छत्तीसगढ़ के पीएचई विभाग में लगभग 15 हजार करोड़ के टेंडर की बंदरबांट को लेकर भ्रष्ट्राचार का ताना-बाना , केन्द्र और राज्य प्रदत्त आर्थिक मदद का सुनियोजित बंटवारा होने से विकास और मूलभूत सुविधाओं से महरूम हो जाएंगे लाखों आदिवासी , क्या मुख्यमंत्री करेंगे हस्ताक्षेप ? 

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रायपुर / छत्तीसगढ़ के पीएचई विभाग में भ्रष्ट्राचार को कार्यप्रणाली का महत्वपूर्ण अंग बना लिया गया है | यहां टेंडर निविदाओं में पारदर्शिता लगभग खत्म हो जाने से विभाग की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है | बताया जा रहा है कि विभागीय मंत्री और सचिव समेत मुट्ठीभर ठेकेदारों ने केंद्र और राज्य  प्रदत्त आर्थिक मदद के दुरूपयोग का ऐसा खांका खिंचा है कि प्रदेश के लाखो आदिवासी परिवार शुद्ध पेयजल और गुणवत्ता वाली नल जल योजनाओं से वंचित हो जायेगे | दरअसल कोरोना काल में आदिवासियों के हितों का ध्यान रखते हुए केंद्र ने छत्तीसगढ़ सरकार को नल जल योजनाओं के विस्तार और आदिवासी इलाकों में शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए लगभग 15 हजार करोड़ की राशि आबंटित की है | इसमें छत्तीसगढ़ राज्य की वित्तीय मदद भी शामिल है |

बताया जा रहा है कि इस योजना की कामयाबी से देश में छत्तीसगढ़ सरकार का डंका बज सकता है | लेकिन इन योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर टेंडर-निविदा में भारी भरकम गोलमाल होने से एक ओर जहां छत्तीसगढ़ सरकार की छवि धूमिल हो सकती है , वही राज्य के लाखों आदिवासी इस महती योजना से वंचित होने की कगार पर पहुंच जायेगे | हालांकि इन निविदा-टेंडर मैनेज करने को लेकर सीबीआई-ईडी और सीवीसी जैसी महत्वपूर्ण एजेंसियां भी सक्रीय नजर आ रही है | ईमानदार विभागीय अफसरों से लेकर आरटीआई कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री से तत्काल हस्तक्षेप की मांग करते हुए निष्पक्ष और पारदर्शितापूर्ण तरीके से नए सिरे से टेंडर-निविदा जारी करने की मांग की है | 

बताया जाता है कि एक बड़े अफसर के निर्देश पर टेंडर-निविदाओं को मैनेज करने का बड़ा खेल विभागीय तौर पर अंजाम दिया गया है | पूरे मसले पर मंत्री और सचिव बेखबर दिखाई दे रहे है | जबकि असलियत से वे भी वाकिफ बताये जा रहे है | यह भी सत्य है कि घोटाले के सामने आने के बाद इन योजनाओं की नाकामी इन्ही दो महत्वपूर्ण व्यक्तियों के कंधों पर आना सुनिश्चित है |  बताया जा रहा है कि पीएचई विभाग के एक निलंबित अधिकारी को क़ानूनी प्रावधानों में नरमी बरतने के बाद ईएनसी जैसे महत्वपूर्ण पद पर काबिज किया गया | हैरत अंगेज इस कारनामे के बाद विभाग में भ्रष्टाचार का बोलबाला दिखाई देने लगा है | बताया जाता है कि इस गैर जिम्मेदार अधिकारी की कार्यप्रणाली ने कई महत्वपूर्ण योजनाओं की कामयाबी पर सवालियां निशान लगा दिया है | 

जानकारी के मुताबिक लगभग  15 हजार करोड़ के इन टेंडरों को झंवर – अग्रवाल नामक दो ठेकेदार मैनेज कर रहे है | झवंर जहाँ पीएचई  के घटिया निर्माण कार्यों को लेकर चर्चित है वही अग्रवाल राज्य के हॉर्टीकल्चर विभाग के कुख्यात सप्लायरों में गिना जाता है |  बताया जाता है कि अग्रवाल के एश्वर्या रेसीडेंसी के करीब स्थित निवास में इन दिनों उन लोगों का ताँता लगा हुआ है जो टेंडर निविदा में आपूर्तिकर्ता के रूप में अपना भाग्य आजमा रहे है | जानकारी के मुताबिक पीएचई की इस महती योजना के क्रियान्वयन की आधारशिला  ही भ्रष्ट्राचार की बुनियाद पर रखे जाने से इसकी कामयाबी पर अभी से सवालियां निशान लगने लगा है | 

