छत्तीसगढ़ में IPS और IAS अधिकारियों का माफिया राज, राजनैतिक दल के पदाधिकारी के रूप में काम कर रहे है अखिल भारतीय सेवा के अफसर, पश्चिम बंगाल से हालात ज्यादा खराब, ऐसे दागी अफसरों को वापस बुलाएगी केंद्र सरकार? सीनियर अफसरों को ठिकाने लगाने के लिए जूनियर अफसरों ने साजिशों और आपराधिक गतिविधियों को दिया अंजाम

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रायपुर : छत्तीसगढ़ के हालात पश्चिम बंगाल से ज्यादा बद से बत्तर हो गए है। यहां केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में काम करने वाले IPS और IAS अधिकारियों ने अखिल भारतीय सेवाओं के लिए तय सभी मापदंडों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया है। ये अफसर बेख़ौफ़ होकर सत्ताधारी दल के किसी जिम्मेदार पदाधिकारी के रूप में कार्य करने लगे है। राज्य गठन के 21 साल के दौर में कभी ऐसे नजारे देखने को नही मिले जब IPS और IAS अधिकारियों ने किसी सत्ताधारी दल के नेता के लिए चाटुकारिता का इतना बड़ा स्तर तय किया हो। राज्य में पहली बार गैर कानूनी कार्यों को नकारने वाले सीनियर अधिकारी अलग अलग पड़ गए है, वे अपनी नौकरी बचाने के लिए कोर्ट कचहरी का चक्कर काट रहे है। जबकि सत्ताधारी दल के नेताओं की हां में हाँ मिलाने वाले जूनियर अधिकारियों की पौ बाहर है।

छत्तीसगढ़ देश का एक मात्र ऐसा राज्य है, जहां सीनियर अधिकारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग जूनियर तय करते है। इनके एक इशारे पर सीनियर असफर की कुर्सी रातों -रात बदल जाती है। अर्थात जूनियर अफसरों के निर्देशों की ना फरमानी की सजा सीनियर अफसरों को अपने पद और प्रतिष्ठा से हाथ धोने के रूप चुकानी पड़ती है। जरूरत पड़ी तो जूनियर अफसर उन पर फर्जी मुकदमे दर्ज करने में भी पीछे नही रहते। ऐसे अफसरों को सत्ताधारी दल से मिल रही तरजीह के चलते ये अफसर सरकार के ‘कमाऊ पुत’ के रूप में सुर्खियां बटोर रहे है। छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय के चुनाव हो या अन्य राजनैतिक कार्यक्रम या फिर देश किसी भी हिस्से में होने वाले विधान सभा चुनाव इसके लिए फंड इकट्ठा करने की जबावदारी इन्हीं जूनियर अधिकारियों के कंधों पर लाद दी गयी हैं।

सूत्रों के मुताबिक असम के बाद उत्तरप्रदेश समेत अन्य आधा दर्जन राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनाव के कांग्रेसी फंड को इकट्ठा करने के लिए अखिल भारतीय सेवाओं के अफसरों की सेवा सुर्खियों में है। प्रदेश में IPS और IAS अधिकारियों की मौजूदा कार्यप्रणाली को देखकर जहां मुख्य विपक्षी दल BJP उंगलियां उठा रही है। वही सत्ताधारी कांग्रेस ऐसे अफसरों की हौसला अफजाई के लिए कोई कसर बाकी नही छोड़ रही है। राज्य में सत्ताधारी दल के उम्मीदवारों को नगरीय निकाय चुनाव में जिताने की जबावदारी इन अफसरों के कंधों में डाल दिये जाने से नागरिक हैरत में है। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह, सांसद सरोज पांडेय और BJP अध्यक्ष विष्णुदेव साय समेत अन्य विपक्षी दलों के नेताओं की इन IPS और IAS अधिकारियों की कार्यप्रणाली को लेकर बुलंद की गयी आवाज नक्कारखाने में तूती आवाज की तरह दबकर रह गयी है।

