
नवरात्रि का अंतिम दिन भक्तों के लिए बेहद खास माना जाता है। इस दिन माँ दुर्गा के नवें स्वरूप माँ सिद्धिदात्री की पूजा होती है, जिन्हें समस्त सिद्धियाँ प्रदान करने वाली देवी कहा गया है। मान्यता है कि इस दिन की पूजा विधि से साधक को सफलता, समृद्धि और सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें। देवी दुर्गा की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाकर पूजा शुरू करें। माँ सिद्धिदात्री को पीले फूल, चंदन, रोली, अक्षत, धूप और दीप अर्पित करें। भोग में तिल से बनी मिठाइयाँ, नारियल और खीर चढ़ाना शुभ माना जाता है। इसके बाद “ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः” मंत्र का जाप करें और पुष्पांजलि अर्पित करें। भक्त दुर्गा सप्तशती के सिद्ध कुंजिका स्तोत्र या नवदुर्गा स्तुति का पाठ भी कर सकते हैं।
कन्या पूजन का महत्व
नवमी के दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व है। 2 से 10 वर्ष तक की नौ कन्याओं को देवी का रूप मानकर आमंत्रित करें। उनके चरण धोकर आसन पर बैठाएं और पूड़ी, चने व हलवे का भोग कराएं। प्रत्येक कन्या को चुनरी, फल, दक्षिणा और उपहार भेंट करें। परंपरा के अनुसार, एक छोटे बालक को भी “भैरव” स्वरूप में पूजना चाहिए।
पूजन के अंत में देवी की आरती करें और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए आशीर्वाद माँगें। इसी दिन व्रत का पारण (उपवास का समापन) भी किया जाता है। पूजा पूर्ण होने के बाद कलश विसर्जन कर माँ दुर्गा से अगली नवरात्रि में पधारने की प्रार्थना करें।