Saturday, September 21, 2024
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भारत में अब जुंए मारने की दवाओं से कोरोना के वायरस को किया जा रहा नष्ट, इन 8 दवाओं से ठीक हुए एक लाख से ज्यादा मरीज, कोरोना वायरस से लड़ने में सक्षम साबित हो रही है ये दवाये

दिल्ली वेब डेस्क / भारत में कई डॉक्टर जुंए मारने की दवाओं से कोरोना संक्रमण को रोकने का प्रयास कर रहे है | यह दवा कोरोना वायरस को ख़त्म करने में भी कारगर बताई जा रही है | भारत में कई महिलाओं और आदमियों के सिर पर जुंए आ जाते है | सामन्यता इसे जूं – लिख भी कहते है | बच्चों से लेकर बूढ़े तक जूं की बीमारी से ग्रसित होते है | अक्सर वे सिर खुजलाते है | लेकिन जूं नष्ट करने वाली दवाई एक मिश्रण के साथ कोरोना वायरस को ख़त्म करने में कारगर साबित हुई है | जानकारी के मुताबिक भारतीय अस्पतालों में आठ दवाओं ने कोरोना वायरस को ख़त्म करने में अच्छा कार्य किया है | ज्यादातर डॉक्टर इन्ही आठ दवाओं पर निर्भर है |

देश में कोरोना जंग जीतने वाले मरीजों को इन दवाओं का साइड इफ्फेक्ट भी नहीं देखा गया है | दरअसल दुनिया भर में कोरोना वायरस की वैक्सीन की खोज अभी भी जारी है | जानकारी के मुताबिक अब तक कोई सटीक दवा नहीं बन सकी है | ना ही कामयाब वैक्सीन को लेकर कोई पुष्ट जानकारी आई है | दूसरी ओर भारत में भी कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं | अच्छी बात ये है कि यहां कोरोना से रिकवर होने वाले मरीजों की भी तादाद में इजाफा हुआ है | भारत में 1 लाख 30 हजार के करीब कोरोना मरीज ठीक हो चुके हैं | 

डॉक्सीसाइक्लिन+आइवरमेक्टिन का उपयोग भी कई मरीजों पर असरकारक दिखाई दिया है | डॉक्सीसाइकलीन एक एंडीबायोटिक दवा है, जिसका उपयोग यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन, आंखों और श्वसन तंत्र संक्रमण के इलाज में किया जाता है | वहीं आइवरमेक्टिन शरीर में मौजूद कीड़ों को मारने की दवा के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है | भारत में आमतौर पर इसका इस्तेमाल जुएं मारने के लिए भी किया जाता है |

इन दोनों दवाओं के मिश्रण से कोरोना वायरस के मरीजों का इलाज किया जा रहा है | मई के मध्य में, बांग्लादेश मेडिकल कॉलेज अस्पताल की एक स्टडी में पाया गया कि इस मिश्रण से कोरोना वायरस के 60 फीसदी मरीज ठीक हो गए थे | मोनाश बायोमेडिसिन डिस्कवरी इंस्टीट्यूट की स्टडी से भी ये पता चला है कि आइवरमेक्टिन वायरस को 48 घंटों में खत्म करता है |

भारतीय अस्पतालों में संक्रमितों पर जो दवा का डोज ज्यादा कारगर दिख रहा है उसमे अव्वल नंबर पर रेमडेसिवीर का नाम लिया जा रहा है | ये एक एंटीवायरल दवा है | सबसे पहले 2014 में इबोला के इलाज में इसका इस्तेमाल किया गया था | WHO के ट्रायल में इस दवा को Covid-19 के कारगर इलाजों में से एक माना गया है | यह शरीर में वायरस रेप्लिकेशन को रोकता है | ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने 1 जून को रेमडेसिवीर के इस्तेमाल को मंजूरी दे दी थी | गंभीर रूप से बीमार कोरोना के मरीजों को अब डॉक्टरों की तरफ से ये दवा दी जा रही है |

एक अन्य दवा फेवीपिरवीर भी प्रयोग में लाई जा रही है | यह भी एंटीवायरल है जो वायरस रेप्लिकेशन को रोकने के लिए दी जाती है | इसे एंटी-इन्फ्लूएंजा दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है | इस दवा को सबसे पहले जापान की फ्यूजीफिल्म टोयामा केमिकल लिमिटेड ने विकसित किया था | ये दवा कोरोना के गंभीर रूप से बीमार मरीजों से लेकर हल्के लक्षण वाले मरीजों को दी जा रही है | कोरोना के मरीजों पर दवा के तीसरे चरण के परीक्षण के लिए दस अस्पतालों को शॉर्टलिस्ट किया गया है | 

