
2008 के Malegaon Blast Case में नया मोड़ आया है। इस बम विस्फोट में मारे गए छह लोगों के परिवारों ने बॉम्बे उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने विशेष एनआईए अदालत के 31 जुलाई 2025 के फैसले को चुनौती दी है, जिसमें भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत सात आरोपियों को बरी किया गया था। पीड़ित परिवारों की ओर से एडवोकेट मतीन शेख ने याचिका दायर की है और अदालत से इस फैसले को रद्द करने की मांग की गई है।
29 सितंबर 2008 को मालेगांव में एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल में विस्फोट हुआ था। इस धमाके में छह लोगों की मौत हुई और 101 लोग घायल हुए। जांच में पता चला कि यह हमला दक्षिणपंथी चरमपंथियों द्वारा मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने के उद्देश्य से किया गया था। यह मामला हिंदू चरमपंथी समूहों की शुरुआती आतंकी गतिविधियों में से एक माना जाता है, जिसने राजनीतिक और सामाजिक बहस को जन्म दिया था।
विशेष एनआईए अदालत के न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि “मात्र संदेह वास्तविक सबूत की जगह नहीं ले सकता।” अदालत ने अभियोजन पक्ष पर ठोस और विश्वसनीय सबूत पेश करने में विफल रहने का आरोप लगाया। बरी किए गए आरोपियों में प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, मेजर (सेवानिवृत्त) रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी शामिल हैं।
पीड़ित परिवारों ने तर्क दिया है कि विशेष अदालत का फैसला “कानून की दृष्टि से गलत” है और न्याय नहीं करता। एनआईए, जिसने 2011 में मामले की जांच अपने हाथ में ली थी, ने शुरू में आरोपियों को बरी करने का विरोध किया था, लेकिन बाद में सबूतों की कमी के कारण कुछ आरोपियों को क्लीन चिट दे दी। अब हाईकोर्ट इस विवादित फैसले पर अंतिम निर्णय करेगा।