रिपोर्टर – अफरोज खान
सूरजपुर / केंद्रीय जांच टीम आई और आज राज्य सरकार से गठित टीम…वे आ रहे हैं और जा रहे हैं लेकिन हाथियों की मौत के कारण स्पष्ट नहीं हो पा रहे हैं।दोनों जांच टीमों के जांच के तरीकों को लेकर सवाल उठ रहे हैं और यह भी आरोप लग रहे हैं कि जांच के नाम पर केवल औपचारिकता पूरी की जा रही है।वहीं आज प्रतापपुर में वन विभाग के गेस्ट हाउस में दावा आपत्ति प्रस्तुत करने के दौरान स्थानीय लोगों ने जांच दल में शामिल सदस्यों के साथ बिलंब से विसरा भेजने पर सवाल उठाए, जांच टीम के अध्यक्ष सेवानिवृत्त पीसीसीएफ केसी बेबर्ता ने जांच उपरांत शासन को रिपार्ट देने की बात कही।
छत्तीसगढ़ के साथ दिल्ली तक उस समय हलचल मच गई थी जब प्रतापपुर रेंज के गणेशपुर में 9 और 10 जून को दो मादा हाथियों के शव मिले थे,इनमें से एक गर्भवती थी और पेट में पूर्ण विकसित शावक था जिसकी भी मौत हो गई थी,इसके तुरंत बाद प्रतापपुर से लगे राजपुर रेंज के गोपालपुर में एक और मादा हाथी का शव मिल गया था और मृत तीनों मादा हाथी एक ही दल के थे।दिल्ली तक हलचल मचने के बाद प्रदेश सरकार ने वन विभाग में कार्यवाहियां प्रारंभ कर दी जिसमें कुछ कर्मचारियों के निलंबन के साथ पीसीसीएफ अतुल शुक्ला व दो डिवीजन के डीएफओ को हटाया गया था।
सरकार ने पांच सदस्यों की जांच टीम भी गठित की थी जिसे हाल ही में हुए हाथियों की मौतों की जांच करना है,इस टीम में रिटायर्ड पीसीसीएफ केसी बेबर्ता के साथ एपीसीसीएफ अरुण पांडे,पशु चिकित्सक डॉ राकेश वर्मा,वन्यप्राणी विशेषज्ञ आरपी मिश्रा व अधिवक्ता डॉ देवा देवांगन को शामिल किया गया था।जांच के इसी क्रम में वे आज प्रतापपुर पहुंचे थे जहां इन्होंने आम लोगों से दावा आपत्तियां मंगाई थीं।प्रतापपुर आने के बाद सबसे पहले वे गणेशपुर घटनास्थल गए थे जहां उन्होंने मौत वाली जगहों का निरीक्षण किया,इसके बाद दावा आपत्ति के लिए निर्धारित समय के दौरान वन विभाग के गेस्ट हाउस में पहुंचे जहां उन्होंने वन विभाग के स्थानीय अधिकारी कर्मचारियों का बयान दर्ज किया,पोस्टमार्टम करने वाले स्थानीय चिकित्सकों के बयान भी उन्होंने दर्ज किए।उन्हें कुछ दावा आपत्तियां प्राप्त हुईं और शाम को फिर गणेशपुर गए जहां स्थानीय ग्रामीणों से चर्चा कर बयान लिया जिसके बाद वे अम्बिकापुर चले गए।पहली जांच टीम दिल्ली से दो दिन पहले आई थी,जिनका किसी को पता नहीं चला और नहीं उन्हें हाथियों की मौत के कारणों का,अब दूसरी टीम आज राज्य से आई जिनका भी कुछ फायदा होते नजर नहीं आ रहा है,जानकारों की मानें तो पूरी जांच केवल औपचारिकता है क्योंकि टीमें आ रहीं हैं और जा रहीं हैं लेकिन इस दिशा में इनका प्रयास दिख ही नहीं रहा है कि हाथियों की मौत कैसे हो रही है और वन विभाग इसके लिए कितना जिम्मेदार है।बरहाल केंद्रीय टीम के बाद राज्य की टीम भी प्रतापपुर आकर चली गई है,जांच टीम के अध्यक्ष ने पूरी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपने व जांच पूरी होने के बाद ही कोई निष्कर्ष सामने आने की बात कही है।
