जम्मू-कश्मीर सरकार ने 5 अगस्त 2025 को एक बड़ा कदम उठाते हुए 25 किताबों पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस सूची में मशहूर लेखिका अरुंधति रॉय की ‘आजादी’, ए.जी. नूरानी की ‘द कश्मीर डिस्प्यूट 1947-2012’ और सुमंत्र बोस की ‘कश्मीर एट द क्रॉसरोड्स’ और ‘कंटेस्टेड लैंड्स’ जैसी किताबें शामिल हैं। गृह विभाग द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि ये किताबें युवाओं को अलगाववाद, पीड़ित मानसिकता और आतंकवाद की ओर प्रेरित करती हैं।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के तहत कार्रवाई
सरकार ने यह कार्रवाई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 98 के तहत की है। आदेश में स्पष्ट किया गया है कि इन किताबों को जब्त किया जाएगा और इनके प्रकाशन, वितरण व बिक्री पर पूरी तरह रोक लगाई गई है। अधिकारियों को इन किताबों को बाज़ार से हटाने और किसी भी डिजिटल प्लेटफॉर्म से भी हटाने के निर्देश दिए गए हैं।
इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने का आरोप
गृह विभाग की अधिसूचना के अनुसार, इन किताबों में ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है, जिससे युवाओं में भ्रम और असंतोष फैल सकता है। साथ ही आतंकवादियों को महिमामंडित करने और सुरक्षा बलों को बदनाम करने जैसे गंभीर आरोप भी लगाए गए हैं। इन पुस्तकों में रूटलेज, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशकों की किताबें भी शामिल हैं।
अनुच्छेद 370 हटने की वर्षगांठ पर आया फैसला
यह प्रतिबंध ऐसे समय पर लगाया गया है जब अनुच्छेद 370 को हटाए जाने की छठी वर्षगांठ मनाई जा रही है। 2019 में इस अनुच्छेद को समाप्त कर जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया था। इस कदम के बाद से क्षेत्र में संवेदनशीलता बनी हुई है, और सरकार ने अब कथित उकसावे वाले साहित्य को रोकने की दिशा में यह कड़ा कदम उठाया है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा
हालांकि, इस प्रतिबंध को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। आलोचकों का कहना है कि यह फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है और सरकार की असुरक्षा को दर्शाता है। उनका मानना है कि इन किताबों में कश्मीर के इतिहास और राजनीतिक संघर्षों पर गहन शोध और विमर्श शामिल हैं, जिन्हें दबाने की कोशिश की जा रही है। इसके विपरीत, प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि यह निर्णय राष्ट्रीय सुरक्षा और राज्य में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक था।
