कोरबा। छत्तीसगढ़ में भीषण गर्मी से हर इलाके में मौत की आहत सुनाई देने लगी है। सालों बाद एक बार फिर प्यास बुझाने के लिए एक बड़ी आबादी जदोजहद कर रही है। कोई निस्तार के पानी के लिए हलकान है, तो कोई साफ पीने योग्य पानी की तलाश में जुटा है। प्रदेश में गर्मी से मरने वालों की संख्या 13 तक पहुँच गई है। हालांकि गर्मी से होने वाली मौतों का आधिकारिक आंकड़ा शासन – प्रशासन की ओर से अभी सामने नहीं आया है।
पर्यावरण के जानकार बताते है कि बीते 5 सालों में जहाँ बड़े पैमाने पर जंगल काट दिए गए, वहीं पौधा रोपण और जंगलों के रख – रखाव में खर्च होने वाली रकम का बड़ा हिस्सा भी भ्रष्टाचार की भेट चढ़ गया। इन वर्षों में पर्यावरण संरक्षण के कार्यों का गुणवत्ताविहीन होना प्रदेश में बढ़ते तापमान का मुख्य कारण देखा जा रहा है। वन विभाग की योजनाओं और बजट के उपयोग से जुड़े विभिन्न दस्तावेज और आंकड़े बता रहे है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपे बघेल और वन मंत्री मोहम्मद अकबर की अगुवाई में सिर्फ कागजों पर ही विकास कार्य हुए थे।
ऐसे में जरुरी रकम जंगलों के रख – रखाव में खर्च नहीं किये जाने से पर्यवरण असंतुलन की स्थिति निर्मित हो गई है। प्रदेश का तापमान पुराने सभी रिकॉर्ड तोड़ रहा है। वन विभाग के तमाम दावे खोखले साबित हो रहे है। नतीजतन देश के अन्य राज्यों की तुलना में छत्तीसगढ़ के तापमान में रिकॉर्ड तोड़ वृद्धि दर्ज की जा रही है। छत्तीसगढ़ में वर्ष 2013 से लेकर 2018 तक जल, जंगल और जमीन के रख – रखाव पर तत्कालीन अधिकारियों और सरकार ने काफी जोर दिया था। रमन सिंह सरकार के कार्यकाल में नल – जल योजनाओं और जल श्रोतों के अस्तित्व बनाये रखने पर ध्यान देने से पानी को लेकर मचने वाला हाहाकार लगभग ख़त्म हो गया था।
गांव कस्बों में पानी की सुनिश्चित आपूर्ति होती थी, प्राकृतिक जल श्रोतों में पूरे वर्ष पानी नजर आता था। लेकिन 2018 से लेकर 2023 तक जनता से जुड़ी कई योजनाओं पर भूपे और उसके गिरोह ने पानी फेर दिया था। इसके चलते राज्य में पर्यावरण असंतुलन की स्थिति देखी जा रही है। जंगलों से लेकर शहरी आबादी तक इंसानों ही नहीं बल्कि बेजुबान जानवरों की जान पर भी खतरा मंडराने लगा है। कोरबा जिले में बढ़ते तापमान से इंसानों ही नहीं बल्कि पशु – पक्षियों का बेमौत मारा जाना शुरू हो गया है।
पाली विकासखंड के ग्राम परसदा स्थित हनुमान तालाब किनारे चमगादड़ों के रैनबसेरे पर आफत आ पड़ी है। यहाँ पीपल पेड़ के नीचे प्रतिदिन दर्जनों चमगादड़ मरे मिल रहे हैं। स्थानीय लोगो के मुताबिक एक सप्ताह भर के भीतर 100 से अधिक चमगादड़ों की मौत हो चुकी है।
स्थानीय लोगो ने वन विभाग को घटना की जानकारी दी है। बड़ी संख्या में हुई चमगादड़ों की मौत से वन विभाग के अफसर भी हैरत में है। उन्होंने चमगादड़ों की हिफाजत के लिए फ़ौरन निर्देश भी दिए है। मृत चमगादड़ों का पीएम कर मौत की वजह तलाशी जा रही है।
यह इलाका चमगादड़ों की शरण स्थली के रूप में जाना – पहचाना जाता है। मौके पर पक्षियों के बचाव को लेकर जल संकट दूर करने के उपाय किए जा रहे हैं। इस इलाके में तापमान 47 डिग्री के आसपास स्थिर बताया जाता है। पर्यावरण के जानकार बताते है कि पाली ब्लाक में काफी हरियाली रहती थी। यहाँ अधिकांश आबादी वनांचल में निवास करती है। लेकिन बीते 5 वर्षों में जंगलों का रख – रखाव नहीं होने से यहाँ आये दिन कई वन्य जीव मारे जा रहे है। वन संपदा और हरियाली को भरपूर नुकसान उठाना पड़ा है।
बताते है कि इस इलाके में भूपे गिरोह अवैध रूप से कोयला चोरी करता था। यहाँ के जंगलों में विभिन्न प्रजाति के पशु पक्षी रहवास करते हैं। भालू और अन्य जीवों को यहाँ के गांव – तालाबों के आसपास अक्सर देखा जाता था। यहाँ के वृक्षों पर कई प्रकार के पक्षियों का बसेरा है। लेकिन इस बार गर्मियों में उनकी हालत खस्ता नजर आती है। कई जल श्रोत सुख चुके है। कई का तो अस्तित्व भी ख़त्म हो गया है। ग्रामीणों ने बताया कि 5 वर्ष पहले तक इस इलाके में सुबह – शाम सैकड़ों की संख्या में चमगादड़ उड़ान भरते थे।
आसमान से उनका कलरव सुनाई देता था। लेकिन साल दर साल उनकी संख्या घटने लगी। गर्मी में तो मौत की झड़ी लग गई है। ग्रामीणों ने बताया कि वन विभाग प्रमुख ‘कैम्पा राव’ की विवादित कार्यप्रणाली के चलते जंगलों में कोहराम मच गया है। पुरानी सरकार के वन मंत्री की तर्ज पर मौजूदा वन मंत्री को भी साध लेने से कैम्पा राव का भ्रष्टाचार सुर्ख़ियों में है। पीड़ित आबादी ने बढ़ते तापमान और लोगो की मौत को लेकर कैम्पा राव के कार्यकाल की जांच कराने की मांग की है।