ग्रामीणों से जाना हाथियों का व्यवहार,पूछा-किसी ने मारा तो नहीं
हाथियों की मौत को लेकर प्रतापपुर रेस्ट हाउस पहुंचने से पहले जांच दल गणेशपुर पहुंचा था। उसके बाद यह दल प्रतापपुर रेस्ट हाउस आया था। दल के द्वारा दावा-आपत्ति लिए जाने के दौरान जब अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष नईमुद्दीन खान ने रेस्ट हाउस में दावा आपत्ति लिए जाने को सही नहीं ठहराया। उन्होनें इस शिविर को घटनास्थल में लगाकर मुनादी के माध्यम से ग्रामीणों को एकत्र करते हुए ग्रामीणों की आपत्ति लिए जाने की बात कही थी, इस आपत्ति के बाद पूरा जांच दल व अधिकारी तत्काल गणेशपुर पहुंचे। इस दौरान सरपंच जोगेंद्र सिंह उपसरपंच सियाराम सहित कई अन्य ग्रामीण थे। यहां पर जांच दल ने हाथी से संबंधित कई सवाल ग्रामीणों से किये,हाथियों के व्यवहार,परेशानी के साथ उन्होंने पूछा कि हाथियों को किसी ने मारा तो नहीं। यहां पर ‘बांकी-दल’ के एक हथिनी की मौत हुई थी। जांच दल ने इस रेंज के सभी अधिकारी व कर्मचारी को प्रतापपुर रेस्ट हाउस में ही बुला लिया था, यहां पर सभी के बयान दर्ज कर लिए गए थे।
नहीं गए गोपालपुर,सम्बन्धित अधिकारी कर्मचारियों को बुलाया था प्रतापपुर
उक्त टीम प्रतापपुर के गणेशपुर और राजपुर के गोपालपुर में हुई हाथियों की मौत की जांच करने आई थी लेकिन वे सिर्फ प्रतापपुर तक ही सीमित रहे।मिली जानाकरी के अनुसार जांच टीम ने राजपुर के अधिकारी कर्मचारियों को प्रतापपुर ही बुलाया था जिससे यह कयास लगाए जा रहे हैं कि शायद जांच टीम वहां न जाये।अब सवाल है कि टीम गोपालपुर नहीं जाएगी तो जांच पूरी कैसे होगी..?बताया जा रहा है कि वे अतौरी भी नहीं गए जहां हाथियों ने घरों व फसलों को नुकसान पहुंचाया था।
सिर्फ 3 आपत्तियां..? क्या क्या उठाई गईं आपत्तियां…?
प्रतापपुर रेस्ट हाउस में आपत्तिकर्ता मुकेश गोयल ने गोपालपुर अतौरी में हाथी की मौत से पहले उसके सुस्त रहकर दल से अलग रहने के समय विभाग की मॉनीटिरिंग का मुद्दा उठाया। आपत्ति में बताया गया कि अगर राजपुर से ही विभाग हाथियों को लेकर मॉनीटिरिंग करता तो संभवतः एक हाथी की मौत के बाद प्रतापपुर रेंज में हाथी की असामान्य गतिविधि का आंकलन किया जा सकता था, इसके अलावा सही ढंग से मॉनीटिरिंग होती तो शायद करंजवार में हाथी की मौत की जानकारी तत्काल हो जाती, उन्होनें इसे विभाग की बड़ी चूक बताया। आपत्ति में यह भी मामला उठाया गया कि तीन हाथी की मौत के बाद यहां पर एक्सपर्ट या जानकारों का शिविर क्यों नहीं लगाया गया, जिससे अन्य हाथी की गतिविधि पर निगरानी रखी जा सकती थी। आपत्ति में ‘बांकी गजदल’ में हाथियों की संख्या का खुलासा विभाग द्वारा नही करने पर भी सवाल खड़े किए गए। इसके अलावा हाथी-मानव द्वंद के पीछे जंगल की बड़े पैमाने पर कटाई व अंदर से खोखले होते जंगल है, जिसके कारण हाथियों का जंगल से इंसानी आबादी क्षेत्र में प्रवेश करना प्रमुख कारण है। इसके अलावा हाथी विचरण क्षेत्र में वन अधिकार पट्टा का वितरण सतर्कता से करने के साथ पट्टे की पात्रता के लिए वन अमले द्वारा जंगल में कब्जा दिलाने के आरोप लगाए गए। उन्होनें पीएम विलंब से करने, गर्भवती हथिनी का विसरा तीसरे दिन लेने व विलंब से भेजने के पीछे जांच को प्रभावित करने का आरोप लगाया।
