दिल्ली वेब डेस्क / एम्स के डॉक्टर यह पता लगाएंगे की कोरोना संक्रमित मरीज की मौत के बाद आखिर कब तक उसके शरीर पर वायरस जिन्दा रहता है | शव का परीक्षण करने के लिए जांच के बिंदु तय किये जा रहे है | इसके लिए विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम भी गठित की गई है | यह टीम अध्ययन करेगी कि कोविड-19 से मरने वाले व्यक्ति कोरोना वायरस संक्रमण कितने समय तक किसी शव में रह सकता है और क्या इससे संक्रमण का फैलाव हो सकता है। यही नहीं यह भी पता लगाया जायेगा कि ताबूत के भीतर और कब्र पर कोई संक्रमण की गुंजाईश तो नहीं | और तो और संक्रमित मरीज के शवदाह के दौरान भी किसी भी सूरत में संक्रमण का कोई खतरा तो नहीं | दरअसल विश्व के कई देशो में कोरोना संक्रमण के बाद शवों को ठिकाने लगाया जा रहा है | लेकिन इस ओर रिसर्च नहीं हुई है कि डेडबॉडी पर वायरस कितने लंबे समय तक जीवित रह सकता है | यही नहीं उसके ताबूत और कब्र पर संक्रमण का कोई खतरा तो नहीं ? इसके लिए अब संक्रमित मरीज के शवों का पोस्टमार्टम भी होगा |
दिल्ली अस्पताल के फॉरेंसिक प्रमुख डॉ. सुधीर गुप्ता ने कहा कि इस अध्ययन से यह पता लगाने में भी मदद मिलेगी कि विषाणु कैसे मानव अंगों पर असर डालता है। उन्होंने बताया कि इसके लिए मृतक के कानूनी वारिस से सहमति ली जाएगी। उनके मुताबिक सभी क़ानूनी पहलुओं पर विचार करने के बाद जांच पर जोर दिया जा रहा है | उन्होंने कहा कि इस अध्ययन में रोग विज्ञान और अणुजीव विज्ञान जैसे कई और विभाग भी शामिल होंगे।
डॉ. गुप्ता ने बताया कि यह अपने आप में पहला महत्वपूर्ण अध्ययन है इसे सावधानीपूर्वक और योजना बनाकर अमल में लाना होगा | उन्होंने बताया कि इससे हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि वायरस शरीर पर क्या असर डालता है। साथ ही इससे यह भी पता चलने में मदद मिलेगी कि कोरोना वायरस किसी मृत शरीर में कितने समय तक रह सकता है। मेडिकल टर्मनोलॉजी पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि अभी तक मौजूद वैज्ञानिक रिसर्च में पाया गया है कि किसी शव में वायरस धीरे-धीरे खत्म होता है | लेकिन अभी शव को संक्रमण मुक्त घोषित करने के लिए कोई निश्चित समय सीमा नहीं है। लिहाजा इस दिशा में रिसर्च बेहद जरुरी है |
उधर भारतीय स्वास्थ्य अनुसंधान संस्था आईसीएमआर ने भी कोरोना वायरस से मरने वाले लोगों का बिना चीर-फाड़ किए पोस्टमार्टम करने की तकनीक अपनाने की सलाह दी है | आईसीएमआर ने कहा था कि कोविड-19 से मरने वाले लोगों में फॉरेंसिक पोस्टमार्टम के लिए चीर-फाड़ करने वाली तकनीक का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे मुर्दाघर के कर्मचारियों के अत्यधिक एहतियात बरतने के बावजूद शव में मौजूद द्रव तथा किसी तरह के स्राव के संपर्क में आने से इस जानलेवा रोग की चपेट में आने का खतरा हो सकता है। फ़िलहाल कोरोना संक्रमण के फैलाव और वायरस के जिंदा रहने की संभावनाओं पर आधारित यह रिसर्च विश्व समुदाय के लिए भारतीय डॉक्टरों की सबसे बड़ी मदद होगी |