ताजा खबर : स्किन में 9 घंटे तक जिंदा रहता है कोरोना वायरस, मास्क में सांस लेने पर भी इसकी मौजूदगी, एक्सपर्ट का बड़ा खुलासा

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नई दिल्ली / कोरोना वायरस को लेकर एक नई रिसर्च में दावा किया गया है कि इंसान की त्वचा पर यह वायरस कई घंटों तक जिंदा रह सकता है | एक नई स्टडी में इसकी पुष्टि करते हुए बताया गया है कि कोविड-19 का ट्रांसमिशन काफी हद तक एरोसोल और ड्रॉपलेट्स के माध्यम से होता है | यह रिसर्च ‘क्लीनिकिल इंफेक्शियस डिसीज’ में प्रकाशित की गई है | इस स्टडी में शोधकर्ताओं ने बताया है कि SARS-CoV-2 से बचने के लिए हाथों की अच्छी तरह से साफ-सफाई जरूरी है | वर्ना संक्रमण का अंदेशा बना रहता है |

डॉक्टरों, पैरामेडिकल स्टाफ और हेल्दी वॉलंटियर्स को इंफेक्शन से बचाने के लिए शोधकर्ताओं ने स्टडी के दौरान कैडेवर स्किन का इस्तेमाल किया था | रिसर्च में एक्सपर्ट रिपोर्ट में दावा है कि इन्फ्लूएंजा जैसा घातक वायरस भी इंसान की त्वचा पर 2 घंटे से ज्यादा नहीं टिक सकता | जबकि कोरोना वायरस 9 घंटे से भी ज्यादा देर तक स्किन पर जीवित रह सकता है |

रिसर्च में शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि 80% एल्कोहल वाला सैनिटाइजर सिर्फ 15 सेकेंड किसी भी तरह के वायरस को स्किन से गायब कर सकता है | यूएस फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन भी एल्कोहल वाले सैनिटाइजर से हाथों को धोने की सलाह देता है. सैनिटाइजर या साबुन से 20 सेकेंड तक हाथ धोने से कोरोना संक्रमण का खतरा बिल्कुल खत्म हो जाता है.

काफी समय से लोगों के मन में भय था कि लगातार मास्क पहनकर रखने से शरीर में ऑक्सीजन की कमी से बड़ा नुकसान हो सकता है. इसे लेकर भी रिपोर्ट में खुलासा किया गया है. शोधकर्ताओं ने रिपोर्ट में दावा किया है कि एक एवरेज फेस मास्क अनकम्फर्टेबल हो सकता है, लेकिन फेफड़ों तक पहुंच वाली ऑक्सीजन को ये बाधित नहीं कर पाता है |

शोधकर्ताओं ने गैस एक्सचेंज पर सर्जिकल मास्क को टेस्ट भी किया है. इस प्रक्रिया में शरीर खून को ऑक्सीजन से जोड़ता है और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है | यह रिसर्च 15 हेल्दी फिजीशियन और मिलिट्री के 15 उम्रदराज फेफड़ों के रोग से पीड़ित मरीज को सपाट और कठोर सतह पर 6 मिनट वॉक के दौरान ये परीक्षण किया गया था |

रिसर्च करने वालों ने वॉकिंग टेस्ट से पहले सभी वॉलंटियर्स के खून में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को मापा था | ताकि ठीक रिपोर्ट प्राप्त हो सके | रिसर्चर के मुताबिक, ना तो हेल्दी डॉक्टर्स और ना ही पीड़ित लोगों में टेस्ट के आधे घंटे बाद तक फेफड़ों में ऑक्सीजन का कोई बड़ा बदलाव देखने को मिला था | शोधकर्ताओं ने थोरैक्स जर्नल में कार्बन डाइऑक्साइड के साथ सांस लेने और ऑक्सीजन के स्तर में कमी आने जैसे दावों को खारिज किया है |

रिसर्च में यह भी कहा गया है कि मास्क चेहरे की संवेदनशील नसों को परेशान कर असुविधा पैदा कर सकता है | वह इस्तेमाल करने वालों को गर्म हवा या क्लॉस्ट्रोफोबिया जैसा महसूस करा सकता है. उनके मुताबिक, लेकिन ये बहुत ज्यादा चिंता का विषय नहीं है |