News Today Cg: सरकारी नक्कार ख़ाने में पत्रकार सुनील नामदेव, तूती की दबी हुई आवाज़ को किया बुलंद, बूढ़ा तालाब से लेकर माना तुता तक पीड़ितों के मेले में मगरमच्छो से इन्साफ की गुहार….

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रायपुर / दिल्ली: छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार की वादा खिलाफी से सरकारी कर्मचारियों का भी हाल बेहाल है, उनके लिए निर्धारित सरकारी धरना प्रदर्शन स्थलों में प्रेस-मीडिया की बेरुखी चर्चा का विषय बनी हुई है। बताते है कि रायपुर के बूढ़ा तालाब स्थित धरना प्रदर्शन स्थल से लेकर नवा रायपुर के प्रदर्शन स्थल माना तुता से प्रेस-मीडिया कर्मियों का दूरियां बना लेना पीड़ितों को खल रहा है।

उनकी दलील है कि सरकारी वादा खिलाफी से जुडी ख़बरों के प्रकाशन और प्रसारण के अघोषित बंदी का ज्यादातर प्रेस मीडिया संस्थान समुचित पालन कर रहे है। पीड़ित कर्मचारी बताते है कि माना तुता में तो उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं। उन्हें मवेशियों के बेड़े की तर्ज पर शहर से 15 किलोमीटर दूर खदेड़ दिया गया है। जबकि मौके पर मूलभूत सुविधाओं का टोटा है।

पीड़ितों ने तस्दीक की कि धरना प्रदर्शन स्थल पर इकट्ठा होने वाले पीड़ितों के लिए शासन द्वारा ना तो समुचित पेयजल उपलब्ध कराया गया है, और ना ही शौचालय का बंदोबस्त है, चाय-पान के भी लाले पड़ जाते है, मौके पर चौतरफा कॉन्क्रीट की दीवारों से घिरे पीड़ित सरकार से इन्साफ की गुहार लगा रहे है।

न्यूज़ टुडे छत्तीसगढ़ ने प्रदर्शनकारियो की सुध लेने के लिए सरकारी नक्कार खानो का रुख किया, यहां हजारो कर्मचारी कड़ी धुप के बीच अपना पसीना पोछते नजर आए। प्रदेशभर से जुटे विभिन्न संगठनो के बैनर तले इन्साफ की हुंकार और जीत के जज्बे के संकल्प के साथ नारेबाजी सुनाई दी। 

कर्मचारी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कथनी और करनी का फर्क चीख-चीख कर आसमान को सूना रहे थे, शायद इस उम्मीद पर की आकाशवाणी सीधे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कानो में सुनाई दे।

पीड़ितों का अनुभव बता रहा था कि आकाशवाणी तो मतदान के दौरान होगी फिलहाल तो सरकारी नक्कार खाने माना तुता से मात्र 5 किलोमीटर दूर स्थित मंत्रालय के AC कमरों में जमे जिम्मेदार नौकरशाहों को भी इन्साफ की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही है। उनके मुताबिक लाउड स्पीकर की तेज ध्वनि से इलाके के पेड़-पौधे ही प्रभावित हो रहे है, बघेल सरकार के शुभ चिंतको की तर्ज पर प्रेस-मीडिया कर्मियों ने भी उनसे दूरियां बना ली है। 

उधर, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को इन्साफ की गुहार लगाने वाले इतने नापसंद है कि उन्होंने तमाम धरना प्रदर्शन स्थलों से अपनी दूरिया बना ली है। बताते है कि अब उन्हें इन्साफ की गूंज से भी बदबू आने लगी है, लोग हैरानी जता रहे है, उनके मुताबिक वादा खिलाफी कर्मचारियों ने नहीं, बल्कि  भूपेश बघेल और उनकी कांग्रेस सरकार ने की है।

पीड़ित तस्दीक करते है कि वर्ष 2018 विधान सभा चुनाव से पहले, कांग्रेस नेता बघेल को तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह सरकार के खिलाफ होने वाले धरना प्रदर्शनो से फूलो की महक आती थी, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी में बैठने के बाद उन्ही पीड़ितों से ऐसी नफरत हो गई है कि वे अब उनके आस-पास से गुजरने में भी परहेज बरतते है।

