Site icon News Today Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ में पीड़ितों की आत्महत्या सिर्फ तमाशा बनकर रह गई, FIR दर्ज होने के बावजूद जनता की जान लेने वालों की गिरफ्तारी से बीजेपी सरकार को परहेज, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को रोजाना नए मुद्दे तश्तरी में परोस रही नौकरशाही….   

रायपुर: छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की राजनैतिक बहार सुर्ख़ियों में है। बीजेपी के सत्ता में काबिज होने के बावजूद पार्टी अपने द्वारा ही बोई हुई फसल काट रही है। उसे मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सरकार के खिलाफ रोजाना नित्त-नए मुद्दे हाथों-हाथ मिल रहे है। बीजेपी सरकार के खिलाफ माहौल तैयार करने के लिए कांग्रेस की कवायत और रणनीति दोनों ही कारगर साबित हो रही है। प्रदेश में बिगड़ती कानून व्यवस्था का हवाला देकर गांव कस्बों तक कांग्रेसी कार्यकर्ता सड़कों पर उतर रहे है।

उधर बीजेपी मुख्य विपक्षी दल की जोर-आजमाइश से पसोपेश में है। प्रदेश में हर एक अप्रिय घटना के बाद विपक्षी नेताओं द्वारा सरकार की तगड़ी घेराबंदी की जा रही है। हालत यह है कि राज्य की बीजेपी सरकार को अपनी ही नौकरशाही से दो-चार होना पड़ रहा है। 

दरअसल, प्रदेश में सरकारी व्यवस्था उस नौकरशाही के चंगुल में समाती जा रही है, जिसने अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार को भी गच्चा देने में कोई कसर बाकि नहीं छोड़ी थी। बीजेपी शासन में भी ऐसे ही नौकरशाहों की तूती बोल रही है, जिन्होंने पिछले पूरे 5 साल तक कांग्रेस का दुपट्टा ओढ़ कर सरकारी दफ्तरों को ब्लैक मनी इकठ्ठा करने का जरिया बना लिया था।

ऐसे दर्जनों अफसर मौजूदा बीजेपी सरकार में भी अपने पद और प्रभाव का बेजा इस्तेमाल कर रहे है। उनकी कार्यप्रणाली से बैठे-बिठाये कांग्रेस को बीजेपी सरकार के खिलाफ आग उगलने का मौका मिल रहा है। राजनैतिक गलियारों में चर्चा है कि जल्द ही ऐसे दागी अफसरों पर काबू नहीं पाया गया तो आने वाले दिनों होने वाले चुनाव में बीजेपी को बड़ा खामियाजा उठाना पड़ सकता है।

ताजा मामला उन सरकारी कर्मियों से जुड़ा है, जिन्होंने दागी नेताओं और अधिकारियों की प्रताड़ना झेलते-झेलते आत्महत्या जैसा संगीन कदम भी उठा लिया। ऐसे कर्मियों की मौत के बावजूद शासन-प्रशासन का असंवेदनशील रवैया पीड़ितों पर और भारी पड़ रहा है। आपराधिक प्रकरण दर्ज होने के लम्बे अरसे बाद भी आत्महत्या के लिए जिम्मेदार आरोपियों की गिरफ्तारी ना होने से प्रदेश की कानून व्यवस्था एक बार फिर सुर्ख़ियों में है।

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के कलेक्टर कार्यालय में पदस्थ कर्मी कर्मचारी प्रदीप उपाध्याय ने संयुक्त कलेक्टर स्तर के दो अधिकारियों की प्रताड़ना और भ्रष्टाचार का हवाला देकर अपनी जान दे दी थी। प्रदीप उपाध्याय ने आत्महत्या से पूर्व लिखे एक सुसाइड नोट में 3 एडीएम स्तर के अफसरों पर भारी भरकम भ्रष्टाचार करने के लिए प्रताड़ित का आरोप लगाया था। पोस्टमार्टम के बाद मृतक की लाश परिजनों को सौंप दी गई थी। पीड़ित परिवार के मुताबिक पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ जल्द ठोस कार्यवाही का भरोसा दिलाया था।

अब मृतक की शॉर्ट पोस्टमार्टम रिपोर्ट आए लगभग दूसरा हफ्ता ख़त्म हो गया है। लेकिन सुसाइड नोट में दर्ज इबारत को नजरअंदाज कर लपेटे में आये अधिकारियों के खिलाफ ना तो कोई विभागीय कार्यवाही प्रस्तावित की गई है, और ना ही FIR तक दर्ज करने के लिए शासन-प्रशासन ने कोई रूचि दिखाई है। ऐसे में पीड़ित परिवार बीजेपी सरकार से न्याय की गुहार लगा रहा है। ये और बात है कि अन्य मामलों की तरह पीड़ितों की गुहार नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह दबकर रह गई है। पीड़ितों के मुताबिक इसका कारण भी गिनाया जा रहा है, पहला, प्रदेश की 24वी वर्षगांठ की खुशियों में शासन डूबा हुआ है, जबकि दूसरा, प्रदेश के संवेदनशील गृहमंत्री झारखंड चुनाव में व्यस्त बताये जाते है।