जानकारी के मुताबिक  टेंडर-निविदा में उन्ही कंपनियों को इम्पैनल किया जा रहा है , जिनसे झंवर-अग्रवाल की सांठगाठ है | जबकि इन इम्पैनल कराई जाने वाली कंपनियों के सामान बाजार भाव से काफी महंगे और अत्यंत ही घटिया और नकली किस्म के बताये जा रहे है |  यह भी बताया जा रहा ही कि इन उत्पादों की तुलना में प्रतियोगिता से बाहर की गई कई कंपनियों के उत्पाद बेहद गुणवत्ता वाले और सस्ते दामों में इसी बाजार में उपलब्ध है | यह भी तथ्य सामने आया है कि पीएचई में हाल ही में थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन के टेंडर में भी बड़े पैमाने पर अनियमितता और गोलमाल किया गया | 

थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन , पीएचई विभाग की महत्वपूर्ण इकाई और नल जल योजना के क्रियान्वयन में रीढ़ की हड्डी का कार्य करेगी | विभागीय अफसरों को भी उम्मीद थी कि कम से कम इस कार्य में पारदर्शिता बरती जाएगी | लेकिन ऐसा नहीं हुआ |  बताया जाता है कि विभिन्न योजनाओं के तहत 15 हजार करोड़ की राशि के कार्यों की गुणवत्ता , भौतिक परीक्षण और योजनाओं की प्रगति की समीक्षा थर्ड पार्टी  इंस्पेक्शन को करना है | लिहाजा अपनी भ्रष्ट्राचारपूर्ण कार्यप्रणाली क चरितार्थ करते हुए  इस गिरोह ने इस कंपनी की लगाम अपने हाथों में ले ली | इसके लिए भी आर्थिक आपराधिक षड्यंत्र रचा गया | 
 

बताया जाता है कि थर्ड पार्टी  इंस्पेक्शन  टेंडर में देश विदेश की नामी गिरामी कंपनियों ने हिस्सा लिया था | लेकिन उन्होंने टेंडर मैनैज करने वालों को मुँह मांगी कमीशन की रकम देने  से इंकार कर दिया |  बताया जाता है कि प्रतिस्पर्धा में शामिल इन कंपनियों को बाजार में मान सम्मान और गुणवत्ता वाले कार्यों के लिए जाना पहचाना जाता है  |  इन कंपनियों का सालाना टर्न ओवर 500 से 01 हजार करोड़ से ज्यादा का है |  उनके पास इंजीनियरों और विशेषज्ञों की देशी विदेशी टीम है | लेकिन पीएचई के इस टेंडर के भी मैनेज होने के चलते मात्र दो करोड़ के टर्न ओवर वाली कंपनी को यह महत्वपूर्ण कार्य सौंप दिया गया | जबकि इस कंपनी के पास पर्याप्त संख्या में ना तो पूर्णकालिक इंजिनियर है और ना ही अन्य कोई तकनिकी अमला | 

शिकायतकर्ताओं ने मुख्यमंत्री का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा है कि इस कंपनी की जांच में साफ़ हो जायेगा कि वो 15 हजार करोड़ के इस तरह के कार्यों के गुणात्मक अध्ययन के लिए कोई योग्यता नहीं रखती | बावजूद इसके विभागीय अफसरों ने इसका  दामन थाम लिया | उनके मुताबिक पर्दे के पीछे से इस कंपनी के संचालन का कार्य झंवर-अग्रवाल के हाथों में है | बाकायदा उन्होंने  15 हजार करोड़ के विकास कार्यों के जायजे के लिए सब कुछ ठीक ठाक रखने वाली नियमानुसार  इंस्पेक्शन    रिपोर्ट की कमीशन दर 5 फीसदी तय कर दी है | जबकि विभागीय खर्च ठेकेदार को अलग से देना होगा |

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सूत्रों द्वारा यह भी बताया जा रहा है कि पीएचई में टेंडरों की बंदरबाट और उन्हें मैनेज करने की शिकायतें दिल्ली में केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय , सेंट्रल विजलेंस , सीवीसी और आयकर से भी की गई है | फ़िलहाल देखना होगा कि आदिवासियों के कल्याण की योजना से उनका कितना कल्याण होता है | दरअसल बस्तर समेत तमाम आदिवासी इलाकों में शुद्ध पेयजल की कमी  और निस्तार के लिए पानी की किल्ल्त दोनों ही मामलों को लेकर कांग्रेस ने पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार को कई बार घेरा था | लेकिन अब  इन मामलों को लेकर उसकी साख भी दांव पर  है |