छत्तीसगढ़ में नौकरशाहों ने अपने भ्रष्ट्राचार और अहम की लड़ाई में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सरकार की प्रतिष्ठा लगा दी दांव पर , हाईकोर्ट ने नौकरशाहों की कार्यप्रणाली पर की ये टिप्पणी , गौर करे  , आज का फैसला निर्णायक 

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बिलासपुर / छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट आज उस फैसले को अनाउंस करेगा जो समाज कल्याण विभाग में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा दायर रिव्यू पिटीशन से जुड़ा है | हालांकि अदालत इस रिव्यू पिटीशन को पहले ही ख़ारिज कर चुकी है | जानकार बता रहे है कि सोमवार को फैसले की प्रतिलिपि सार्वजनिक हो जाएगी | बताया जा रहा है कि “मान ना मान मैं तेरा मेहमान” की तर्ज पर नौकरशाहों ने छत्तीसगढ़ शासन को रिव्यू पिटीशन दाखिल करने के लिए क़ानूनी दंगल में उतार दिया | जबकि भ्रष्ट्राचार का यह मामला चंद नौकरशाहों और उनसे सम्बद्ध विभागों से जुड़ा था | 

राज्य सरकार को घोटाले की सीबीआई जांच संबंधी अदालत के फैसले का स्वागत करना था , लेकिन राजनैतिक रंग देने की नाकाम कोशिश करते हुए नौकरशाहों ने बिलासपुर हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट दिल्ली तक रिव्यू पिटीशन दाखिल कर राज्य की कांग्रेस सरकार को अदालत में पार्टी बना दिया | भले ही राज्य सरकार यू टर्न लेकर अदालत में दावा करे कि वो अपनी सक्षम पुलिस और अन्य एजेंसियों से अदालत की निगरानी में जांच करवाने को तैयार है | लेकिन उसका यह दावा अदालत ही नहीं बल्कि आम जनता के गले से नीचे नहीं उतरा | हाईकोर्ट बिलासपुर से रिव्यू पिटीशन खारिज होने के बाद लोगों की निगाहे 13 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई पर टिकी है | इससे पहले की इस घोटाले की नीव पर चर्चा करे , हाईकोर्ट के फैसले पर लिखी इस इबारत पर जरूर नजर दौड़ाये | अदालत ने नौकरशाही पर इतनी गंभीर टिप्पणी की है | 

अदालत ने छत्तीसगढ़ के महाधिवक्ता से रिव्यू पिटीशन दाखिल करने संबंधी मूल दस्तावेजों को पटल में रखने के लिए निर्देशित किया था | आखिर इसकी आवश्यकता क्यों आन पड़ी , मुख्यमंत्री सचिवालय को इस पर गौर फरमाना चाहिए | उसे इस तथ्य का परीक्षण भी करना होगा कि सुपर सीएम VS सुपर सीएम की खींचतान में आखिर क्यों सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर लगाई जा रही है ? वो भी तब जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल खुद भ्रष्ट्राचार के खिलाफ “अब होगा न्याय” जैसी मुहिम को लेकर जनता के बीच कांग्रेस की साख मजबूत करने में जुटे है | राजनैतिक गलियारों में चर्चा है कि छत्तीसगढ़ शासन की रिव्यू पिटीशन से सरकार की भ्रष्ट्राचार के खिलाफ जारी मुहिम को तगड़ा झटका लगा है |

 दरअसल हाईकोर्ट के सीबीआई जांच का निर्देश जारी करने से पहले राज्य सरकार ऐसी किसी याचिका को दाखिल कर स्थानीय एजेंसियों से जांच कराने की मांग अदालत के समक्ष रखती तो इसका अच्छा सन्देश जाता | लेकिन सीबीआई जांच के निर्देश के बाद उसकी रिव्यू पिटीशन की दलीले सिर्फ फेस सेविंग के अलावा और कुछ नजर नहीं आ रही है | गौरतलब है कि रिव्यू पिटीशन के तीन बिंदुओं में राज्य सरकार ने अपने संदेही-आरोपी अधिकारियों के बचाव के तथ्यों के बजाये याचिकाकर्ता पर आपत्तिजनक तथ्य पेश कर अपनी दलीले कमजोर कर ली और राज्य सरकार की साख को कटघरे में ला खड़ा किया | बताया जाता है कि अपनी काली करतूतों पर पर्दा डालने के लिए दागी नौकरशाह इसे अब दिल्ली में बैठे कुछ पूर्व अधिकारियों को जिम्मेदार ठहरा रहे है | उनकी दलील है कि पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में “सुपर सीएम” के नाम से चर्चित अफसर इस मामले को हवा दे रहा है | न्यूज टुडे छत्तीसगढ़ ने अपनी पड़ताल में इस तथ्यों को काल्पनिक और मनगंढ़ंत पाया |  

दरअसल समाज कल्याण विभाग में हुए इस घोटाले की जांच का मामला पिछले लगभग तीन सालों अर्थात पूर्ववर्ती बीजेपी शासनकाल से लेकर मौजूदा कांग्रेस सरकार के 14 महीने के कार्यकाल तक अदालत में ट्रायल स्टेज पर रहा | इतने लंबे समय तक दोनों पक्षों ने इस घोटाले की जांच को लेकर ना तो संज्ञान लिया और ना ही तवज्जो दी | लेकिन अब जैसे ही सीबीआई की एंट्री हुई घोटाले में संदिग्ध अफसरों ने खुद को बचाने के लिए “सरकारी तोप” दिल्ली में बैठे इस अफसर की ओर मोड़ दी | उधर सूचना आयोग में काबिज एक प्रभावशाली अफसर ने अपने पद का दुरूपयोग करते हुए समाज कल्याण विभाग से आरटीआई के तहत मांगे कई महत्वपूर्ण दस्तावेजों को सौंपने से इंकार कर दिया | आखिर क्यों ? घोटाले से जुड़े दस्तावेजों की मांग आरटीआई कार्यकर्ताओं ने समय समय पर विभिन्न जिलों और राजधानी रायपुर में स्थित समाज कल्याण विभाग के कार्यालयों से की थी | बहरहाल इस मामले को लेकर राज्य सरकार को पारदर्शिता पूर्ण कदम उठाने होंगे , ताकि भ्रष्ट्राचार के खिलाफ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मुहिम अपने अंजाम तक पहुँच पाए |