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आईएएस पर भारी राज्य कैडर
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कहा जा रहा है पूर्वोत्तर के राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ में भी आईएएस पर एसडीएम कैडर भारी पड़ने लगा है। फिलहाल राज्य के 28 में से 10 जिलों में प्रमोटी आईएएस कलेक्टर हैं। एक ज़माना था जब राज्य में एक साथ दो-चार प्रमोटी आईएएस को कलेक्टरी का मौका मिल जाता था तो बड़ी बात होती थी। कलेक्टरी ही नहीं, सरकार में भी प्रमोटी आईएएस का रुतबा दिख रहा है। पांचों कमिश्नरी प्रमोटी आईएएस के जिम्मे है, वहीं आबकारी, सामान्य प्रशासन, राजस्व और उच्च शिक्षा विभाग के मुखिया भी प्रमोटी आईएएस हैं। कृषि और स्कूल शिक्षा विभाग के साथ दीगर कुछ विभागों के प्रमुख भी डिप्टी कलेक्टर से आईएएस बने अफसर हैं। महासमुंद जिले में प्रमोटी आईएएस डोमन सिंह कलेक्टर हैं, यहां के तीन में से दो सब डिवीजन में तहसीलदार से पदोन्नत डिप्टी कलेक्टर और एक सब डिवीजन में सीधी भर्ती वाले डिप्टी कलेक्टर एसडीएम हैं। कहते हैं, पहले महासमुंद में एक न एक सीधी भर्ती वाला आईएएस एसडीएम होता था और अधिकांश समय यहां डायरेक्ट आईएएस कलेक्टर रहे हैं। अभी डायरेक्ट आईएएस रवि मित्तल महासमुंद के जिला पंचायत सीईओ हैं। माना जा रहा है कि प्रमोटी आईएएस अफसर राज्य की जमीन से जुड़े होते हैं और उन्हें स्थानीय भाषा-बोली का ज्ञान होता है। धारणा है कि ये समय के अनुरूप मोल्ड भी हो जाते हैं। कहा जा रहा है, यही वजह है कि भूपेश सरकार प्रमोटी आईएएस अफसरों को अपने अनुकूल पा रही है और उन पर भरोसा कर उनका दायरा बढ़ा रही है। भाजपा राज में आईएफएस अफसर शासन पर हावी थे। यह तो समय-समय की बात है।
भूपेश के त्योहारी तीर
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छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तीजा, पोला, हरेली के बाद अब छेरछेरा पुन्नी त्योहार मनाकर स्थानीय अस्मिता का नया ज्वार पैदा कर दिया है। राज्य में इन त्योहारों को लोग हर साल मनाया करते थे, लेकिन अब तक उसे किसी ने न तो छत्तीसगढ़ की अस्मिता से जोड़ा था और न ही किसी ने राजनीतिक रंग दिया था। हरेली में गेड़ी चढ़कर और छेरछेरा में अनाज मांगकर भूपेश बघेल ने जनता के बीच जो छत्तीसगढ़िया छवि बना ली है, उसकी काट विरोधियों को नजर नहीं आ रही है। भाजपा नेता भी मानने लगे हैं कि त्योहारों को राज्य की अस्मिता से जोड़ने में भूपेश बघेल ने बाजी मार ली। भूपेश की छत्तीसगढ़िया छवि का जवाब देने के लिए भाजपा नेता एक रैली में सिर पर गमछा बांधकर बैलगाड़ी में सवारी करते दिखे। गेड़ी चढ़ने और सोंटा खाने की राजनीति को लेकर विरोधी भले ही भूपेश बघेल पर निशाना साधे, पर एक बात साफ़ है कि उनके त्योहारी तीर की काट विपक्ष के पास तो नहीं दिख रही है।
ऊंचे लोगों की कृपा का इंतजार
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पीड़ित व्यक्ति को ऊंचे पद पर बैठे लोगों से न्याय की आस रहती है और माना जाता है कि उनके पास कोई कागज या फाइल पहुंचेगी तो उसका निराकरण त्वरित हो जायेगा, लेकिन ऊंची कुर्सी पर विराजमान व्यक्ति ही कागज या फाइल पर कुंडली मारकर बैठ जाए तो क्या कहा जाय ? ऐसा ही कुछ छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल में हो रहा है। यहां तीन अध्यक्ष आ चुके हैं और कई एमडी बदल गए हैं, लेकिन अधिकारियों-कर्मचारियों की पदोन्नति की फाइल एक साहब के टेबल पर ही धूल खा रही है। फाइल नहीं खिसकने के कारण जूनियर इंजीनियर न तो सहायक इंजीनियर और न ही सहायक इंजीनियर कार्यपालन अभियंता बन पा रहे हैं। दूसरे अधिकारी-कर्मचारी भी पदोन्नति की बाट जोहते रिटायरमेंट के करीब पहुंचने लगे हैं। कहते हैं पदोन्नति के हकदार होने के बाद भी ये हाल है। पदोन्नति की आस लगाए बैठे अधिकारी-कर्मचारी अब नए चैयरमैन अंकित आनंद की तरफ देख रहे हैं। देखते हैं नए चेयरमैन साहब कृपा बरसाते हैं या फिर मुट्ठी बांधे रहते हैं।
कलेक्टर-एसपी के तबादले की सुगबुगाहट
