दिल्ली/रायपुर: छत्तीसगढ़ में आईपीएस अधिकारियों की कार्यप्रणाली सुर्ख़ियों में है। प्रदेश में ईमानदार और स्वच्छ छवि के कई आईपीएस अधिकारी ठिकाने लगा दिए गए है। जबकि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में प्रभावशील जिन आईपीएस अधिकारियों के ठिकानों पर सीबीआई की छापेमारी हुई है, वे मौजूदा बीजेपी शासन काल में भी उतने ही प्रभावशील बताये जाते है, जितने की भूपे राज में उनकी तूती बोलती थी। इन दागी अफसरों की ऊंची पहुँच के चलते पुलिस मुख्यालय ने भी चुप्पी साध ली है। जानकारी के मुताबिक 4 आईपीएस, 2 स्टेट पुलिस सर्विस समेत पुलिस महकमे के कई निचले स्तर के कर्मी महादेव ऐप सट्टा घोटाले समेत भ्रष्टाचार के अन्य प्रकरणों में नामजद हुए है।




इनमें से कई जेल की हवा भी खा रहे है। ऐसे पुलिस अधिकारियों के खिलाफ वैधानिक कार्यवाही के मामले में पुलिस मुख्यालय फिसड्डी साबित हो रहा है। यह भी बताया जा रहा है कि दागी अफसरों के ठिकानों पर सीबीआई की छापेमारी के हफ्तेभर बाद भी पुलिस मुख्यालय हरकत में नहीं आया है। पूर्व डीजीपी की भांति मौजूदा पुलिस के मुखिया ने भी प्रभावशील आईपीएस अधिकारियों को तलब करना तो दूर ‘कारण बताओं नोटिस’ तक जारी नहीं किया है। उनकी इस बेरुखी को डीजीपी की सुस्त कार्यप्रणाली से जोड़ कर देखा जा रहा है।

देश में भ्रष्ट आईपीएस अधिकारियों के जमावड़े के मामले में छत्तीसगढ़ कैडर में तैनात कई अधिकारियों की कार्यप्रणाली चंबल के डकैतों से कही ज्यादा खतरनाक बताई जाती है। ऐसे अफसर खाकी वर्दी पहनकर जनता के बीच भय और आतंक का माहौल पैदा कर रहे है। उनकी कार्यप्रणाली से पुलिस की छवि जहाँ तार-तार हो रही है, वही छत्तीसगढ़ शासन की साख पर भी विपरीत असर डाल रही है। दागी अफसरों पर पुलिस मुख्यालय की मेहरबानी राजनैतिक और प्रशासनिक गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई है।

छत्तीसगढ़ कैडर के आईपीएस अधिकारियों के एक गिरोह को लेकर बाजार गर्म है। ईडी की तर्ज पर सीबीआई को चकमा देने के लिए ये अफसर अभी भी अपने पद और प्रभाव का इस्तेमाल कर रहे है। इसके चलते घोटालों और अपराधों की विवेचना में जुटी केंद्रीय एजेंसियों को कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। प्रदेश की मौजूदा बीजेपी सरकार के कार्यकाल मे भी सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग की घटनाएं सामने आ रही है। बताते है कि दागी अफसरों के खिलाफ छत्तीसगढ़ शासन के नियमों और अचार संहिता के तहत वैधानिक कार्यवाई नहीं होने से प्रभावशील आरोपियों और संदेहियों के हौसले बुलंद है। उनके क़ानूनी दांवपेचों के चलते एजेंसियां पशोपेश में बतायी जा रही हैं।

दरअसल, पश्चिम बंगाल की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में भी केंद्रीय एजेंसियों पर हमले हो रहे हैं, पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के ठिकानों पर ईडी की टीम पर हुए हमले में आरोपियों के खिलाफ FIR तो दर्ज हो गई, लेकिन आरोपियों की धड़ पकड़ को लेकर पुलिस की सुस्ती से बदमाशों के हौसले बुलंद बताये जाते है। ईडी के बाद प्रदेश में ठीक ऐसे ही हालात से सीबीआई को भी गुजरना पड़ रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के ठिकानों पर छापेमारी के बाद सीबीआई को भी घेरा गया था।
सीबीआई की टीम प्रदर्शनकारियों का सामना करते हुए अपने गंतव्य पर रवाना हुई थी। इसके बाद प्रदेशभर में एजेंसी के खिलाफ भूपे कांग्रेस ने धरना प्रदर्शन आयोजित किये थे। बताते है कि पुलिस तंत्र में बघेल गिरोह का दब-दबा अभी भी कायम है। इसके चलते जांच एजेंसियों को कठिन दौर से गुजरना पड़ रहा है।

