छत्तीसगढ़ में डीजीपी नया या पुराना ? आधा दर्जन योग्य-पात्र आईपीएस अफसरों के प्रतियोगिता से बाहर होने का खतरा, राजनैतिक जोड़-तोड़ से पुलिसिंग का निकला दम….       

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नई दिल्ली/रायपुर: छत्तीसगढ़ में डीजीपी के पद पर नियुक्ति को लेकर घमासान मचा है। प्रदेश के मौजूदा डीजीपी अशोक जुनेजा का बढ़ाया गया कार्यकाल 4 फरवरी को समाप्त हो जायेगा। हालांकि दो साल पहले वर्ष 2023 में रिटायर हो चुके जुनेजा की इसी पद पर तीसरी बार नियुक्ति को लेकर सरगर्मियां तेज बताई जा रही है। उन्हें सबसे पहले पूर्ववर्ती भूपे सरकार ने और फिर मौजूदा मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने लगातार दूसरी बार एक्सटेंशन देकर उपकृत किया था। वर्ष 2023 में अर्थात दो साल पूर्व 60 वर्ष की आयु पूर्ण कर रिटायर हो चुके जुनेजा कों अब तीसरी बार भी एक्सटेंशन के जरिये ताजपोशी की तैयारी जोरों पर बताई जा रही है।

बताया जाता है कि मौजूदा डीजीपी को उनकी कार्यप्रणाली के चलते फिर तीसरी बार एक्सटेंशन दिया जा रहा है। कहा जाता है कि आने वाले किसी भी पल में बीजेपी सरकार के लिए भी कारगर साबित हुए रिटायर डीजीपी को प्रदेश की आम जनता पर पुनः थोपा जा सकता है, सिर्फ नौकरशाही ही नहीं आम जनता भी साय सरकार के फैसलों को देखकर हैरत में बताई जाती है। दरअसल, प्रदेश के सबसे ज्यादा नाकामयाब डीजीपी के रूप में जुनेजा की कार्यप्रणाली को आंका जाता है।

प्रशासनिक मामलों के जानकार तस्दीक करते है कि तमाम नाकामी के बावजूद भी जुनेजा की नियुक्ति, प्रदेश के उन जवाबदेह नौकरशाहों को मुँह चिढ़ा रही है, जिन्होंने आईपीएस बनने के बाद अपनी कर्तव्यनिष्ठा दिखाई और महकमे के इस सर्वोच्च पद पर आसीन होने का सपना संजोया था। राज्य में जुनेजा के बाद डीजीपी पद के लिए वरिष्ठता क्रम में आधा दर्जन वरिष्ठ अधिकारियों की लंबी फेहरिस्त है। उनकी योग्यता-अर्हता भी मौजूदा डीजीपी की तुलना में कम नहीं आंकी जा सकती। बावजूद इसके रिटायर अधिकारी को तीसरी बार मौका दिए जाने से PHQ में गतिरोध देखा  जा रहा है। अब साफ-सुथरी छवि और ईमानदारी से काम करने वाले अधिकारियों की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में बताई जाती है।

जानकार यह भी तस्दीक करते है कि ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के बजाय अब ‘सरकार’ को कमाऊ-पूतों की आवश्यकता है। छत्तीसगढ़ में डीजीपी की नियुक्ति को लेकर गहमा-गहमी है। इस पद के लिए कतारबद्ध कई वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष उस समय असहज स्थिति देखी जा रही है, जब उन्हें वरिष्ठता के बावजूद कुर्सी दौड़ से बाहर कर दिया गया है।

सूत्र तस्दीक करते है कि मौजूदा डीजीपी के कार्यकाल खत्म होने से पूर्व उन्हें तीसरी बार भी इस पद पर आसीन रहने के लिए उच्च स्तरीय हरी झंडी मिल गई है। माना जा रहा है कि समीकरण यदि यथावत रहे तो एक बार फिर अशोक जुनेजा को डीजीपी बनाये रखने में बीजेपी सरकार को भी कोई ऐतराज नहीं है।

पुनर्नियुक्ति हेतु अब उनका एक्सटेंशन आर्डर जल्द जारी होने का इंतज़ार किया जा रहा है। जबकि बेहतर सीआर और अन्य रिपोर्ट होने के बावजूद लगभग आधा दर्जन वरिष्ठ अफसर इस पद को लेकर बगले झांकने को मजबूर है। भले ही वे अपना दावा ठोक रहे हो लेकिन इसके लिए भी उन्हें जोड़-तोड़ और पसीना बहाना पड़ रहा है। सूत्र तस्दीक करते है कि इस प्रतिस्पर्धा में जुनेजा अव्वल नंबर पर नजर आ रहे है, उन्हें दिल्ली से दम मिल रहा है। इसके पीछे उस शख्सियत का वरदहस्त बताया जाता है, जो हालिया एक पूर्ववर्ती प्रदेश के राज्यपाल बनाये गए है।केंद्रीय गृह मंत्रालय में सर्वोच्च पद से रिटायर हुए इस पूर्व नौकरशाह की गुड बुक में जुनेजा का नाम पहले पन्ने में दर्ज बताया जाता है।  

