छत्तीसगढ़ में सत्ता के चार केंद्र
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जमीन से जुड़े नेता हैं। पांच साल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली है। वे संगठन के लोगों को करीब से जानते हैं। मुख्यमंत्री के नाते भूपेश बघेल सत्ता के केंद्र बिंदु हैं। चर्चा है कि इन दिनों कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ-साथ सत्ता के तीन केंद्र और बन गए हैं। कहते हैं मुख्यमंत्री से नाखुश या कहें मुख्यमंत्री जिन्हें पसंद नहीं कर रहे हैं, ऐसे नेता- विधायक स्वास्थ्य मंत्री टी. एस. सिंहदेव, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम के दरबार में चक्कर लगाने लगे हैं। कहते हैं यहां नेता -विधायक अपना सुख-दुःख सुनाने जाते हैं। महंत कांग्रेस के वरिष्ठ और अनुभवी नेता हैं। वे संयुक्त मध्यप्रदेश व केंद्र में मंत्री और दो बार छत्तीसगढ़ कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं। टी. एस. सिंहदेव नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं। अभी कैबिनेट में नंबर टू माने जाते हैं और विधानसभा चुनाव के वक्त उनका तगड़ा जनसंपर्क रहा। प्रदेश अध्यक्ष के नाते मोहन मरकाम भी अब एक पवार सेंटर बन गए हैं। वैसे सत्तारूढ़ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का वैसा जलवा नहीं होता, जैसे विरोधी दल के प्रदेश अध्यक्ष का होता है। चाहे वह कांग्रेस की सरकार हो या फिर भाजपा की। पर संगठन के मुखिया के नाते महत्व को नकारा भी नहीं जा सकता। कहते हैं मुख्यमंत्री ने संसदीय सचिव और निगम-मंडलों की नियुक्ति में महंत, सिंहदेव और मरकाम की पसंद को तवज्जो तो दिया , पर देखते हैं आगे क्या होता है ?
महिला आईएएस के जलवे
कहते हैं किस्मत को कोई बदल नहीं सकता, परिस्थियाँ चाहे जो भी हों। इसका उदहारण है छत्तीसगढ़ कैडर की एक महिला आईएएस अफसर है। बुलंद किस्मत की आईएएस जब भाजपा राज में एक ट्राइबल बहुल जिले की सर्वेसर्वा थीं, तब मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और उनके करीबियों की ख़ास थीं। इतनी खास थीं कि उन्हें डॉ. रमन सिंह ने एक कार्यक्रम के बाद सरकारी प्लेन में अपने साथ प्रधानमंत्री के एक कार्यक्रम की तैयारी के लिए ट्राइबल बहुल जिले के मुख्यालय से मैदानी जिले के मुख्यालय में लेकर आए थे। महिला आईएएस के लिए प्लेन से एक कैबिनट मंत्री को उतारा गया था। कांग्रेस की सरकार आने के बाद उनके चाहने वालों को लग रहा था कि मैडम के बुरे दिन आ जायेंगे। इसके पीछे सोच थी कि, एक तो मैडम पिछली सरकार के काफी करीब थी और वे ट्राइबल बहुल जिले में कांग्रेस के एक बड़े नेता को भाव नहीं देतीं थी , जो अब भूपेश सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। लेकिन मैडम तो पहले से ज्यादा ताकतवर होकर उभरीं। कहते हैं मैडम का मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके करीबी अफसरों से वैसा ही संबंध है , जैसा भाजपा राज में मुख्यमंत्री और उनके करीबी अफसरों से था। मैडम के जलवे से उद्योगपति भी भय खाते हैं। कहते हैं मैडम उद्योगपतियों को अपने दरबार में बुलाती और धमकाती भी हैं । भयभीत क्यों न हो, मैडम किस उद्योग पर कब छापा डलवा दे किसे पता ? फिर मैडम कैबिनेट मंत्री और सांसद को नजरअंदाज कर चलती हैं , तो उद्योगपति किस खेत की मूली हैं। अब उनके जानने वाले यह समझ नहीं पा रहे हैं कि मैडम ने कांग्रेस सरकार पर क्या जादू कर दिया ?
चार अफसर ईडी के निशाने पर
कहते हैं छत्तीसगढ़ के चार पावरफुल अफसरों पर प्रवर्तन निदेशालय ( ईडी ) की निगाहें लगी हुई हैं। इनमें से तीन अफसर तो रिटायर हो चुके हैं , लेकिन अभी सरकार के महत्वपूर्ण पदों पर काम कर रहे हैं। कहते हैं भाजपा के कुछ नेताओं ने इन अफसरों के बारे में ईडी से शिकायत की है और दस्तावेज उपलब्ध कराएं हैं। चर्चा है कि राज्य की कांग्रेस सरकार को हिलाने के लिए प्रवर्तन निदेशालय दबिश दे सकता है। इस साल की शुरुआत में आयकर विभाग ने राज्य के कुछ अफसरों और ठेकेदारों के निवास व दफ्तरों पर ताबड़तोड़ छापे मारकर सनसनी फैला दी थी। यह अलग बात है कि आयकर विभाग को कुछ ख़ास नहीं मिला। कहते हैं इंफोर्स्मेंट डायरेक्ट्रेट कुछ ठोस करने के मूड में है। क्या होता या नहीं, यह तो आगे ही पता चलेगा ?
पावरफुल विशेष सहायक
कहते हैं एक मंत्री के विशेष सहायक ने खरीदी करने वाली संस्था से आईएएस अफसर की विदाई करवा दी। विशेष सहायक मंत्री जी के आँख -कान के साथ नाक के बाल भी हैं। कहा जाता है कि आईएएस अफसर साहब अपने रौब-रुतबे में खरीदी संस्था में तैनात विशेष सहायक के ख़ास अधिकारी पर शिकंजा कस दिया, यह विशेष सहायक जी को चुभ गया। बताया जाता है खास अफसर के जरिए विशेष सहायक साहब अपना हित साधते हैं। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी मुहावरा को चरितार्थ करते विशेष सहायक ने आईएएस को खरीदी संस्था से हटवाने के लिए मंत्री जी से मुख्यमंत्री को नोटशीट लिखवा दिया और आदेश हो गया।
भाजपा नेता की दूरियां
बिलासपुर संभाग के एक भाजपा नेता की संगठन से दूरियां चर्चा का विषय है। डॉ. रमन सिंह की सरकार में काफी पावरफुल रहे नेता के पिता जनसंघ के जमाने से छत्तीसगढ़ में सक्रिय थे। इसके कारण राष्ट्रीय स्तर पर उनकी अलग छवि थी। नेताजी की शैली से उनके अपने करीबी और पिता के साथी दूर होते चले गए। कहते हैं संगठन के एक बड़े नेता से पटरी न बैठने के कारण पार्टी में पहले जैसे अब पूछपरख नहीं रही। चर्चा है कि नेताजी ने फ़िलहाल संगठन के कामकाज से किनारा कर लिया है। कहा जाता है नगरीय निकाय चुनाव में नेताजी को जैसा उत्साह दिखाना था, नहीं दिखाए। इसे भी दूरी का एक कारण माना जा रहा है।