गंभीर तथ्य यह है कि अखिल भारतीय सेवाओं के अफसरों द्वारा एडमिनिस्ट्रेटिय सर्विस बुक के नियमों और वर्क रूल के ठीक विपरीत कार्य करने से प्रदेश में संवैधानिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है। सत्ताधारी दल के राजनैतिक लाभ के लिए अफसरों द्वारा मानव अधिकारों के हनन और नागरिकों पर फर्जी मुकदमे लादने से आम नागरिकों का जीना हराम हो गया है। ऐसे में केंद्र सरकार से दागी अफसरों की वापसी की माँग ने जोर पकड़ लिया है। छत्तीसगढ़ कैडर के जूनियर IPS अधिकारियों की कारगुजारियों से केंद्रीय गृहमंत्रालय और DOPT को भी रूबरू होना बेहद जरूरी है। राज्य में जूनियर IPS और IAS अधिकारियों का माफिया राज चर्चा का विषय बना हुआ है। इस मामले में राज्यपाल से भी केंद्र को हकीकत से रूबरू कराने की मांग की जा रही है।

ताजा मामला राज्य के पूर्व DGP DM अवस्थी का है। 1986 के बैच के इस IPS अफसर का मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रातों रात ट्रांसफर कर दिया था। उनके स्थान पर 1989 बैच के अशोक जुनेजा को प्रदेश का नया DGP बनाया गया था। यहां तक तो ठीक है, लेकिन जूनियर IPS अधिकारियों की ना फरमानी अवस्थी को इतनी भारी पड़ी की उन्हें इन दिनों रोजाना अपमानित होना पड़ रहा है। आखिरकर हालात से मजबूर पूर्व DGP ने केंद्र में प्रति नियुक्ति पर जाने के लिए अपना मन बना लिया है। दरअसल DGP के पद से हटाते हुए राज्य सरकार ने DM अवस्थी को पुलिस ट्रेंनिग एकेडमी का डायरेक्टर बना दिया था। नतीजतन अवस्थी को अब अपने जूनियर 1989 बैच के मौजूदा DGP अशोक जुनेजा के अधीनस्थ कार्य करना पड़ रहा हैं। मामला यही नही थमा है। उन्हें अपने से और जूनियर 1994 बैच के अधिकारी ADG ट्रेंनिग SRP कल्लूरी को भी रिपोर्ट करना होता हैं। दरअसल पुलिस ट्रेंनिग एकेडमी में डायरेक्टर के पद पर अभी तक विभागीय पदोंउन्नति वाले प्रमोटी IPS अधिकारी या SP स्तर के अफसरों की तैनाती होती रही है। पहली बार इस पद पर DGP स्तर के अफसर की तैनाती हुई है। यही हाल प्रदेश के DG इंटेलिजेंस के पद का है। इस पद पर जूनियर IG की नियुक्ति की गयी है। 2000 बैच के IPS अधिकारी आनन्द छाबड़ा कांग्रेस के सत्ता में आते ही IG रायपुर रेंज और IG इंटेलिजेना की दोहरी जबावदारी संभाल रहे है। बताया जाता है कि इस पद को हथियाने के लिए साजिश रची गयी थी। जानकारी के मुताबिक 1988 बैच के तत्कालीन DG इंटेलिजेंस संजय पिल्ले की कुर्सी हथियाने के लिए साजिश रची गई थी। इस मामले में आनंद छाबड़ा की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है।

