तारीख पे तारीख मिलती जा रही है जज साहब, लेकिन इंसाफ अब तक नहीं मिला, 37 लाख मामले पिछले 10 सालों से कोर्ट में पड़े पेंडिंग, नहीं हुई कोई सुनवाई, 6,60,000 से ज्यादा मामले पिछले 20 सालों से लंबित, 30 सालों से लंबित पड़े केस की संख्या 1,31,000, कब निपटारा होगा कोई नहीं जानता ?

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दिल्ली वेब डेस्क / देश में भले ही न्याय एक वर्ग के लिए तुरंत सुनवाई और फैसले वाला हो, लेकिन एक बड़े वर्ग के लिए इंसाफ दूर की कौड़ी है | वे आस लगाए बैठे है कि उन्हें जल्द इंसाफ मिलेगा | लेकिन हकीकत यह है कि उनके मामले की 10 सालों से पूरी सुनवाई तक नहीं हुई है | ऐसे में कब फैसला आएगा, यह अदालत भी नहीं जानती | वही दूसरी ओर कई बड़े मुद्दों और प्रभावशील लोगों के मामलों में रात भर अदालते खुल जाती है | फैसला भी हो जाता है, भले ही किसी भी पक्ष को राहत मिले | क़ानूनी प्रावधानों के तहत तुरंत सुनवाई की प्रक्रिया अपनाई जाती है |

प्रतीकात्मक तस्वीर

लेकिन देश में लगभग 37 लाख ऐसे वादी और प्रतिवादी है, जो लगभग 10 सालों से मामले के निपटारे का इंतज़ार कर रहे है | एक जानकारी के मुताबिक पूरे भारत में हाईकोर्ट, जिला न्यायलय और तहसील की अदालतों में कुल तीन करोड़ 77 लाख मामलों में से करीब 37 लाख मामले पिछले 10 सालों से लंबित पड़े हुए हैं। यह जानकारी राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड ने दी है | दरअसल NDG राष्ट्रीय स्तर पर अदालतों द्वारा किए जा रहे कार्यों की निगरानी करता है।

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NDG के मुताबिक 28 लाख मामले जिला और तहसील अदालत में लंबित हैं। जबकि देश के विभिन्न हाई कोर्ट में 9,20,000 केस लंबित हैं। इस डाटा से यह भी बताया गया है कि 6,60,000 से ज्यादा मामले पिछले 20 सालों से लंबित हैं। इसके अलावा 30 सालों से लंबित पड़े केस की संख्या 1,31,000 है। जिला और तहसील स्तर पर लंबित 5,00,000 या 1.5% से अधिक मामले दो दशक से अधिक पुराने हैं, जबकि 85,141 मामलों पर तीन दशक से कोई फैसला नहीं लिया गया है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने 15 जून को हाईकोर्ट में पेंडिंग पड़े मामलों पर दुख और हैरानी जताई थी।

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दरअसल अदालत एक हत्या के दोषी की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जबकि उसकी सजा के खिलाफ उसकी अपील इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष अरसे से लंबित है। आंकड़ों से पता चलता है कि लंबित मामलों के निपटारे की दिशा में जिला अदालतें उच्च न्यायालयों से बेहतर हैं। देश भर में 25 उच्च न्यायालयों के समक्ष 47 लाख से अधिक मामले लंबित हैं। इनमें से 9,20,000 (19.26%) से अधिक मामले 10 से अधिक वर्षों से लंबित हैं, जबकि 158,000 (3.3%) मामले 20 से अधिक वर्षों से, वहीं 46,754 तीन दशक या उससे अधिक समय से लंबित हैं।

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सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इन मामलों को त्वरित सुनवाई के अधिकार के तहत निपटारा किया जाना चाहिए | उसने मामलों को नोट किया और पाया कि इससे आपराधिक अपीलों का त्वरित निपटान होगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि यदि इस तरह की अपीलों पर उचित समय के भीतर सुनवाई नहीं की जाती हैं, तो अपील का अधिकार स्वयं भी भ्रामक हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद, राजस्थान, मध्यप्रदेश, पटना, ओडिशा, राजस्थान, मुंबई उच्च न्यायालयों में पेंडिंग आपराधिक अपीलों को तय करने के लिए एक विस्तृत कार्ययोजना तैयार कर प्रस्तुत करने के निर्देश भी दिए।

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एनजेडीजी के मुताबिक पूरे भारत में कुल तीन करोड़ 29 लाख मामलों में से जिला और तालुका अदालतों में 8.5% या 28 लाख मामले 10 साल से अधिक समय से लंबित पड़े हुए हैं। देश में सुप्रीम कोर्ट से लेकर निचली अदालतों में कम्प्युटरीकरण कर दिया गया है | इसके चलते एनजेडीसी अदालती आकंड़ों और डाटा को प्रतिदिन अपडेट करता है | इससे उसे निपटारे और लंबित मामलों का पूरा ब्यौरा प्राप्त हो जाता है | इससे न्याय पालिका की सक्रियता और उसकी भीतर की समस्याओं को जानने बुझने में मदद मिलती है | यही नहीं न्याय पालिका में काम के बढ़ते बोझ को यह प्रदर्शित भी करता है |