रायपुर: छत्तीसगढ़ में रिश्वत का हिसाब-किताब अब आयकर विभाग को भी सौंपा जायेगा। शायद इसी लिए कई विभागों में बैंक एकाउंट में रिश्वत लेने का नया चलन शुरू हो गया है। इस मामले में जेल विभाग का नेटवर्क सुर्ख़ियों में है। इस विभाग में जेल कर्मी बाकायदा पेटीएम, फ़ोन-पे एवं ऑनलाइन बैंकिंग सिस्टम से रिश्वत प्राप्त कर रहे है। यह गोरखधंधा कई वरिष्ठ अधिकारियों के नाक के नीचे बदस्तूर जारी है। बंदियों के परिजनों की आर्थिक कठिनाइओं को दरकिनार कर जेल कर्मी-प्रहरी ‘जेल सेवा’ के नाम पर हफ्ता और महीना वसूली कर रहे है। दावा किया जा रहा है कि इस कारोबार में ऊपर तक हिस्सेदारी तय है,बंदरबांट का ब्यौरा भी सामने आया है। जेल विभाग की सुध तक नहीं लेने से प्रदेश में बंदियों को बेहद ख़राब हालत के दौर से गुजरना पड़ रहा है।

अंदेशा जाहिर किया जा रहा है कि आने वाले दिनों भी यही हाल रहा तो जेल के भीतर अपराधों और आत्महत्याओं में तेजी आएगी। जानकारी के मुताबिक समूचे विभाग में जेल प्रहरियों के अनधिकृत एकाउंट में हर माह लाखों की रकम जमा हो रही है। इस शुल्क की अदाएगी के उपरांत ही बंदियों को जेल में सुविधाएं तय की जाती है। कई पीड़ितों से मोटी रकम वसूलने के लिए प्रताड़ना के नए-नए नुस्खे आजमाए जाते है। सूत्र तस्दीक करते है कि सेंट्रल जेल से लेकर उप जेल तक बैंक एकाउंट में रिश्वत लेने का खेल जोरो पर है।

यह भी बताया जाता है कि कतिपय वरिष्ठ जेल अधिकारियों की देखरेख में अवैध वसूली का सुनियोजित संचालन किया जा रहा है। पीड़ित कई बार रोते-बिलखते जेल सेवा शुल्क में कटौती के लिए मिन्नतें करते है, लेकिन ना तो जेल परिसर में कोई सुनवाई होती है, और ना ही मंत्री के दरबार में। भुक्त भोगी तस्दीक करते है कि प्रदेश की विभिन्न जेलों के भीतर मुफ्त खान-पान और रहवास के सरकारी दावों के ठीक विपरीत कारोबार संचालित किया जा रहा है।

वर्दी के खौफ और अवैध उगाही के लिए मारपीट और प्रताड़ना के दर्जनों मामले उजागर होने के बावजूद दोषी कर्मियों पर कोई ठोस वैधानिक कार्यवाही नहीं होने पर जेल के भीतर आत्महत्या और हिंसा के मामलों में तेजी आई है। उचित रहवास और खान-पान की मानवीय व्यवस्था और सरकारी सुविधाओं को उपलब्ध कराने के नए कारोबार से जेल विभाग के कई अफसरों की आमदनी हर माह करोड़ों में आंकी जा रही है। जानकार तस्दीक कर रहे है कि इस कारोबार को क़ानूनी शक्ल देने और आयकर विभाग को रिश्वत का पारदर्शितापूर्ण तरीके से ब्यौरा सौंपने की पहल के तहत बाकायदा बैंकों के जरिये लेनदेन किया जा रहा है। कई मौकों पर शिकायतकर्ताओं ने विभागीय अधिकारियों के संज्ञान में सुविधाओं के नाम पर सेवा शुल्क वसूले जाने के प्रामाणिक तथ्य सौंपे थे।