महादेव ऐप सट्टा घोटाले में सीबीआई की छापेमारी खत्म होते ही भूपे कांग्रेस ने प्रदेश के कई जिलों में बीजेपी और केन्द्र सरकार का पुतला दहन कर जहां गतिरोध कायम किया, वही आईपीएस अधिकारियों के ठिकानों पर भी छापेमारी के दौरान सीबीआई को अप्रिय स्थिति का सामना करना पड़ा है। सूत्र तस्दीक करते है कि छापे की भनक लगने के बाद कुछ आईपीएस अधिकारियों ने एजेंसियों के साथ नोक-झोंक की पूरी तैयारी कर रखी थी। हालांकि कानूनी दायरें में ही रहकर एजेंसियों ने छापेमारी को अंजाम दिया था।

जानकारी के मुताबिक छापेमारी के दौरान सीबीआई को 2008 बैच के आईपीएस प्रशांत अग्रवाल के ठिकानों पर अप्रिय हालात का सामना करना पड़ा था। इस दौरान काफी वाद विवाद भी हुआ था। लेकिन अब इस प्रकरण को लेकर नई सफाई भी सामने आ रही है। यह बताया जा रहा है कि महादेव बुक सट्टे की छापेमारी के दौरान किसी भी आईपीएस अधिकारी के बंगले में सीबीआई के टीम के साथ कोई वाद-विवाद नहीं किया गया था। घटना को प्रशांत अग्रवाल के आवास से जोड़ कर बताया जा रहा है। यह भी बताया जाता है कि अफसरों के बंगले से सीबीआई ने तलाशी के दौरान कंप्यूटर खंगाले और ऐसे दस्तावेज जो जांच के लिए उपयोगी दिखे, उसे जब्त किया गया था।

हालांकि सीबीआई के छापे के दौरान डीआईजी प्रशांत अग्रवाल के रायपुर में स्वर्णभूमि स्थित निवास पर घटित वाद-विवाद को लेकर माहौल गर्म बताया गया था। पिछले दिनों उनके ठिकानों से सीबीआई अफसरों से तीखी बहस की खबर भी सामने आई थी। अब इस घटना को लेकर एक नई स्थिति स्पष्ट की जा रही है, इसमें दावा किया जा रहा है कि अन्य अफसरों एवं राजनेताओं के ठिकानों की तरह प्रशांत अग्रवाल के बंगले में भी सीबीआई ने जांच-पड़ताल की थी।

इस दौरान दोनों पक्षों ने एक -दूसरे को सहयोग किया था। इस मामले में अचानक आई सफाई में दावा किया गया है कि छापेमारी के दौरान सीबीबाई ने जो दस्तावेज मांगे, प्रशांत अग्रवाल द्वारा उसे उपलब्ध कराया गया था। इधर सीबीआई ने महादेव सट्टा प्रकरण की जांच तेज करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के तत्कालीन ओएसडी आशीष वर्मा के भिलाई-3 स्थित पदुम नगर के आवास पर शनिवार को दूसरी बार छापेमारी की थी।

जानकारी सामने आ रही है कि करीब 5 घंटे तक भिलाई स्थित आवास में तलाशी के बाद सीबीआई ने चल अचल संपत्ति के दस्तावेजों की जब्ती की है। बता दें कि पिछले दिनों छापेमारी के दौरान उनके घर पर कोई नहीं पाया गया था। उनके आवास पर नोटिस चस्पा की गई थी। पूर्व ओएसडी परिजनों के साथ सैर सपाटे में कश्मीर में होने के कारण घर में नहीं पाये गये थे। आशीष वर्मा ने दावा किया कि उन्होंने पूछताछ के दौरान महादेव ऐप सट्टा प्रकरण में अपनी संलिप्तता से इनकार किया है।

आशीष वर्मा ने मीडिया से चर्चा करते हुए बताया कि वह 20 मार्च से पूरे परिवार के साथ कश्मीर गये थे। शुक्रवार को वापस लौटने पर घर में चस्पा सीबीआई का नोटिस देखने के बाद उसमें लिखे नंबर पर फोन किया था। अपने दावे में उन्होंने यह भी कहा कि सीबीआई अफसरों ने आईटी रिटर्न की फाइल के अलावा जमीन के दस्तावेजों की फोटोकॉपी जब्त की है। फ़िलहाल, सीबीआई की तहकीकात जारी है, इस बीच महादेव ऐप सट्टे की मार झेल रहे पीड़ितों ने मुख्यमंत्री साय से प्रभावशील दागी अफसरों के निलंबन की मांग की है। पुलिस मुख्यालय की सक्रियता को लेकर भी कयासों का दौर शुरू हो गया है।
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