
भारत में जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार अब ‘हम दो, हमारे दो’ की नीति से भी नीचे आ गई है। विश्व बैंक के 2023 के आंकड़ों के अनुसार, देश की जन्मदर 1.98 रह गई है, जबकि स्थिर आबादी के लिए 2.1 का रिप्लेसमेंट लेवल जरूरी होता है। यह संकेत देता है कि अधिकतर परिवार अब दो से कम बच्चों को प्राथमिकता दे रहे हैं। कई परिवार एक ही संतान तक सीमित रहना पसंद कर रहे हैं या बच्चों को न पैदा करने का विकल्प चुन रहे हैं।
दुनिया के अन्य देशों में जन्मदर की स्थिति
भारत में जन्मदर कम हो रही है, लेकिन दुनिया के कई देशों में यह और भी चिंताजनक स्तर पर है। दक्षिण कोरिया में यह मात्र 0.72 है, चीन में 1, जापान में 1.2, सिंगापुर में 0.97, जबकि अमेरिका में 1.62 और फ्रांस में 1.66 है। अधिकांश विकसित देशों में जन्मदर रिप्लेसमेंट लेवल से नीचे है। पूरी दुनिया का औसत 2.2 के करीब है, जबकि अफ्रीका, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में यह अभी भी ज्यादा बनी हुई है।
जन्मदर में कमी के कारण और प्रभाव
औद्योगिकीकरण, शहरी जीवन की महंगाई, शिक्षा व स्वास्थ्य पर बढ़ता खर्च और बदलती सामाजिक सोच जन्मदर में कमी के मुख्य कारण हैं। महिलाओं की शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता और परिवार नियोजन में सक्रिय भूमिका भी इस गिरावट में अहम हैं। इससे बच्चों की जीवन गुणवत्ता में सुधार हुआ है, लेकिन लंबे समय में यह श्रम शक्ति और आर्थिक विकास पर दबाव बना सकता है।