उनकी दलील है कि अधिकारियों ने ऐसे मामलों की जांच और सत्यता से रूबरू होने तक से पल्ला झाड़ लिया था। रायपुर सेंट्रल जेल में सेवा शुल्क कारोबार की कमान जेल प्रहरियों के हाथों में बताई जाती है, उनके अघोषित बैंक एकाउंट में लेनदेन का ब्यौरा सोशल मीडिया तक में वायरल बताया जाता है। छत्तीसगढ़ में जेल विभाग की आतंरिक गतिविधियां इन दिनों खूब सुर्खियां बटोर रही है। राज्य में बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के बाद जेल के भीतर अमन-चैन दूर की कौड़ी साबित हो रहा है।

आईटी-ईडी और सीबीआई के कई आरोपियों के जेल में मस्ती के चर्चे आम होने के बाद एक नए कारोबार की जमी-जकड़ी जड़े भी सामने आई है। प्रदेश की विभिन्न जेलों में दावा तो जेल मैनुअल के पालन का किया जा रहा है, लेकिन अवैध वसूली के लिए चार-दीवारी के भीतर अमानवीय यातनाओं का दौर शुरू हो गया है। जानकारी के मुताबिक रायपुर सेंट्रल जेल में चाकूबाजी और गैंगवार आम है। लेकिन अब मामला बंदियों की खुदकुशी का भी आम हो चला है।

बंदियों की सुरक्षा और उनके रहवास को लेकर जेल प्रशासन के तमाम दावे उस समय धरे के धरे रह जाते है, जब सुबह सबेरे बैरकों से फांसी के फंदे पर लटकी लाश नजर आती है। जेल के भीतर जहाँ परिंदा भी पर नहीं मार सकता, वहां सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में कई प्रताड़ित बंदी आत्महत्या करने जैसा घातक कदम उठा रहे है। जानकारी के मुताबिक रायपुर सेंट्रल जेल समेत अन्य जेलों में बंदियों की सुरक्षा व्यवस्था बदहाल बताई जाती है। चार-दीवारी के भीतर मर्डर, चाकूबाजी, रंगदारी, गैंगवार जैसी घटनाएं आम होने से महकमे की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है। रायपुर सेंट्रल जेल में विचाराधीन एक विदेशी बंदी की खुदकुशी का मामले की जांच अभी अंजाम तक ही नहीं पहुंची थी कि एक और नए बंदी की लॉकअप में संदिग्ध हालात में लाश पाई गई।

जेल प्रबंधन ने आम घटना की तर्ज पर इस प्रकरण कों खुदकुशी करार देते हुए स्थानीय गंज थाने में विभागीय खानापूर्ति कर दी है। लेकिन घटना के कारणों की तह तक जाने के मामले में अपना पल्ला झाड़ लिया है। सूत्र तस्दीक करते है कि इस तरह की घटनाओं के सामने आने से जेल सुविधाओं का कारोबार दिन दुगुनी रात चौगुनी प्रगति कर रहा है। पुलिस से प्राप्त जानकारी के मुताबिक ओम प्रकाश निषाद नामक महासमुंद जिले का रहने वाला एक बंदी की बैरक नंबर 21 में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत का मामला सामने आया था। पुलिस के मुताबिक मृतक वर्ष 2016 से जेल में निरुद्ध बताया जाता है। जेल प्रबंधन की शिकायत पर गंज पुलिस ने मर्ग कायम किया है, घटना का ब्यौरा देते हुए बताया गया कि ओम प्रकाश निषाद ने गले में नायलोन की रस्सी का फंदा बना कर आत्महत्या की थी। उस पर बैरख के अन्य बंदियों की निगाहे सुबह करीब 10 बजे पड़ी।

यह भी बताया जाता है कि मृतक बंदी के खिलाफ हत्या और पॉस्को एक्ट के तहत अपराध दर्ज कर जेल दाखिल कराया गया था। शव के पोस्टमार्टम के बाद खानापूर्ति कर दी गई है। आत्महत्या का मामला जेल विभाग की संदिग्ध गतिविधियों से जुड़ा बताया जाता है। पीड़ित परिवार समेत कई बंदी तस्दीक करते है कि जेल में सुबह लगभग 5 बजे से कैदियों-बंदियों की दैनिक गतिविधियां शुरू हो जाती है। प्रार्थना, चाय-नाश्ता और बैरकों की रोजाना सफाई प्रातः काल से शुरू होने के बावजूद सुबह 10 बजे मृतक बंदी की आत्महत्या का मामला सामने आने से जेल विभाग की सक्रियता और बंदियों के प्रति जवाबदेही सवालों के घेरे में बताई जा रही है।