टोसिलीज़ुमाब का भी उपयोग इन दिनों विशेषज्ञ डॉक्टर कर रहे है | यह एक इम्यूनो सप्रेसेंट दवा है | भारत में आमतौर पर गठिया के इलाज में इसे उपयोग में लाया जाता है | मुंबई में, कोरोना वायरस के 100 से अधिक गंभीर मरीजों का इलाज इस दवा से किया गया है | बताया जाता है कि इसके रिजल्ट अच्छे आये | पहली बार ये दवा लीलावती अस्पताल में 52 साल के एक मरीज को दी गई थी, जिसकी हालत बहुत गंभीर हो चुकी थी | दवा के डोज से इस मरीज की स्थिति लगातार सुधरते गई | इस दवा से कोरोना के कई मरीजों की हालत में सुधार देखा गया है  | 

इटोलीजुमैब का उपयोग कई मरीजों पर किया गया | इसका रिजल्ट भी अच्छा आया | बताया जाता है कि यह दवा आमतौर पर त्वचा के रोगों जैसे सोरायसिस, रुमेटॉयड आर्थराइटिस, मल्टीपल स्केलेरोसिस और ऑटोइम्‍यून रोग में किया जाता है | दिल्ली और मुंबई में कोरोना के मामूली से लेकर गंभीर मामलों में ये दवा ट्रायल के तौर पर दी जा रही है, जिसके शुरुआती नतीजे जुलाई तक आएंगे |

हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा को लेकर दावा किया जा रहा है कि इसके कारण ही देश में रिकवरी रेट ने जंप किया है | अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस दवा का डोज लेकर उसे सुर्ख़ियों में ला दिया  | कोरोना वायरस पर इस एंटी मलेरिया ड्रग के प्रभाव को लेकर पूरी दुनिया में बहस और रिसर्चे जारी है | भारत इस दवा का सबसे बड़ा उत्पादक है | 

कोरोना के हल्के लक्षण वाले मरीजों जैसे सिर दर्द, बुखार, बदन दर्द से लेकर गंभीर मरीजों को डॉक्टर ये दवा दे रहे हैं | ICMR के दिशानिर्देशों के अनुसार नौ दिनों तक इसकी कम खुराक दी जा सकती है | हालांकि इसके साइड इफेक्ट्स को देखते हुए इसका इस्तेमाल अब कुछ मरीजों पर ही किया जा रहा है | 

रिटोनावीर+लोपिनावीर का डोज भी कई मरीजों के लिए फायदेमंद रहा | बताया जाता है कि भारत में ये एंटीवायरल आमतौर पर एचआईवी के मरीजों के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं | सॉलिडैरिटी ट्रायल में इनकी जांच की जा रही है | कुछ स्टडीज से पता चला है कि ये दवाएं कोरोना के मरीजों के मृत्यु दर को कम करती हैं जबकि कुछ स्टडीज का दावा है कि मरीजों पर इसका कोई खास असर देखने को नहीं मिलता है | हालाँकि कोरोना के गंभीर मरीजों को डॉक्टर कभी-कभी इन दवाओं का मिश्रण देते हैं |

प्लाज्मा थेरेपी की चर्चा भी जोरो पर है | कोरोना संक्रमित कई मरीजों के ठीक होने के बाद उन्होंने अपनी प्लाज्मा डोनेट किया है | प्लाज्मा थेरेपी में कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों के शरीर से लिए गए प्लाज्मा को कोरोना के एक्टिव मरीजों के शरीर में डाला जाता है | डॉक्टरों के मुताबिक इससे उस मरीज के शरीर में कोरोना से लड़ने की एंटीबॉडी बन जाती है |

दिल्ली के कई अस्पतालों में प्लाज्मा थेरेपी का ट्रायल जारी है | अस्पतालों नें अपने ट्रायल में इस थेरेपी को मरीजों पर काफी असरदार बताया है | प्लाज्मा थेरेपी देने वाले मरीजों का चयन ICMR के प्रोटोकॉल के तहत किया जाता है | देश में आमतौर पर प्लाज्मा थेरेपी के लिए उन मरीजों को वरीयता दी जाती है जिनमें साइटोकाइन स्टॉर्म या फिर गंभीर निमोनिया की वजह से सांस लेने में दिक्कत हो रही हो |

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