छत्तीसगढ़ में डीजीपी बनने के बाद पहला मौका है, जब इस पद की गरिमा सिर्फ ‘यश-मैन’ तक सीमित हो गई है, महकमे में जूनियर अधिकारियों की लामबंदी डीजीपी की नियुक्ति तय करती है। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में इसकी बानगी नजर आने के बाद अब बीजेपी सरकार में भी इस कुप्रवर्ति ने अपने पैर पसारना शुरू कर दिया है। इसके परिणाम भी सामने आने लगे है। जानकारों के मुताबिक साय सरकार के शुरूआती कार्यकाल में ही प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति ख़राब होने के मामलों को लेकर कांग्रेस ने बीजेपी की जमकर घेराबंदी की थी। इस स्थिति का सामना करने में बीजेपी सरकार को जमकर पापड़ भी बेलने पड़े थे। 

बताया जाता है कि कई घोटालों की जिम्मेदारी जिस तर्ज पर पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के सिर मढ़ी है, राज्य और केंद्रीय एजेंसियों ने उन्हें नामजद आरोपी बनाया है, ऐसे हालात में डीजीपी की जिम्मेदारी भी तय करने को लेकर मौजूदा बीजेपी सरकार ने कोई पहल नहीं की है। अपितु जुनेजा को तीसरी बार एक्सटेंशन देकर ताजपोशी की तैयारी है। इस राजनैतिक जोड़-तोड़ के आगे नतमस्तक होती सरकार के कदम से प्रदेश में पुलिसिंग के कमजोर होने के साथ-साथ अपराधियों के हौसले बुलंद होने के आसार बढ़ गए है। प्रदेश में ख़राब कानून व्यवस्था की निर्मिति को लेकर डीजीपी की गैर- जिम्मेदार कार्यप्रणाली को जाहिर करने वाले अफसरों की पुलिस और प्रशासन में कोई कमी नहीं है।

कवर्धा, बलौदाबाजार, अंबिकापुर समेत अन्य इलाकों में कानून व्यवस्था की स्थिति निर्मित होने की घटनाओं के पीछे मौजूदा डीजीपी की सुस्त कार्यप्रणाली को जिम्मेदार ठहराया गया था। यही नहीं भूपे राज में नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सली उन्मूलन अभियान ठप पड़ने और कई मौकों पर बतौर डीजीपी प्रभावी कार्यवाही से हाथ पीछे खींच लेने के चलते भी शासन-प्रशासन को अप्रिय स्थिति का सामना करना पड़ा है। ऐसे कई प्रकरणों में डीजीपी जुनेजा की कार्यप्रणाली सुर्ख़ियों में बताई जाती है। जानकार बताते है कि भूपे राज के बीते 5 वर्षों में केंद्रीय सुरक्षा बलों और राज्य पुलिस के बीच समन्वय की भारी कमी देखी गई थी। इसका सीधा असर नक्सल उन्मूलन अभियान पर पड़ा था।

नतीजतन, कांग्रेस कार्यकाल में नक्सली हावी रहे थे। लेकिन अब केंद्र की तर्ज पर राज्य की विष्णुदेव साय सरकार के ढृढ़ और मजबूत इरादों से माओवाद से प्रभावित इलाकों की तस्वीर बदल रही है। पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बल अब नक्सलियों पर हावी बताया जाता है। प्रशासनिक मामलों के जानकार तस्दीक करते है कि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सरकार की गंभीर रूचि के चलते नक्सली मोर्चे पर जहाँ कामयाबी हासिल हो रही है, वही पुलिसिंग में सुधार भी नजर आने लगा है। ऐसे दौर में डीजीपी जैसे महत्वपूर्ण पदों पर किसी अधिकारी को बार-बार एक्सटेंशन देने से नौकरशाही में गलत संदेश भी जा रहा है।

पुलिस की कार्यप्रणाली से वाकिफ कई जानकार तस्दीक करते है कि बस्तर में नक्सलवाद की जड़ों पर प्रहार होने से जहाँ जनता खुश है, वही भूपे राज में कम्युनिस्ट विचारधारा को महत्व देने से एक बड़ी आबादी विचलित और प्रभावित बताई जाती है। इस दौर में घोटालों और अन्य मामलों में मौजूदा डीजीपी सुस्ती ने आग में घी का काम किया था। उनके मुताबिक खानापूर्ति कर कार्यालीन वक़्त गुजारने में मशहूर रिटायर डीजीपी को बार-बार मौका देने से प्रदेश के कई हित प्रभावित हो सकते है। सूत्रों द्वारा बताया जाता है कि रिटायरमेंट के बाद मौज-मस्ती के लिए मौजूदा डीजीपी ने सूचना आयोग में भी दस्तक दी है। उन्होंने समीकरण गड़बड़ाने और अपना उल्लू सीधा ना होने की सूरत में सूचना आयुक्त बनाये जाने के लिए भी दिलचस्पी दिखाई है।