रायपुर केंद्रीय जेल में किसी बंदी की आत्महत्या और अवैध वसूली के ऐसे मामले पहले नहीं है। इसके पूर्व 28 जनवरी 2025 को अफ्रीकी मूल के पेट्रिक नामक बंदी की संदिग्ध रूप से खुदकुशी का मामला सामने आया था। पेट्रिक ड्रग्स तस्करी के केस में वर्ष 2021 से इस जेल में निरुद्ध था। बताते है कि पेट्रिक की मौत की आधी-अधूरी जांच और मामले को रफा-दफा कर दिए जाने से सेवा शुल्क के अवैध कारोबार ने आसमान छू लिया है। सूत्र तस्दीक करते है कि आईटी-ईडी और सीबीआई के कई आरोपी मोटी रकम अदा कर आज भी VIP सुविधाएं प्राप्त कर रहे है।

बंदियों के जेल के भीतर स्थित अस्पताल में दाखिल होने, यहाँ इलाज-दवा की उपलब्धता, विभिन्न बीमारियों से ग्रसित मरीज बंदियों की डाइट और जेल से बाहर के अस्पतालों में इलाज के लिए रेफर करने को लेकर भी बंदियों को सेवा शुल्क के दौर से गुजरना पड़ रहा है। जेल की हवा खा रहे बंदियों को मेकाहारा एवं जिला अस्पताल में रेफर करने के लिए भी विशेष शुल्क तय कर दिया गया है। आईटी-ईडी, सीबीआई और धोखाधड़ी के आरोपियों की मेकाहारा और जिला अस्पताल में मनचाही भर्ती के लिए डॉक्टर सक्रिय रहते है, जेल रिकॉर्ड का अध्ययन करने के बाद साफ हो रहा है कि कई प्रभावशील बंदियों के मुँह मांगी रकम अदा करने से कई बार वे इलाज के नाम पर अंदर-बाहर हो रहे है। जबकि हकीकत में पीड़ित मरीजों की सुध तक नहीं ली जा रही है।

VIP सुविधाओं में बंदियों की परिजन मुलाकात, खाने-पीने की वस्तुओं को सुरक्षित रूप से लाभार्थी बंदियों के बैरकों तक पहुँचाना, पत्राचार, फ़ोन शुल्क एवं अन्य सुविधाएं शामिल बताई जाती है। बंदियों की पेशी लगवाने-टालने, वकील मुलाकात एवं जेल मैनुअल के तहत सुविधाओं की प्राप्ति हेतु पृथक से जेबे ढीली करनी पड़ती है। बताते है कि सेवा शुल्क पहले नगद में स्वीकार किया जाता था। लेकिन अब आवक बढ़ने से वसूली के तौर-तरीके भी बदल गए है। सूत्र यह भी तस्दीक करते है कि बंदियों के परिजनों की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए जेल प्रशासन ने अपने कर्मियों और जेल प्रहरियों को अघोषित बैंक खाते खोलने के लिए प्रेरित किया है, इन खातों में पेटीएम, फ़ोन-पे एवं ऑनलाइन बैंकिंग सिस्टम के जरिये सेवा शुल्क जमा करने की सुविधा मुहैया कराई गई है।

जेल में कैद बंदियों के शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना एवं अवैध कारोबार से जुड़े प्रकरणों में जांच कार्यवाही की आधिकारिक जानकारी प्राप्त करने को लेकर न्यूज़ टुडे संवाददाता ने डीजी जेल से सम्पर्क किया, लेकिन कोई आधिकारिक जवाब नहीं मिल पाया। इस मामले में राज्य सरकार का पक्ष जानने के लिए गृह एवं जेल मंत्री से भी संपर्क किया गया, लेकिन मंत्री जी की व्यस्ता और दौरों के चलते कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई। फ़िलहाल, ई-बैंकिंग सुविधाएँ गांव-कस्बों से ज्यादा छत्तीसगढ़ की जेलों में कारगर साबित हो रही है।