छत्तीसगढ़ में हाथियों के पैरो तले ग्रामीणों को कुचलवाने की साजिश में जुटे तथाकथित एनजीओं, हाथियों के लिए एक बड़ी ग्रामीण आबादी को खदेड़े जाने का षड्यंत्र, एनजीओं के इशारे पर तैयार लेमरू एलिफेंट प्रोजेक्ट विवादों में, वन विभाग के ग्राम सभाओं के आयोजन के निर्देश से बवाल, सैकड़ों गांव में खलबली, ग्रामीणों ने कहा जान चली जाए लेकिन लेमरू हाथी परियोजना में सहमति नहीं देंगे, हाथियों के बढ़ते हमले और इंसानी संघर्ष के चलते प्रोजेक्ट के खिलाफ ग्राम सभाएं   

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रायपुर / छत्तीसगढ़ में क्या ग्रामीणों को हाथियों के पैरों तले कुचलवाने की साजिश रची जा रही है | तभी तो पहले से तैयार प्रोजेक्ट एलिफेंट के बजाय कुछ एनजीओं के इशारे पर नए सिरे से लेमरू एलिफेंट प्रोजेक्ट का दायरा बढाकर सैकड़ों गांव में राज्य सरकार के खिलाफ अभियान छेड़ा जा रहा है | हाथी प्रभावित इन इलाकों में हफ्तेभर से तनाव की स्थिति देखि जा रही है | एक बड़ी आबादी को हाथियों के हमले की चिंता सताने लगी है | वे साफतौर पर कह रहे है कि हमारी जान चली जाए , लेकिन इस प्रोजेक्ट को लागू करने के लिए वे ग्राम सभाओं को अनुमति नहीं देंगे | ग्रामीणों के मुताबिक भविष्य के खतरों से बेखबर हो कर लेमरू प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई है | ग्रामीणों का आरोप है कि कुछ तथाकथित एनजीओं के बहकावे में आकर अफसरों और नेताओं ने लेमरू प्रोजेक्ट का दायरा बढ़ा दिया | उनका यह भी कहना है कि एनजीओं के बहकावे में आकर राज्य सरकार ऐसा कोई कदम ना उठाये जिससे ग्रामीणों को जान माल का नुकसान उठाना पड़े | 

दरअसल छत्तीसगढ़ में हाथियों की आवाजाही और ग्रामीणों पर उनके हमले कोई नई बात नहीं है | सालो पहले से राज्य के लगभग आधा दर्जन जिलों में उड़ीसा और झारखंड के रास्ते हाथियों की आवाजाही होती है | कुछ वर्षों में कई हाथियों ने कुछ खास इलाकों में ही डेरा डाल लिया है | अब वे उड़ीसा और झारखंड के जंगलों में जाने के बजाए छत्तीसगढ़ के जंगलों में ही स्थाई ठिकाना बनाये हुए है | उनकी आबादी भी काफी बढ़ चुकी है | लिहाजा परंपरागत इलाकों के अलावा नए इलाकों में जहां हाथियों का प्रवेश हो रहा है , वही उनके द्वारा ग्रामीणों को जान माल का नुकसान भी उठाना पड़ रहा है | अब इन इलाकों में हाथियों और इंसानों के बीच संघर्ष उफान पर है | हाथियों के हमलों में जहां तेजी आई है , वही अब उनका प्रवेश नए जिलों में भी हुआ है | पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार ने केंद्र सरकार के सहयोग से हाथियों को एक ही स्थान पर सहेज कर रखने के लिए प्रोजेक्ट एलिफेंट को मंजूरी दी थी | लेकिन यह प्रोजेक्ट करीब 15 साल बाद भी आधा अधूरा रहा | जानकारों के मुताबिक इसके चलते ना केवल हाथियों के हमले में तेजी आई बल्कि उन्होंने नए इलाकों में प्रवेश किया है | छत्तीसगढ़ में मौजूदा सूरतेहाल यह है कि राज्य के हाथी प्रभावित इलाकों में इंसानो और हाथियों के बीच जबरदस्त संघर्ष की स्थिति देखी जा रही है | आए दिन इन इलाकों में कभी हाथियों के बेमौत मारे जाने की घटनाएँ सामने आ रही है , तो कभी हाथियों के हमले में निर्दोष ग्रामीणों के जान माल के नुकसान की खबरे सुर्ख़ियों में रहती है | 

