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भारतीय बाजार से चीनी सामानों की विदाई वाकई मुमकिन ? अधिक लाभ कमाने और हाथों हाथ सामानों की बिक्री को लेकर आखिर क्यों चीन पर निर्भर हो गए व्यापारी, भारत में चीनी सामानों का बहिष्कार क्या मुमकिन है ? पढ़े इस खबर को

दिल्ली वेब डेस्क / चीन की धोखाधड़ी से देश का बाजार हैरत में है | सीमा पर जारी भारी तनाव के बीच एक बार फिर भारत में चीनी माल के बहिष्कार और व्यापार रोकने की आवाजें तेज हो गई है | कई व्यापारिक संगठन मांग कर रहे है कि लोग अब स्वदेशी माल ही ख़रीदे | चीनी सामान भले ही सस्ता हो | लेकिन उसका बहिष्कार करे | दूसरी ओर बाजार का कड़वा सच यह है कि चीन भारत के टॉप 10 बड़े कारोबारी देशों में से है | भारत के ज्यादातर सेक्टर में उसकी पकड़ है | खासतौर पर मोबाइल बाजार, स्टील उद्योग, इलेक्ट्रॉनिक बाजार शामिल है |

चीन से भारत को आयात होने वाली मुख्य वस्तुओं में इलेक्ट्रिक मशीनरी एवं इक्विपमेंट, रिएक्टर्स, बॉयलर्स मशीनरी, मेकैनिकल अप्लायंसेज, आर्गेनिक केमिकल्स एवं दवाइयां, प्लास्टिक, इलेक्ट्रॉनिक्स और उर्वरक शामिल हैं | दूसरी ओर भारत निर्यात के मामले में चीन से काफी पीछे है | इसमें भारत चीन को आर्गेनिक केमिकल्स, स्लग एवं ऐश, मिनरल फ्यूल एवं मिनरल ऑयल, मछली और समुद्री उत्पादों, इलेक्ट्रिक मशीनरी एवं इक्विपमेंट का निर्यात करता है | चीन, अमेरिका के अलावा भारत के 10 बड़े व्यापारिक साझेदारों में यूएई, सउदी अरब, इराक, सिंगापुर, जर्मनी, दक्षिण कोरिया और इंडोनेशिया शामिल हैं. इन देशों का भारत के कुल विदेश व्यापार में हिस्सा 50 फीसदी से ज्यादा है |

मोबाइल के 65 फीसदी बाजार पर चीनी कंपनियों का कब्जा है | यही नहीं, भारत के कई बड़े और चर्चित स्टार्टअप में चीनी कंपिनयों ने अरबों डालर का निवेश किया है | नज़र दौड़ाये तो भारत के शहर से लेकर गांव तक के मोबाइल फोन बाजार पर चीन कंपिनयों का दबदबा है | साल 2019 में चीनी कंपनी शाओमी की भारतीय बाजार में हिस्सेदारी 28.6 फीसदी, वीवो की 15.6 फीसदी, ओप्पो की 10.7 फीसदी और रियल मी की 10.6 फीसदी रही है. इसी तरह स्मार्ट टीवी बाजार के करीब 35 फीसदी हिस्से पर चीनी कंपनियों ने कारोबार किया |

देश के कई प्रमुख स्टार्टअप में चीनी कंपनियों ने अपने पैर जमा रखे है | पेटीएम में चीनी कंपनियों का निवेश 3.53 अरब डॉलर याने करीब 26,894 करोड़ रुपये, ओला में 3.28 अरब डॉलर याने करीब 25,000 करोड़ रुपये, ओयो रूम्स में 3.2 अरब डॉलर अर्थात करीब 24,380 करोड़ रुपये, स्नैपडील में 1.8 अरब डॉलर अर्थात करीब 13,714 करोड़ रुपये और बाइजू में 1.47 अरब डॉलर अर्थात करीब 11,199 करोड़ रुपये का निवेश चीनी कंपनियों ने किया है.

भारत के कुल विदेशी व्यापार में चीन का हिस्सा 10 फीसदी से ज्यादा है | जानकार बताते है कि भारत के लिए अचानक इस कारोबार को रोक देना संभव नहीं है | भारत के कुल विदेशी व्यापार में चीन का हिस्सा जहां 10.1 फीसदी तक है, वहीं चीन के विदेश व्यापार में भारत का हिस्सा महज 2.1 फीसदी है | वित्त वर्ष 2018-19 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत के कुल निर्यात में चीन का हिस्सा महज 5.3 फीसदी है, जबकि कुल आयात में चीन का हिस्सा 14 फीसदी है | यही नहीं, चीन के कुल आयात में तो भारत का हिस्सा महज 0.9 फीसदी है |

उधर भारत-चीन सीमा पर हिंसक झड़प के बाद एक बार फिर देश में बायकॉट चाइना आंदोलन जोर पकड़ता दिख रहा है | सोशल मीडिया में चीनी सामानों के बहिष्कार की अपील की जा रही है | ऐसे में हमारे देश के इलेक्ट्रॉनिक्स, ई-कॉमर्स, हॉस्पिटलिटी और ई-लर्निंग जैसे सेक्टर में पैर जमा चुके चीन के सामानों का बहिष्कार सफल हो सकता है? क्या भारतीय लोग चीनी माल के बिना गुजारा कर सकते हैं? लोगों के रूचि दिखाने और देश प्रेम के जज्बे से ही यह संभव हो पायेगा |

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भारतीयों को यह याद रखना होगा कि चीन से कही ज्यादा छोटे देश जापान ने कई मामलों में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है | इसका मुख्य कारण उनका देश प्रेम और स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग है | दरअसल हीरोसिमा और नागासाकी में अमेरिका ने परमाणु हमला किया था | यहाँ बड़ी तादात में जापानी मारे गए थे | इस घटना को वर्षो बीत गए, लेकिन जापानियों की अमेरिका के प्रति नफरत आज भी ख़त्म नहीं हुई | ना तो वे अमेरिकी वस्तु पसंद करते है, और ना ही उनका उपयोग करते है | इस मामले में जापान हर सेक्टर में अपना प्रभाव रखता है |

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