जानकारी के मुताबिक 1988 बैच के पूर्व DG मुकेश गुप्ता की गैर कानूनी रूप से की जा रही फ़ोन टेपिंग के दस्तावेज सुनियोजित रूप से उन्हें उपलब्ध करा दिए गए थे। लीक हुए इन दस्तावेजों का इस्तेमाल मुकेश गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिकाओं में किया था। सूत्रों के मुताबिक ये दस्तावेज रायपुर रेंज के IG आनंद छाबड़ा के कार्यालय से मुकेश गुप्ता को उपलब्ध कराए गए थे। हालांकि इतने गंभीर मामले की बगैर जांच किये जूनियर अफसरों के इशारे पर DG संजय पिल्ले को पुलिस मुख्यालय स्थानांतरित कर दिया गया था। इस दौरान इंटेलिजेंस की जवाबदारी आनंद छाबड़ा के हाथों में आ गयी। केंद्र सरकार के विभिन्न कार्यालयों खासकर ईडी, आयकर, आईबी एवं अन्य विभागों में तैनात वरिष्ठ अधिकारियों के अवैध रूप से फ़ोन टेंपिग की चर्चाएं इन दिनों आम है। यही नही इंटेलिजेंस विभाग के करोड़ों के फंड के राजनैतिक इस्तेमाल और बंदरबाट को लेकर छाबड़ा की कार्यप्रणाली सुर्खियों में है। इसकी जांच बेहद जरूरी बताई जा रही है। हाल ही में प्रदेश के एक वरिष्ठ पत्रकार ने छाबड़ा और उनकी पत्नी शालिनी रैना के खिलाफ गंभीर शिकायते राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और केंद्र सरकार से की है। इस मामले में पुलिस से चार हफ्ते के भीतर एनचारआरसी ने एक्शन टेकन रिपोर्ट भी मांगी है। इंटेलिजेंस विंग में राज्य पुलिस सेवा के एक जूनियर DSP अभिषेक माहेश्वरी को दोहरी पदोनत्ति देते हुए DIG स्तर के पद पर बैठा दिया गया है । इस शख्स के कंधों पर वैध-अवैध फ़ोन टेपिंग के मामले लाद दिए गए है । दरअसल बड़े पदों की कुर्सी पर बैठ कर जूनियर अधिकारी फूले नही समा रहे है । वे कायदे कानूनों की परवाह किये बगैर सत्ता के नशे में हर एक गैर कानूनी कार्य करने को तैयार है।

उधर ईओडब्लू और एसीबी का यही हाल है। आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो और एंटी करप्शन ब्यूरों में डीजी का पद स्वीकृत है। लेकिन एक जूनियर डीआईजी को इसकी कमान सौंप दी गई। इसके चलते भ्रष्टाचार में लिप्त कई वरिष्ठ अफसरों की जांच को लेकर तकनीकी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल इस तैनाती से सीनियर अधिकारियों की जांच जूनियर अधिकारियों के हाथों में आ गई है। वर्तमान में 2005 बैच के आरिफ शेख को इस महकमे के प्रभारी बनाया गया है।

प्रदेश के प्रमुख बिलासपुर, दुर्ग, अंबिकापुर और बस्तर रेंज की कमान भी वरिष्ठ आईजी स्तर के अफसरों के हाथों में होती थी। लेकिन इन रेंज में अब प्रभारी आईजी के रूप में जूनियर डीआईजी की नियुक्ति की गई है। मैदानी इलाकों का तो और बुरा हाल है। जिला पुलिस अधिक्षक के पद पर प्रमोटी आईपीएस अधिकारियों की नियुक्ति को प्राथमिकता दी जाती है। जबकि सीधे आईपीएस बने अफसरों को विभाग की विभिन्न विंग में ‘सेनानी’ जैसे पदों पर सीमित कर उनकी क्षमता का दुरुपयोग किया जा रहा है। ज्यादातर आईपीएस उन्हें बाबू और क्लर्क जैसे कामकाज सौंपने के चलन से नाराज है।

दरअसल छत्तीसगढ़ में जूनियर आईपीएस अधिकारियों का गिरोह बन गया है। ये गिने चुने अफसर माफिया राज की तर्ज पर आपराधिक गतिविधियों को अंजाम दे रहे है। उनका दावा है कि केंद्र सरकार की IB जैसी एजेंसियों के अफसरों को भी वे उपकृत कर रहे है। उन्हें आवास एवं अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई गई है। उनका यह दावा काफी हैरत भरा है। सत्ताधारी दल की खुल्ले आम चाटुकारिता करने से नेता भी ऐसे अफसरों को हाथों हाथ ले रहे है। वही आम जनता, व्यापारी, उद्योगपतियों और पत्रकारों का बुरा हाल है। आईएएस और आईपीएस अफसरों की काली करतूतों को उजागर करने वाले पत्रकारों को जेल का रास्ता दिखाने से प्रदेश में अघोषित इमरजेंसी की स्थिति निर्मित हो गई। प्रेस – मीडिया में सरकार का कब्जा हो जाने के चलते जनता भी हकीकत से रूबरू नही हो पा रही है। छत्तीसगढ़ में संवैधानिक संकट के इस दौर में कांग्रेस अलाकमान से भी राज्य के नागरिक मौजूदा हालात से मुक्ति की मांग कर रहे है।