राकेश शुक्ला
कांकेर पौराणिक काल में लंका में चढ़ाई करने के लिए भगवन राम की वानर सेना ने राम सेतु तैयार किया था | हजारो साल बाद एक बार फिर ऐसा ही नजारा देखने को मिला लेकिन इस बार मामला कुछ अलग था | बंदरो की जान बचाने के लिए ग्रामीणों ने बांस और लकड़ियों से सेतु तैयार किया | इस सेतु के सहारे सैकड़ो बंदरो ने अपनी नैया पार की | घटना छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के दुधावा बांध की है | यहाँ एक टापू पर लगभग चार माह से फंसे बंदरो का रेस्क्यू किया गया | ग्रामीणों की सहायता से वन विभाग और प्रशासन ने कड़ी मशक्क्त के बाद वानर सेतु तैयार किया था | बंदरो ने एक के बाद एक इस सेतु का इस्तेमाल कर अपने प्राकृतिक आवास जंगलो का रुख किया |
छत्तीसगढ़ के कांकेर में बाढ़ में फंसे बंदरो को चार माह बाद सुरक्षित ठिकानों की ओर भेज दिया गया है | मानसून के शुरुआती दौर जून जुलाई माह में सैकड़ो की तादाद में बन्दर दुधवा बांध में धमाचौकड़ी मचा रहे थे | यहाँ इनके खाने पीने से लेकर रहने तक का प्राकृतिक ठिकाना था | लेकिन जबरदस्त बारिश के चलते बंदरो का ठिकाना टापू में तब्दील हो गया था | चारो ओर से पानी से घिर जाने के कारण तमाम बंदरो की जिंदगी इस टापू में सिमट कर रह गयी थी | कई बंदरो ने टापू से निकल कर जंगलो की ओर रुख करना चाहा | लेकिन पानी में डूबने से उनकी मौत हो गयी | लिहाजा मारे डर के बंदरो ने दुबारा पानी में उतरने की कोशिश ही नहीं की | उन्होंने इस टापू को ही अपना रेन बसेरा बना लिया था | बारिश का मौसम खत्म होने के बाद स्थानीय ग्रामीणों ने बंदरो की सुध ली | लेकिन पानी से घिरे होने के चलते इन बंदरो को टापू से बाहर निकाल पाना टेडी खीर था | लिहाजा ग्रामीणों ने इसकी सूचना वन्य जीव प्रेमियों और स्थानीय प्रशासन को दी | वन विभाग और प्रशासन की टीम ने मौके का जायजा लिया और बंदरो के खाने पीने की व्यवस्था की | जिसके बाद शुरू हुआ ऑपरेशन रेस्क्यू |
सब क़वायतो के बाद शुरू हुई बंदरो को पानी से घिरे उस टापू से बाहर निकालने की मुहिम | बचाव दल ने लकड़ियों और बांसे से पुल का निर्माण किया | यह कार्य काफी जोखिम भरा था | बताया जाता है कि टापू के चारो ओर काफी गहराई तक पानी भरा हुआ था | कुछ भाग तो दलदली भी था | इसके चलते तैराक , गोताखोर और नाविक कोई जोखिम नहीं लेना चाहते थे | लिहाजा उन्होंने बड़ी सतर्कता से लकड़ी और बांस से ऐसा पुल तैयार किया जिसके सहारे बन्दर टापू से मैदानी इलाके की ओर निकल सके | लकड़ी से तैयार पुल पानी के तेज बहाव से क्षतिग्रस्त ना हो जाए इसके लिए बाँध से 500 क्यूसिक पानी भी छोड़ा गया | ग्रामीणों के मुताबिक कड़ी मशक्क्त के बाद यह पुल तैयार हो सका | इसके उपरांत सबसे बड़ी समस्या बंदरो को इस बात का एहसास कराना था कि उनकी जीवन रक्षा के लिए यह पुल तैयार किया गया है | सीसीएफ कांकेर जे. आर. नायक के मुताबिक ये इलाका इतना बड़ा है कि यहाँ ये बन्दर आसानी से अपना गुजर बसर कर सकते है पर इन्हे यहाँ से बाहर निकालने की हर मुकीम प्रयास किया जाएगा |
पुल तैयार होने के बावजूद तीन चार दिनों तक उस पुल को पार करने में बंदरो ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई शायद वो पुल पार करने के लिए हिम्मत नहीं जुटा पाए थे | बंदरो के लिए पुल में जगह जगह फल और सब्जियां भी बाँधी गयी थी जिससे की उन्हें देख कर वो टापू से बाहर आ सके | पर पुल के दूसरी ओर खड़े ग्रामीणों को देख कर भी बंदरो ने टापू से भाग निकलना मुनासिब नहीं समझा | वन विभाग के अमले ने इलाके को खाली करवाया और कुछ दिनों बाद जब बंदरो की जान में जान आयी तो पुल की दूसरी ओर वीरानी छाने के बाद अल सुबह उन्होंने हिम्मत जुटाई और पुल पार कर लिया |