दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा पर महाभियोग की प्रक्रिया आधिकारिक रूप से शुरू हो गई है। उनके घर में जली हुई नकदी मिलने के बाद उठे विवाद ने अब संवैधानिक कार्रवाई का रूप ले लिया है। सोमवार को 145 सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को ज्ञापन सौंपा, जिसमें जस्टिस वर्मा को पद से हटाने की मांग की गई है।
ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वालों में बीजेपी के अनुराग ठाकुर, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, एनसीपी की सुप्रिया सुले समेत विभिन्न दलों के नेता शामिल हैं। यह भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में पहला मौका है जब किसी मौजूदा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की गई है।
मामला तब उभरा जब 15 मार्च को दिल्ली स्थित वर्मा के आधिकारिक आवास में आग लगने के बाद, दमकल विभाग ने जली हुई ₹500 की बड़ी नकदी बरामद की। वर्मा ने इसे षड्यंत्र बताया और सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस जांच रिपोर्ट को चुनौती दी।
भारत में जजों को हटाने की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 124 और 218 तथा जजेस इन्क्वायरी एक्ट, 1968 के तहत की जाती है। इसके लिए लोकसभा में कम से कम 100 और राज्यसभा में 50 सदस्यों के हस्ताक्षर जरूरी होते हैं।
इस मामले की जांच के लिए गठित विशेष समिति ने अपनी 64 पन्नों की रिपोर्ट में वर्मा और उनके परिवार को संदिग्ध ठहराया है। रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को सौंप दी गई है और वर्मा को पद से हटाने की सिफारिश की गई है।
इससे पहले 2018 में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ भी महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन वह प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकी थी। यदि वर्मा को हटाया जाता है, तो यह स्वतंत्र भारत का पहला हाईकोर्ट महाभियोग निष्कासन होगा।
