अमेरिका समेत कई देशो की निगाहे भारत पर, कोरोना संक्रमितों के इलाज में लिए संजीवनी बूटी सिर्फ हमारे देश में, 30 दिन में 20 करोड़ टैबलेट तैयार कर गेम चेंजर, बन सकता है भारत  

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दिल्ली वेब डेस्क / कोरोना संक्रमण को विश्व से ख़त्म करने की शक्ति केंद्र के रूप में भारत का नाम लिया जा रहा है | अमेरिका के सहायता मांगने के बाद कई देश भारत से संजीवनी बूटी की तर्ज पर मलेरियां में उपयोग आने वाली दवाई की मांग कर रहे है | कोरोना वायरस की वजह से पूरी दुनिया में दहशत का माहौल है | इस वायरस की वजह से हजारों मौतें हो चुकी हैं और सैकड़ों लोग प्रभावित हुए हैं | तो वहीं दुनिया के सुपरपावर कहा जाने वाले देश के अमेरिका सामने भी मुश्किल का दौर है |

कोरोना वायरस की महामारी को देखते हुए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मलेरिया के इलाज में उपयोग होने वाली हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवाई के लिए भारत से मदद मांग के बाद पड़ोसी देशो ने भी गुहार लगाई है | पूरी दुनिया इस दवाई को कोरोना वायरस के इलाज की एक उम्मीद तरह देख रही है | दुनिया के कई देश इस दवाई और उसे निर्मित करने वाले भारत को ‘गेमचेंजर’ के रूप में देखने लगे है |

भारत ने भी ट्रंप की गुहार को देखते हुए हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के निर्यात से बैन हटा दिया है | बताया जा रहा है इस दवाई के लिए पूरी दुनिया को भारत से काफी उम्मीद है क्योंकि इस दवाई की पूरी सप्लाई का 70 फीसदी हिस्सा भारत देश में ही बनता है | दावा किया जा रहा है कि भारत ने अप्रैल-जनवरी 2019-2020 के दौरान 1.22 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन ओपीआई एक्सपोर्ट किया था |

हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवाई का अमेरिका जैसे विकसित देशों में उत्पादन नहीं होता है क्योंकि वहां मलेरिया का नामोनिशान नहीं है | क्लोरोक्वीन सबसे पुरानी और अच्छी दवाइयों में से एक है और इसके साइड इफेक्टस भी कम होते हैं | ये दवा भारतीय बाजारों में काफी कम दामों में उपलब्ध हो जाती है |  

हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवाई का कम्पोजिशन क्लोरोक्वीन से मिलता जुलता ही होता है | लेकिन कोरोना वायरस के चलते कई देशों ने इस पर रोक लगा दी है | क्योंकि वैज्ञानिकों को अभी इस बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है कि कोरोना को खत्म करने में कारगर साबित होगी या नहीं | इतना जरूर है कि जहां कोरोना का संक्रमण ज्यादा है वहां इसके उपयोग की इजाजत दी गई है |  

इंडियन फार्मास्‍यूटिकल अलायंस के महासचिव सुदर्शन जैन का कहना है कि पूरी दुनिया को भारत हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवाई का 70 फीसदी सप्लाई करता है | यही नहीं दावा किया जा रहा है कि भारत में इस दवा बनाने की कैपेसिटी काफी प्रभावी है | भारत 30 दिन में 40 टन हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवाई बनाने की क्षमता रखता है | यानी इस तरह से 20 मिली ग्राम की 20 करोड़ टैबलेट्स बनाई जा सकती हैं |

डॉक्टरों के मुताबिक इस दवाई का उपयोग ह्यूमेटॉयड ऑर्थराइटिस और लूपुस जैसी बीमारियों के लिए भी होता है तो इसका प्रोडक्शन अभी भी बढ़ाया जा सकता है | इस दवाई को बनाने वाली देशी विदेशी कंपनियों के कारखाने भारत में है | भारत के केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय की तरफ से हाल ही में ज़ेडस कैडिला और इप्का लैबोरेट्रीज को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की 10 करोड़ टैबलेट्स बनाने का ऑर्डर दिया गया है |

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प्रांरभिक तौर पर मोदी सरकार इस बात का पता लगाने में लगी हुई है कि भारत को कोरोना वायरस से निपटने के लिए कितनी दवाइयों की जरूरत पढ़ेगी | इसे देखते हुए भारत ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का आउटपुट और प्रोडक्शन को बढ़ा दिया है | उसने अमेरिका को भी साफ कर दिया है कि उसकी प्राथमिकता पड़ोसी देश पहले है | लेकिन कूटनीतिक रूप से भारत ने अमेरिका की सहायता की भी हामी भरी है | जल्द ही यहां संजीवनी बूटी विदेश रवाना होगी |