छत्तीसगढ़ में पांच साल पहले तक हाथी सिर्फ कोरबा, कोरिया, रायगढ़, जशपुर व सरगुजा के कुछ वन क्षेत्रों तक सिमटे थे। अब ये महासमुंद, बलौदाबाजार, गरियाबंद के साथ सरगुजा संभाग के बलरामपुर, सूरजपुर तक फैल चुके हैं। जंगलों में वनवासियों की बस्तियां, आसपास के गांव जरूर इनके निशाने पर रहते थे। अब हाथी महासमुंद, अंबिकापुर में कलेक्टोरेट तक पहुंच गए, रायपुर के सीमावर्ती गांव में महीनों से इनका दल उपद्रव कर रहा है। कोरबा की कॉलोनियों से अक्सर इनकाे  खदेड़ना पड़ता है। बेहद कम समय में इनका दायरा 5 जिलों से बढ़कर 10 जिलों तक बढ़ गया है। पांच साल में 263 जान लेने के साथ सिर्फ 2019 में 750 से अधिक मकान तोड़ चुके हाथियों ने 2850 से अधिक हेक्टेयर फसल रौंद दी है।  

राज्य में पहले से अस्तित्व में आए प्रोजेक्ट एलिफेंट को पूरा करने के बजाय राज्य शासन की मौजूदा महत्वाकांक्षी योजना हाथी कॉरिडोर लेमरू प्रोजेक्ट इन दिनों लोगों पर भारी पड़ रहा है | इसका गांव गांव में विरोध शुरू हो गया है | खासतौर पर विकासखंड उदयपुर एवं लखनपुर में इसका पुरजोर विरोध किया जा रहा है। राज्य में कांग्रेस की सरकार बनते ही वर्ष 2019 के बजट में इस प्रोजेक्ट को न केवल शामिल किया गया, बल्कि क्षेत्रफल बढ़ाकर 1995.48 वर्ग किलोमीटर कर दिया। समस्या यही से उठ खड़ी हुई है | दरअसल ग्रामीणों की चिंता इस बात को लेकर है कि यदि उनके रहवासी क्षेत्र इस प्रोजेक्ट के भीतर समाहित कर दिए जायेंगे तो वे ना केवल हाथियों के हमले का शिकार बनेगे बल्कि उनका जीवन यापन भी कठिन हो जायेगा | यही नहीं भविष्य में उन्हें उन इलाकों से खदेड़े जाने की योजनाएं भी तैयार हो जाएगी |   
 

कांग्रेस सत्ता में आई उसी समय हाथियों के रिजर्व एरिया के लिए कांग्रेसी नेताओं ने लेमरू हाथी परियोजना की घोषणा की थी। इसे पार्टी घोषणा पत्र में भी शामिल किए जाने पर जोर दिया गया था | इस दौरान लोगों ने सभाएं आयोजित कर इस परियोजना का विरोध किया था। इसी बीच कोरोना का संकटकाल आया और यह परियोजना ठंडे बस्ते में चली गई। लेकिन हाल ही में 2 अक्टूबर को लेमरू प्रोजेक्ट के लिए ग्राम सभा का आयोजन की सूचना आने से  एक बार फिर कई गांवों में तनाव देखा जा रहा है | एक बड़ी आबादी पहले से ही हाथियों के हमले से परेशान है | और अब ग्राम सभाओं के जरिये प्रशासन ग्रामीणों पर हाथियों को न्यौता देने के लिए दबाव डाल रहा है | राज्य सरकार और वन विभाग की ओर से पंचायतों और सचिवों को आवश्यक रूप से ग्राम सभा के आयोजित करने का आदेश मिला है | वन विभाग की ओर से जारी आदेश में कहा गया कि वो ग्राम सभा में जाकर हाथी लेमरू परियोजना की जानकारी लोगों को दें और समझाइश भी दें कि लोगों को विस्थापित नहीं किया जाएगा सिर्फ हाथी के लिए गांव की सीमा में घेराव किया जाएगा।  