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चर्चा है कि फ़रवरी के पहले हफ्ते में चार-पांच जिलों के कलेक्टर बदले जा सकते हैं। इसमें कुछ छोटे और कुछ बड़े जिले हो सकते हैं। कहते हैं कि बड़े जिलों के लिए सरकार को अपनी पसंद के दमदार और तेजतर्रार अफसर नहीं मिल पा रहे हैं। विकल्प नहीं मिलने के कारण कुछ बड़े जिले के कलेक्टर बड़ी पारी खेल पा रहे हैं। भूपेश सरकार ने मई 2020 में एक झटके में 23 जिलों के कलेक्टर बदल दिए थे। कुछ महीने पहले ही छोटा फेरबदल कर महासमुंद, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही और नारायणपुर जिले में नए कलेक्टरों की पदस्थापना की गई है।अब फिर कलेक्टरों में फेरबदल की सुगबुगाहट से जिलों में खलबली मची है। कलेक्टरों और जिला पंचायत सीईओ के साथ कुछ जिलों के पुलिस अधीक्षकों के तबादला होने की बात कही जा रही है।
भाजपा के साथ संघ में भी बदलाव
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छत्तीसगढ़ में भाजपा बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है। पहले प्रदेश के प्रभारी महासचिव और सचिव बदले, फिर राष्ट्रीय सह-संगठन मंत्री भी नए आ गए। अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस ) के छत्तीसगढ़ प्रांत प्रमुख भी बदल गए। नौ साल से प्रांत प्रमुख रहे बिसहाराम यादव की जगह डॉ. पूर्णेन्दु सक्सेना को कमान सौंपी गई है। अच्छे हड्डी रोग विशेषज्ञ की छवि वाले डॉ. सक्सेना फ़िलहाल कांग्रेस शासित राज्य में संघ को किस तरह गति और दिशा देते हैं, साथ ही भाजपा से कैसे तालमेल बैठाते हैं, उस पर सबकी नजर है। निर्वाचन के साथ ही संघ पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के हमले ने राजनीतिक गर्मी बढ़ा दी है। माना जा रहा है कि बदलाव के साथ संघ छत्तीसगढ़ में अपने लोगों में नया जोश पैदा करने और भाजपा को मजबूत करने का काम कर सकता है। संघ और दूसरे सहयोगी संगठन भाजपा की बड़ी ताकत हैं। कहा जा रहा है कि भाजपा में अब नए चेहरों को आगे लाने और जिम्मेदारी देने की कवायद चल रही है। खासतौर से आक्रामक और साफ-सुथरी छवि वालों को तलाशा जा रहा है।
त्रिपाठी और सोनी की विदाई कब ?
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भारतीय टेलीकाम सर्विस के अधिकारी वीके छबलानी छत्तीसगढ़ सरकार से रिलीव हो गए। लोग अब कहने लगे हैं कि इस सर्विस के अधिकारी एके त्रिपाठी और मनोज कुमार सोनी की राज्य शासन से विदाई कब होगी। त्रिपाठी और सोनी साहब ने जिस विभाग में ज्वाइनिंग दी थी, वहां से सात साल बाद भी इधर-उधर नहीं हुए हैं। भूपेश सरकार ने सितंबर 2019 से टेलीकाम सर्विस के अधिकारी पोषण चंद्राकर को बीजापुर जिला पंचायत का मुख्य कार्यपालन अधिकारी बनाया है। इसके पहले ये मंत्रालय में शिक्षा विभाग में तैनात थे। मूल रूप से छत्तीसगढ़ के रहने वाले पोषण चंद्राकर 2009 बैच के टेलीकाम अधिकारी हैं। कहते हैं पोषण चंद्राकर को मूल विभाग में भेजने के लिए राजपत्रित अधिकारी संघ और दूसरे कर्मचारी नेताओं ने सरकार को पत्र लिखा है। लोगों को सरकार के कदम का इंतजार है।
छपवाने और छापने का खेल
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कांग्रेस के एक नेता आजकल छपवाने और छापने के खेल में लगे हैं। करीब डेढ़ दशक से छपवाने के काम में लगे नेताजी अब सरकारी छपाई संस्था की शोभा बढ़ा रहे हैं। कहते हैं नेताजी दो नावों में पांव रखकर “दिन दूनी रात चौगुनी” कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं। कहा जाता है छपाई संस्था में “हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा होई जाय” वाली बात है। छपा-छपाई वाले नेताजी का इंस्टेंट काम देखकर कुछ सरकारी उपक्रम के गणपतियों को ईर्ष्या भी होने लगी है। यह तो किस्मत है। कहते हैं किस्मत चमकने के बाद भी नेताजी की हर बात पर रोने की आदत गई नहीं, पर वादे जरूर भूल गए।
समारोह से दूरी का तरीका
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राजनीति में जूनियर-सीनियर का मायने नहीं होता, लेकिन ब्यूरोक्रेसी में जूनियर-सीनियर बड़ा मायने रखता है। इसी के अनुरूप काम भी होता है। कहते हैं कि गणतंत्र दिवस परेड में जूनियर अफसरों की बराबरी में बैठना न पड़े, इस कारण राज्य के एक सीनियर अफसर छुट्टी लेकर राजधानी से बाहर चले गए। राजधानी में न होने से गणतंत्र दिवस समारोह से स्वाभाविक दूरी बन गई। यह तो समय का खेल है, कभी कोई ऊपर, तो कोई नीचे। पर समय के अनुरूप फैसला मनुष्य के हित में होता है। कहते हैं- अपनी इज्जत अपने हाथ।
(-लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)