खेती किसानी से जुड़े लोगों ने अपने फॉर्म्स और खेत खलियानों का रुख किया है | फसल कटाई में पेशेवर मजदूरों की कमी अब स्कूली बच्चे कर रहे है | दरअसल कोरोना संक्रमण काल में निजी स्कूलों में ऑनलाइन पढाई शुरू हो चुकी है | जबकि सरकारी स्कूलों का हाल बेहाल है | नतीजतन इन स्कूलों के कई बच्चे बाल मजदूरी के काम में जुट गए है | उन्हें उनके परिजन भी इस कार्य में मदद कर रहे है | ऐसे बच्चों ने खेत खलियानों में आम मजदूरों के साथ हाथ बटाना अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया है | गुजरात समेत देश के कई राज्यों में स्कूल ना जाने वाले बच्चे चाय – पान के ठेलों से लेकर होटलों और खेत खलियानों में मजदूरी करते नजर आ रहे है |
गुजरात के बिनौला इलाके में कपास की खेती में बालश्रमिकों की भरमार नजर आ रही है | इनमे आदिवासी बच्चों की संख्या सर्वाधिक है | जानकारी के मुताबिक अकेले बिनौला इलाके में कपास के उत्पादन और रख रखाव के लिए करीब 1.30 लाख बच्चों को अवैध तरीके से खेतों में मजदूरी पर लगाया गया है। मजदूरी करने वाले इन बच्चों में बड़ी संख्या आदिवासी बच्चों की है। ऐसे में सरकार की मंशा पर सवालियां निशान लग रहा है | दरअसल बाल मजदूरों को एक दिन के लिए बतौर मजदूरी 150 रुपये मिलते है | इसलिए कई मजदूर परिवारों ने अपने बच्चों को काम पर लगा दिया है | इन बच्चों के परिजन भी मजदूरी कर रहे है |
अहमदाबाद शहर स्थित एक गैर सरकारी संगठन ने यह दावा किया है कि जल्द ही इसपर रोक नहीं लगाई गई तो हज़ारों बच्चे स्कूल जाना छोड़ देंगे | हालाँकि इस मामले में संज्ञान लेते हुए राज्य श्रम विभाग के एक अधिकारी ने कहा है कि वह एनजीओ द्वारा चिह्नित संबंधित क्षेत्रों में टीमों को भेजेंगे और यदि कोई भी गड़बड़ी पाई गई तो कार्रवाई की जाएगी। एक गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर लेबर रिसर्च एंड एक्शन के सुधीर कटियार ने न्यूज़ टुडे को बताया कि बीज कंपनियों से किसानों को कम कीमत मिलना इसकी बड़ी वजह है | उनके मुताबिक इसी के चलते खेती के लिए व्यस्कों के बजाय बच्चों का इस्तेमाल किया जा रहा है, क्योंकि उन्हें कम पैसे देने पड़ते हैं। कटियार ने दावा किया कि आदिवासी बच्चों को एक दिन की मजदूरी सिर्फ 150 रुपये दी जाती है।
उन्होंने बताया कि 10 साल पहले उत्तरी गुजरात में इस तरह के खेतों में बच्चों से काम कराने को लेकर सरकार द्वारा की गई कार्रवाई के बाद अब यह उद्योग बनासकांठा, साबरकांठा, अरवल्ली, महीसागर और छोटा उदयपुर जिलों में स्थानांतरित हो गया। कटियार ने कहा, हालांकि स्थानांतरण की वजह से पलायन और बाल तस्करी दक्षिणी राजस्थान क्षेत्र में उल्लेखनीय रूप से कम हुई लेकिन बिनौला उद्योग में बाल मजदूरी जारी है क्योंकि स्थानीय आदिवासी बच्चे इन खेतों में काम कर रहे हैं। उधर यही हाल आम खेत खलियानों का है | धान, गेहू, मक्का और अन्य साग सब्जियों के बाग बगीचों में बड़ी तादात में स्कूली बच्चे मजदूरी में जुटे है |
उन्होंने बताया कि 10 साल पहले उत्तरी गुजरात में इस तरह के खेतों में बच्चों से काम कराने को लेकर सरकार द्वारा की गई कार्रवाई के बाद अब यह उद्योग बनासकांठा, साबरकांठा, अरवल्ली, महीसागर और छोटा उदयपुर जिलों में स्थानांतरित हो गया। कटियार ने कहा, हालांकि स्थानांतरण की वजह से पलायन और बाल तस्करी दक्षिणी राजस्थान क्षेत्र में उल्लेखनीय रूप से कम हुई लेकिन बिनौला उद्योग में बाल मजदूरी जारी है क्योंकि स्थानीय आदिवासी बच्चे इन खेतों में काम कर रहे हैं। उधर यही हाल आम खेत खलियानों का है | धान, गेहू, मक्का और अन्य साग सब्जियों के बाग बगीचों में बड़ी तादात में स्कूली बच्चे मजदूरी में जुटे है |