वॉशिंगटन: पृथ्वी की ओर लगभग 60 हजार किमी की स्पीड से आ रहे एक उल्कापिंड ने दुनिया भर के वैज्ञानिकों की टेंशन बढ़ा दी है. यह एक ऐसा एस्टेरॉयड है जो बड़े से बड़े शहर को तबाह कर सकता है. एस्टेरॉयड का नाम 2024 YR4 है, जिसकी खोज ने दुनिया भर की स्पेस एजेंसियों में खलबली मचा दी है. नासा के वैज्ञानिकों ने इस बात का अनुमान लगाया है कि यह एस्टेरॉयड कहां गिर सकता है. नासा की ओर से वित्तपोषित कैटालिना स्काई सर्वे प्रोजेक्ट के इंजीनियर डेविड रैंकिन ने एस्टेरॉयड की वर्तमान स्थिति के आधार पर जोखिम का नक्शा बनाया है, जो भारत के लिए बिल्कुल भी अच्छी खबर नहीं है.
अगर 2024 YR4 सच में 2032 में पृथ्वी से टकराता है, तो यह दक्षिण अमेरिका के उत्तरी हिस्से से लेकर प्रशांत महासागर,उप-सहारा अफ्रीका और एशिया तक फैले एक पतले बैंड में कहीं भी गिर सकता है. चिंता वाली बात है कि इस इलाके में भारत का चेन्नई और चीन का हाईनान द्वीप सहित घनी आबादी वाले क्षेत्र हैं. यह एस्टेरॉयड 22 दिसंबर 2032 को पृथ्वी से टकरा सकता है. वर्तमान में नासा का अनुमान है कि इसके टकराने की संभावना 48 में 1 है. इस एस्टेरॉयड का व्यास 90 मीटर है, जो लगभग अमेरिका के स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी के बराबर है. प्रस्तावित कॉरिडोर में एक बड़ा क्षेत्र समुद्र का है. लेकिन अगर यह किसी आबादी वाले क्षेत्र में गिरता है तो तबाही मच सकती है.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर यह पृथ्वी से टकराता है तो 8 मेगाटन टीएनटी का विस्फोट कर सकता है, जो हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम से 500 गुना ज्यादा ताकतवर होगा. एस्टेरॉयड 2024 YR4 को पहली बार दिसंबर 2024 में खोजा गया था. लेकिन जल्द ही यह नासा और यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ESA) के सबसे खतरनाक एस्टेरॉयड की लिस्ट में ऊपर पहुंच गया. यह एस्टेरॉयड वर्तमान में एकमात्र बड़ा एस्टेरॉयड है, जिसके पृथ्वी से टकराने की संभावना 1 फीसदी से ज्यादा है.
जोखिम वाले कॉरिडोर में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इथियोपिया, सूडान, नाइजीरिया, वेनेजुएला, कोलंबिया और इक्वाडोर जैसे देशों पर खतरा मंडरा रहा है. जहां यह गिरेगा, वहां इसका प्रभाव तीव्रता पर निर्भर करेगा, क्योंकि कॉरिडोर के अंत में गिरने वाले क्षेत्रों में हल्का झटका लगने की संभावना है. इस एस्टेरॉयड के आकार का सटीक अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने जेम्स वेब टेलीस्कोप के इस्तेमाल का फैसला किया है. नासा ने इमरजेंसी में फैसला किया है कि जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप अब इस एस्टेरॉयड का विस्तृत अध्ययन करेगा. इससे जुड़ी पूरी खबर बढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.