 वन विभाग के इस आदेश के तहत जैसे ही वन विभाग के कर्मचारियों ने गांव में आकर बताना शुरू किया, लोग आक्रोशित होते चले गये और उन्होंने कहा कि यदि ऐसा ही शासन चाहती है, तो हम ग्राम सभा में सहमति का प्रस्ताव किसी भी हाल में नहीं देंगे, चाहे हमारी जान ही क्यों न चली जाये। लोगों ने यह भी कहा कि यदि सरपंच सचिव हमारी मर्जी के खिलाफ शासन के दबाव में आकर सहमति प्रदान करते हैं तो उन्हें इस गलती का दंड भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए। ग्राम सभा का आयोजन लेमरू प्रोजेक्ट के लिए मतरिंगा, सितकलो, बुले, भकुरमा, पनगोती, बडे गांव, मरेया, कुडेली, बकोई, पेंण्डरखी, ,खूजी, शायर कुम्डेवा,जिवालिया बिनिया, अरगोती, ढोणा केसरा, पटकुरा, जैसे अनेक सीमावर्ती एंव पहाडी़ इलाकों में किया गया था। सभी ग्राम पंचायतों के ग्रामीणों ने एक स्वर में यही कहा कि हम किसी भी हाल में अपने क्षेत्र में इस परियोजना को लागू नहीं होने देंगे एंव अंतिम सांस तक लड़ते रहेंगे।

ग्रामीणों का यह भी कहना था कि इधर कभी कभार कुछ हाथी आते हैं, और चले जाते है। लेकिन परियोजना बनने के बाद सरकार पूरे प्रदेश के हाथियों को लाकर यहां छोड़ देगी और हाथी तार के एक घेरे को अपनी सीमा बना कर गांवों में नहीं घुसेंगे, ऐसा नहीं हो सकता। लोगों ने कहा कि हमारे पास गाय, भैंस, बकरी जैसे पालतू जानवर होते हैं, जिन्हें हम जंगल में ही चराते हैं लेकिन हाथियों के आने के बाद अन्य पशुओं को चारा पानी नहीं मिल पाएगा।  2 अक्टूबर के बाद लगातार गांव में बैठकों का दौर जारी है। वहीं वन विभाग भी सक्रिय है, सरपंच सचिवों की बैठक भी आला अफसर ले रहे हैं। इसी तारतम्य में 30 गांव के जनप्रतिनिधियों की बैठक ग्राम केदमा में भी 5 अक्टूबर को क्षेत्रीय नेता विनोद हर्ष की उपस्थिति में आयोजित किया गया, जिसमें सभी ग्रामीणों ने कहा कि हम सरकार की मंशा को सफल नहीं होनें देगें, क्योंकि हाथियों के आने के बाद लोग स्वयं घर छोड़ भागने को मजबूर होंगे।

केदमा में हुये बैठक में विनोद हर्ष सरपंच, कृतिका सिंह, जनपद सदस्य सज्जू सिंह, पूर्व जनपद सदस्य प्रेम सिंह,रामलाल सिंह, के.सी. चैहान, अशोक अग्रवाल, सुनील अग्रवाल, बृजेश चतुर्वेदी, श्री नाथ सिंह, महेशवर सिंह, अशोक दास लखन यादव, दिनेश सिंह, गुलाब सिंह, सहित सभी पंच गण तथा सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण जन उपस्थित रहे। लोगों ने एक स्वर में कहा कि वन विभाग की समझाइश बेकार है, तथा हम किसी के दबाव में नहीं आएंगे और सरकार द्वारा निर्मित इस विषम परिस्थिति का डटकर मुकाबला करेंगे।

बताया जा रहा है कि कुछ एनजीओं सुनियोजित रणनीति के तहत लेमरू प्रोजेक्ट को जोर जबरदस्ती लागू करवाने को लेकर जुटे हुए है | इसके लिए वो ना केवल राज्य की कांग्रेस सरकार के कर्ता-धर्ताओं को भड़का रहे है , बल्कि भविष्य के खतरों को नजरअंदाज कर सैकड़ों गांव के सामने नयी समस्या पैदा करने की योजनाओं को मूर्त रूप दे रहे है | बताया जा रहा है कि भविष्य में ग्रामीणों को होने वाली कठनाई और समस्याओं से राज्य सरकार को वाकिफ नहीं करवाया गया है | नतीजतन भविष्य के खतरों से बेखबर राज्य सरकार भी इन एनजीओ के प्रभाव में नजर आ रही है | हालांकि राज्य के वन मंत्री मोहम्मद अकबर का दावा है कि वन्य जीवों की हानि के साथ ही जन हानि को रोकना हमारा पहला उद्देश्य है। इसी के लिए कैबिनेट ने लेमरू प्रोजेक्ट को मंजूरी दी है |  

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