Site icon News Today Chhattisgarh

Mahalaya Paksha 2024: महालय श्राद्ध 18 सितंबर से, इस बार 16 की बजाय 15 दिन का रहेगा श्राद्ध पक्ष

Mahalaya Paksha 2024: भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि पर 18 सितंबर से बुध आदित्य व शश योग की साक्षी में महालय श्राद्ध का आरंभ होगा। इस बार श्राद्ध पक्ष 16 की बजाय 15 दिन का रहेगा। पंचांग के गणना के अनुसार प्रतिपदा तिथि का क्षय होने से यह स्थिति बन रही है। श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त तर्पण, पिंडदान आदि का विशेष महत्व है।

18 सितंबर से महालय श्राद्ध की विधिवत शुरुआत होगी। इस बार महालय श्राद्ध ग्रह गोचर गणना से देखें तो पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र, बुधवार का दिन और मीन राशि के चंद्रमा की साक्षी में आरंभ होगा। ग्रहों में बुध आदित्य योग और शनि का शश योग विद्यमान रहेगा। इस योग में श्राद्ध का आरंभ अच्छा माना जाता है।

पितरों के लिए श्राद्ध जरूर करना चाहिए
हालांकि बुद्ध आदित्य का प्रभाव वर्ष में एक बार श्राद्ध के समय बनता ही है एवं विशेष शश योग का प्रभाव शनि के कुंभ राशि में दो बार बनता है। इस प्रकार के योग में पितरों की आशा तृष्णा अपने अग्रजों पर बढ़ जाती है इसलिए श्राद्ध की प्रक्रिया अवश्य करनी चाहिए।

सूर्य व शनि का केंद्र योग होने से पितरों की पूजा अनिवार्य
यम स्मृति व धर्म ग्रंथों की मान्यता से देखें, साथ ही भारतीय ज्योतिष शास्त्र की गणना से देखें तो सूर्य परम कारक ग्रह बताए जाते हैं। आदित्य लोक की गणना और कथानक पुराणों में प्राप्त होते हैं। वहीं शनि का संबंध यम से माना जाता है।

दोनों ही स्थितियों में परिवार के लोगों से या स्वजन से जलदान, पिंडदान की इच्छा रखते हैं। ऐसी स्थिति में जब सूर्य की तपिश पड़ती है व शनि का प्रभाव दृष्टि संबंध से स्थापित होता है, तो पितरों का अपना प्रभाव बढ़ जाता है। यहां पर पितरों की तृप्ति के लिए ऐसे योग में तर्पण श्राद्ध, पिंडदान या तीर्थ श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

पारिवारिक सुख शांति के लिए श्राद्ध अवश्य करें
गरुड़ पुराण, मत्स्य पुराण, पद्म पुराण, स्मृति ग्रंथ व धर्मशास्त्रीय मान्यता के आधार पर देखें तो पूर्वजों के निमित्त या पितरों के निमित्त श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिए। यह वार्षिकी है अर्थात हर वर्ष करने की प्रक्रिया है। निर्णय सिंधु ग्रंथ में यहां तक कहा गया है कि हर साढ़े दस माह में पितृ क्लेश करता है अर्थात हर साढ़े दस माह में पितरों की ऊर्जा समाप्त होती है।

पुनः ऊर्जा प्राप्त करने के लिए वे पृथ्वी की ओर देखते हैं और अपने अग्रजों से या स्वजन से जलदान या पिंडदान की आशा तृष्णा रखते हैं ऐसी स्थिति में पौराणिक मान्यताओं को समझते हुए स्वजन को पितरों की या पूर्वजों की सेवा अवश्य करनी चाहिए। पिंडदान के साथ-साथ ब्राह्मण भोजन, गायों को घास आदि का अनुक्रम करना चाहिए।

जानिए कब करना है पूर्णिमा व प्रतिपदा का श्राद्ध
गणित को और तिथि के अध्ययन को दृष्टिगत करें या रखें, तो 18 सितंबर के दिन दोपहर 12 बजे तक पूर्णिमा का श्राद्ध करें तथा दोपहर 12 बजे बाद प्रतिपदा का श्राद्ध करें, 1:30 बजे तक प्रतिपदा का श्राद्ध संपन्न कर लेवें। उसके बाद तिथि के क्षय का आरंभ होगा जिसमें श्राद्ध नहीं किए जाते। इसमें अधिक सोचने की आवश्यकता नहीं है यह शास्त्र सम्मत मत है।

Exit mobile version