रिपोर्टर – गेंदलाल शुक्ला
कोरबा / जिले में कस्टम मिलिंग प्रोत्साहन राशि और बोनस घोटाला की सुगबुगाहट सुनने में आने लगी है। खाद्य विभाग और नागरिक आपूर्ति निगम (नान) की सांठगांठ की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। जिले में इन दिनों समर्थन मूल्य पर खरीदे गये धान की कस्टम मिलिंग की जा रही है। राज्य सरकार ने सम्पूर्ण धान की मिलिंग सुनिश्चित करने और प्रदेश में स्थापित सभी राईस मिल की सम्पूर्ण क्षमता का उपयोग करने की दृष्टि से मिलिंग की राशि के अलावा प्रोत्साहन राशि और बोनस की घोषणा कर रखी है। शासन की योजना से अधिकाधिक लाभ लेने के लिए जिले के अनेक राईस मिल संचालक बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा कर रहे हैं।
जानकारी के अनुसार जिले के राईस मिल संचालक स्थापित क्षमता से अधिकमात्रा में नागरिक आपूर्ति निगम में चावल जमा कर रहे है | उदाहरण के लिए राज्य शासन ने एक टन क्षमता के राईस मिल के लिए एक माह में चार हजारक्विंटल धान की मिलिंग करने नियम बनाया है। इस तरह एक टन क्षमता की राईस मिल से निर्धारित अवधि दो माह में आठ हजार क्विंटल धान की मिलिंग करना होगा। इससे कम मिलिंग करने पर राईस मिल संचालक को केवल दस रूपये क्विंटल के दर से मिलिंग बिल का भुगतान किया जायेगा। जबकि पूरा मिलिंग करने पर दस रूपये मिलिंग चार्ज के अलावा तीस रूपये क्विंटल की दर से प्रोत्साहन राशि भी दी जायेगी। वहीं दो माह क्षमता के अनुपात में मिलिंग करने के बाद अतिरिक्त मिलिंग करने पर दस रूपये प्रति क्विंटल बोनस भी दिया जायेगा। यानि क्षमता के अनुसार निर्धारित मात्रा में कम मिलिंग करने पर केवल दस रूपये, निर्धारित मात्रा में मिलिंग करने पर प्रोत्साहन राशि मिलाकर चालीस रूपये और निर्धारित से अधिक मात्रा में मिलिंग करने पर प्रोत्साहन और बोनस राशि मिलाकर पचास रूपये प्रति क्विंटल बिल का भुगतान किया जायेगा। धान मिलिंग की मात्रा की गणना मासिक आधार पर होती है। निर्धारित मात्रा में कमी होने पर प्रोत्साहन राशि नहीं दी जायेगी। लेकिन यह मात्रा अधिक भी नहीं हो सकती।
शासन ने दो पाली में कुल सोलह घंटे मिल चलाने के आधार पर यह गणना की है। इसमें भी पाली बदलने, मिल ट्रील होने साप्ताहिक अवकाश आदि के कारण मिलिंग प्रभावित होने की दृष्टि से प्रतिमाह आठ सौ क्विंटल की मिलिंग की मात्रा कम आंकी है। जिले में कस्टम मिलिंग के लिए 19 दिसम्बर को अनुबंध किये गये हैं। अभी कस्टम मिलिंग होते दो माह का समय पूरा नहीं हुआ है। लेकिन जिले के अनेकों राईस मिल संचालकों ने निर्धारित मात्रा से काफी अधिक मात्रा मेंनागरिक आपूर्ति निगम में चावल जमा करा दिया है। इस तरह की सबसे अधिकगड़बड़ी कटघोरा क्षेत्र के राईस मिलों ने की है।
राज्य शासन ने बेब साइड में कस्टम मिलिंग के बाद जमा चावल का आंकड़ा देखने पर इसका खुलासा होता है। सवाल यह है, कि राईस मिल संचालक अपने मिल की क्षमता से अधिक धान कीमिलिंग कैसे कर रहे हैं? इसका जवाब यह है कि या तो पी.डी.एस. के चावल कीरी-सायकलिंग हो रहा है? या फिर राईस मिल संचालकों ने अधिक क्षमता की मिल का पंजीयन कम क्षमता में कराया है, ताकि वे प्रोत्साहन, और बोनस राशि का लाभ उठा सकें । दोनों में से कोई भी स्थिति हो, उसे फर्जीबाड़ा ही कहाजायेगा। यहां पर खाद्य विभाग और नागरिक आपूर्ति निगम भी सवालों के घेरे में आ जाता है? खाद्य विभाग, मिल की क्षमता का पंजीयन करता है। खाद्य विभाग का प्रमुख कलेक्टर होता है। जबकि नान के गोदाम में चावल जमा किया जाता है। इस तरह खाद्य विभाग और नान दोनों की कार्यपद्धति संदेह के दायरे में आ जाती है। समय रहते फर्जीबाड़ा पर कार्यवाही नहीं होती है, तो राज्य शासन को करोड़ों रूपयों की प्रोत्साहन और बोनस राशि की हानि उठानी पड़ेगी।