Mangalwar Ke Upay : मंगलवार के दिन बस करें ये एक काम, हनुमान जी हो जाएंगे खुश, जीवन से दूर हो जाएगी सारी पीड़ा…

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Mangalwar Ke Upay : हिंदू धर्म में हर दिन का अपना महत्व होता है। हिन्दू धर्म के लोग हर दिन किसी न किसी देवता की पूजा करते हैं और उनसे अपने जीवन के सभी दुख-दर्द दूर करने की कामना करते हैं, सप्ताह में एक दिन मंगलवार होता है जो बजरंगबली यानी हनुमान जी को समर्पित होता है ऐसे में क्या करना चाहिए आज के दिन हम हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए उनकी कुछ उपाय बताएंगे जिनको अपनाकर आप बजरंगबली को प्रसन्न कर सकते हैं और अपने जीवन में आ रही परेशानियों को दूर कर सकते हैं। मनोकामना कर सकते हैं और यदि यह उपाय सच्चे मन और शुद्ध मन से किया जाए तो बजरंगबली आपकी इच्छा जरूर पूरा करें।

ऐसे करें हनुमान स्तोत्र का पाठ-
हर मंगलवार के दिन स्नान आदि करने के बाद हनुमान मंदिर जाएं और बजरंगबली के समक्ष चमेली केतेल का दीपक जलाएं। इसके बाद भगवान का मनन करते हुए हनुमान स्तोत्र का पाठ करें। इसके बाद विधिवत आरती कर लें। आप चाहे तो हर मंगलवार को प्रसाद के रूप में बूंदी के लड्डू बांट सकते हैं।

भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं, दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम्।

सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं, समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम्॥१॥

सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न।

इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराऽधिनाथ आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः ॥ २॥

सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना, भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ।

कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ, विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम्॥३॥

सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः, कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम्।

प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः॥४॥

प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं, फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत्।

विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्, सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम्॥५॥

नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम्।

सुपुच्छगुच्छतुच्छलंकदाहकं सुनायकं विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम्॥६॥

रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम्।

विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम् सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम्॥७॥

नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता महासहा यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः।

सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम्॥८॥

इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुचेतसा नरः कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः।

प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा न शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह॥९॥

नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे। लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम् ॥ १०॥

ॐ इति श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम्॥