यही हाल बालोद के उस पीड़ित परिवार का भी है, जिस परिवार के मुखिया ने पूर्व मंत्री अकबर और उसके संगी-साथियों की प्रताड़ना से तंग आकर मौत को गले लगा लिया था। यह परिवार भी लंबे अरसे से न्याय की गुहार लगा रहा है।बालोद के पीड़ित शिक्षक प्रधानपाठक देवेंद्र ठाकुर की आत्महत्या मामले में स्थानीय पुलिस ने पूर्व मंत्री मोहम्मद अकबर के खिलाफ आत्महत्या के लिए प्रेरित करने के प्रकरण को विभिन्न धाराओं के तहत पंजीबद्ध करने में जितनी तेजी दिखाई, उतनी ही फुर्ती से आरोपियों की गिरफ्तारी किये जाने को लेकर पुलिस के हाथ बांध दिए गए। 

जानकारी के मुताबिक बालोद जिले के डौंडी ब्लाक में पदस्थ शिक्षक की आत्महत्या मामले में आरोपी कांग्रेस नेता व पूर्व वन मंत्री मो. अकबर की अग्रिम जमानत याचिका जिला एवं सत्र न्यायालय से खारिज हुए लगभग 2 माह बीत गए है। लेकिन बीजेपी सरकार को उनकी भी गिरफ्तारी से परहेज  है। मृतक देवेंद्र ने अपने सुसाइड नोट में अकबर समेत 3 अन्य लोगों के नाम लिख कर उनकी कारगुजारियों से शासन-प्रशासन को वाकिफ कराया था। FIR के बाद पूर्व मंत्री ने अपने बचाव के लिए ऐसा ताना-बाना बुना की राज्य की बीजेपी सरकार भी उस पर मेहरबान हो गई। 

उधर बालोद के जिला न्यायालय में अग्रिम जमानत ख़ारिज करते हुए सत्र न्यायाधीश एसएल नवरत्न ने कहा था कि मामला गंभीर है, आरोपित को जमानत दी जाती है तो साक्ष्य को प्रभावित कर सकता है। दरअसल, पीड़ित से वन विभाग में नौकरी लगाने के नाम पर मोटी रकम की उगाही की गई थी। बताया गया कि पेशेवर राजनेता की टोली ने अपने पद और प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए 75 लोगों से 3.70 करोड़ की ठगी की थी। इस मामले में शिकायतकर्ताओं को ना तो नौकरी मिली और ना ही उनकी रकम लौटाई गई थी। आखिरकार 3 सितंबर 2024 को देवेंद्र ठाकुर ने आत्महत्या कर ली थी।

यही हाल पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश का कुख्यात लुटेरा भूपे बघेल का भी बताया जाता है। बघेल के अलावा उसके परिजनों के खिलाफ भी कई गंभीर आपराधिक प्रकरण लंबे अरसे से अलमारियों में कैद कर दिए गए है। पूर्व मुख्यमंत्री को महादेव ऐप घोटाले समेत भ्रष्टाचार के दर्जनों प्रकरणों का मुख्य मास्टर-माइंड बताया जाता है। लेकिन किसी भी आपराधिक मामले में उसकी भी गिरफ्तारी तो दूर बयान दर्ज कराने तक के लिए महीनों बाद भी नोटिस तक जारी नहीं किया गया है। 

बताते है कि मुख्यमंत्री का भूत उतरने के बाद कुर्सी खाली करते ही, यह शख्स गरीबों की तिजोरी भी खाली कर गया था। यही नहीं तत्कालीन मुख्यमंत्री कार्यालय में पदस्थ उपसचिव सौम्या चौरसिया को अपने तिलस्म से जुड़वा बच्चों की सौगात सौंपने के बाद यह शख्स इन बच्चों के नैसर्गिग माता-पिता को लेकर भी सुर्ख़ियों में बताया जाता है। 

भूपे की तर्ज पर उसके पुत्र और पुत्री भी ऑनर किलिंग के एक मामले में खूब सुर्खियां बटोर रहे है। लेकिन उनकी गिरफ्तारी को लेकर भी बताया जाता है कि पुलिस के हाथ-पैर बांध दिए गए है और पुलिस अधीक्षक के मुँह में पट्टी बांध दी गई है। ताकि वैधानिक मामलों में भी कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी सिर्फ मौन धारण कर सके। ऐसे दर्जनों मामले सामने आने से प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवालियां निशान लगना लाजिमी है। राजनैतिक-प्रशासनिक मामलों के जानकार तस्दीक कर रहे है कि विष्णुदेव साय सरकार के सिस्टम में पूर्व मुख्यमंत्री भूपे के दर्जनों अंधभक्त नौकरशाह अपना समीकरण फिट करने के मामले में कामयाब रहे है।

अब वे बीजेपी सरकार को रुसवा करने में जोर-शोर से जुटे हुए है। उनकी करतूतों से कांग्रेस को आये दिन बीजेपी के खिलाफ मुद्दे पर मुद्दे हाथ लग रहे है। जानकारों के मुताबिक सरकारी व्यवस्था में ऐसे दागी अधिकारियों की सहभागिता साय सरकार की सेहत के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। फ़िलहाल आत्महत्या जैसे संगीन मामलों में सरकार की बेरुखी से पार्टी के कई नेता ही नहीं बल्कि जनता भी हैरत में है। 

Exit mobile version