आरटीआई एक्टिविस्ट राकेश मित्तल द्वारा गणेशपुर में गर्भवती हथिनी की 9 जून को मौत व पोस्टमार्टम के दौरान विसरा नही लेने पर आपत्ति दर्ज की। उन्होनें दूसरी हथिनी की मौत के बाद उच्चधिकारियों के नहीं आने से पोस्टमार्टम विलंब पर सवाल खड़े किए गए और आपत्ति दर्ज कराई कि विसरा विलंब से लेने पर जांच रिपोर्ट सही नहीं आएगी और जहर से मौत की वजह भी स्पष्ट नहीं हो पाएगी। उन्होंने पहली हथिनी की मौत के तीसरे दिन विसरा लेने पर जांच की सार्थकता पर सवाल खड़े किए। इस दौरान दूसरे हथिनी की मौत किसी संक्रामक बीमारी से मानी जा रही थी, जिसका ब्लड सैंपल अम्बिकापुर लैब में भेजे जाने के बाद भी इसकी रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करने पर आपत्ति दर्ज की। उन्होनें विसरा को अंजोरा व दुर्ग में विलंब से भेजने के पीछे जांच को प्रभावित करने का आरोप लगाया। उन्होनें राज्य स्तरीय गठित टीम में कुछ ऐसे सदस्य के शामिल किए जाने के आरोप लगाए जो वन विभाग में कार्यरत है, उन्होनें इससे जांच प्रभावित होने के आरोप लगाए। अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष नईमुद्दीन खान ने बलरामपुर वनमंडल में मृत हाथी का पोस्टमार्टम नहीं कराने को लेकर आपत्ति दर्ज कराई। इसके अलावा गणेशपुर में गर्भवती हथिनी का विसरा पोस्टमार्टम के समय न निकालकर दोबारा कब्र खोदकर निकलने पर जांच प्रभावित होने, दूसरी हथिनी की मौत के अगले दिन पीएम करने पर सही जांच रिपोर्ट आने पर संदेह व्यक्त किया। उन्होनें तीनों हाथी के मौत का खुलासा अभी तक नहीं करने व करंजवार में हाथी का मामला नही सुलझ पाने पर आपत्ति की।
उन्होनें विभाग द्वारा हाथी की मौत को लेकर सही तथ्य सामने नही लेन की भी आशंका जताई। नईमुद्दीन खान ने हाथी की मौत के लिए रेस्ट हाउस की बजाय घटनास्थल के समीप दावा-आपत्ति के लिए शिविर नहीं लगाने पर सवाल खड़े किए। उन्हीने इस बात पर आपत्ति लगाई कि रेस्ट हाउस में ग्रामीण स्वतंत्र रूप से बात को नहीं रख पाएंगे, इसलिए घटनास्थल के समीप शिविर में कई महत्त्वपूर्ण तथ्य सामने आ सकते थे।
जांच टीम में सदस्यों और निष्पक्षता को लेकर उठाया सवाल…..
स्थानीय गेस्ट हाउस में दावा आपत्ति प्रस्तुत करने के दौरान राकेश मित्तल ने जांच टीम में शामिल सदस्यों को लेकर सवाल उठाया।दिए आवेदन में उन्होंने कहा कि टीम में ऐसे लोग भी हैं जो वर्तमान में वन विभाग के लिए काम करते हैं,वे जांच को प्रभावित कर सकते हैं,इनकी उपस्थिति से जांच निष्पक्ष भी नहीं हो सकती।