सत्ता में काबिज होने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कर्मचारी संगठनों से ही अपना मुँह फेर लिया है, अब तो पीड़ित कर्मचारियों के पसीने से उन्हें फूलो की खुश्बू नहीं,बल्कि पसीने की बू आने लगी है।  

रायपुर शहर के नामचीन बूढ़ा तालाब स्थित नक्कार खाने का नजारा भी वादाखिलाफी से सराबोर था,यहाँ भी सरकारी वादाखिलाफी का शिकार हुए पीड़ित अपना दुखड़ा रो रहे थे, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कर्मचारी संगठनो के अरमानो पर ऐसा पानी फेरेंगे उन्हें कतई उम्मीद नहीं थी।

कर्मचारी नेता तस्दीक कर रहे थे कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल काफी बदल गए है, मुख्यमंत्री की कुर्सी ऐसी फली है कि सिर्फ उनके ही खेतो में चांदी की फसल कट रही है,बाकि सरकारी सेवको के आशियाने में वादाखिलाफी का दंश फल फूल रहा है।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने ही उनके भरोसे का क़त्ल कर दिया है, सरकारी छापेखाने से सरकार के भरोसेमंद होने का ढोल पीटा जा रहा है, हकीकत बयां करने वाला प्रेस-मीडिया अचानक उनसे कोसो दूर हो गया है। 

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छत्तीसगढ़ के लगभग सभी जिलों में सरकारी सेवको के अलग-अलग संगठन सरकारी वादाखिलाफी के खिलाफ सडको पर है। बताते है कि भरोसे का क़त्ल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने किया है,लेकिन सच बोलने वाले पत्रकारों की तर्ज पर कर्मचारी संगठनो के नेताओ को भी प्रताड़ित किया जा रहा है, उन्हें आमनवीय यातनाओ के दौर से गुजरना पड़ रहा है, उनके खिलाफ भी पुलिस झूठे मामले दर्ज करने का दबाव बना रही है,बावजूद इसके जान जोखिम में डाल कर सरकारी नक्कार खानो में वे अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे है। 

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सरकारी नक्कार खानो में तूती की आवाज़ मुख्यमंत्री की कुर्सी के तले दब जाने के बावजूद पीड़ित आह तक नहीं कर रहे है,बल्कि संकल्प दोहरा रहे है कि जो वादा किया वो निभाना पडेगा,वर्ना कुर्सी छोड़ पाटन जाना पडेगा। सियासी शोरगुल के बीच पीड़ितों के मंचो के इर्दगिर्द गाहें बगाहे प्रेस-मीडिया कर्मियों की मौजूदगी इन पीड़ितों की आस तो जगाती है, लेकिन हैरानी होती है कि मौके पर घंटो कभी कलम घिसने वाले तो कभी हाथो में कैमरा माइक थामे पैरोकार जनतंत्र की नहीं बल्कि जनता के अरमानो पर पानी फेरने वाले लोक तंत्र के हत्यारो की शान में कसीदे गढ़ते दिखाई देते है।

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पीड़ित, बता रहे है कि सरकारी हिमायतियों की भीड़ में ज्यादा नहीं तो थोड़ा ही सही, झूठे विज्ञापनों पर सच की तस्वीर चस्पा कर पत्रकारों की आहुति इंसाफ की राह में उनके कदमो को आगे बढ़ा रही है। उनका मानना है कि छत्तीसगढ़ में सच बोलने वाले पत्रकारों की कोई कमी नहीं, सिर्फ पत्थर भर उछलना है, किसी ना किसी सच्चे पत्रकार के घर पर ही गिरेगा। फिलहाल तो कर्मचारी मंचो से कहा जा रहा है कि अब तो धोखा मत दो सरकार, महकमे के 50 लाख का कुनबा ही सिर्फ वादाखिलाफी के मुद्दे पर पडेगा भारी। 

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