छत्तीसगढ़ के अनपढ़ पूर्व मंत्री ने दिखाई होशियारी, 2200 करोड़ के शराब घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री बघेल का नाम तक जुबान पर लाने से बरता परहेज, बयान दर्ज कराने नहीं पहुंचे ईडी दफ्तर, दोबारा जारी हुआ समन…..  

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रायपुर: छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े शराब घोटाले में पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा की मुश्किलें बढ़ सकती है। छापेमारी के बाद खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए पूर्व मंत्री का स्वयं के अनपढ़ होने का दावा भी अब आम लोगों के साथ-साथ एजेंसियों को मुँह चिढ़ाने लगा है। सूत्र तस्दीक कर रहे है कि ED को बड़ी तादात में वो दस्तावेज हाथ लगे है, जिससे पता चलता है कि लखमा पिता-पुत्र ने बस्तर के सुकमा समेत कई इलाकों में बेशकीमती जमीनों और अन्य कारोबार में निवेश किया है।

यह भी बताया जा रहा है कि जमीन की खरीद-फरोख्त राजधानी रायपुर के आस-पास के इलाकों में भी की गई है। पूर्व मंत्री और उनके परिजनों के अलावा करीबी ठेकेदारों के नाम पर भी निवेश किये जाने के मामलों की जांच जारी है। इस बीच पूर्व मंत्री लखमा सोमवार को ED के दफ्तर नहीं पहुंचे। बताया जा रहा है कि पूछताछ के लिए अफसरों की एक टीम देर शाम तक इंतजार करते रही। लेकिन लखमा पिता-पुत्र समेत ठेकेदार और उनके अन्य सहयोगियों ने अपना बयान दर्ज कराने के मामले में ED से परहेज करना शुरू कर दिया है।

सूत्र तस्दीक कर रहे है कि ED ने सभी संदेहियों को नया समन जारी कर दोबारा तलब किया है। इसके लिए 2 जनवरी की तारीख तय की गई है। उधर लखमा एंड कंपनी, पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के निर्देशन में कार्यरत बताई जा रही है। छत्तीसगढ़ में खानापूर्ति वाले बयानों से पूर्व मुख्यमंत्री भूपे बघेल को बचाने की कवायतें जोरो पर है। शराब घोटाला हो या फिर महादेव ऐप सट्टा घोटाला और CGPSC स्कैम, इन सभी मामलों में आरोपियों और संदेहियों के सिर्फ खानापूर्ति वाले बयानों से जांच पर सवाल खड़े हो रहे है।

हालांकि राज्य की विष्णुदेव साय सरकार ने महादेव ऐप और PSC घोटाले की जांच सीबीआई के हवाले कर दी है। लेकिन 2200 करोड़ो के शराब घोटाले की जांच को लेकर भी अब सवाल खड़े हो रहे है। सूत्र तस्दीक कर रहे है कि कभी राजनैतिक दबाव तो कभी भय और लालच दिखा कर शराब घोटाले के प्रमुख सहयोगियों और गवाहों को प्रभावित किया जा रहा है। ताकि पूर्व मुख्यमंत्री बघेल का बचाव हो सके।

ताज़ा मामला प्रदेश के उस अनपढ़ मंत्री के बयानों से जुड़ा है, जिसमे उन्होंने भूपे बघेल का नाम तक जुबान में लाने से परहेज बढ़ता और घोटाले का ठीकरा तत्कालीन आबकारी सचिव ए.पी. त्रिपाठी के सिर फोड़ दिया। इस मामले में जहाँ दागी अधिकारी त्रिपाठी जेल में है, वही पूर्व मंत्री का ओएसडी ED की गिरफ्त में, असलियत पर से पर्दा हटा रहा है। सूत्र तस्दीक कर रहे है कि लखमा एंड कंपनी से संपर्क सूत्र स्थापित कर पूर्व मुख्यमंत्री को बचाने की कवायतें अभी भी जोरो पर है।    

छत्तीसगढ़ में 2200 करोड़ के शराब घोटाले की जांच में जुटी ईडी को उस वक़्त हैरानी हुई जब घोटाले के संदेहियों ने बगैर वैधानिक सूचना प्रदान किये उनके दफ्तर से दूरियां बना ली। बताया जाता है कि छापेमारी के बाद शेष वैधानिक प्रक्रिया पूरी करने के लिए ED ने सोमवार को सभी संदेहियों को तलब किया था। इसमें पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा, उनके पुत्र हरीश, सुकमा नगर पालिका अध्यक्ष जगन्नाथ राजू साहू, स्थानीय कांग्रेसी नेता सुशील ओझा और ठेकेदार राजभुवन भदौरिया का नाम शामिल बताया जाता है।

बताते है कि सोमवार को इनमे से कोई भी अपना बयान दर्ज कराने के लिए उपस्थित नहीं हुआ। जानकारी के मुताबिक उक्त सभी संदेहियों को दोबारा समन जारी कर पूछताछ के लिए अब 2 जनवरी को पेश होने लिए कहा गया है। सूत्रों के मुताबिक 3 संदेहियों के ठिकानों से जब्त दस्तावेजों एवं डिजिटल उपकरणों से एजेंसियों को कई चौंकाने वाले प्रमाण हासिल हुए है। यही नहीं उनके ठिकानों में छापेमारी के दौरान जब्त किए गए मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को खंगाला गया है।

बताते है कि साइबर एक्सपर्ट टीम ने कई गोपनीय फाइल डिकोड कर शराब घोटाले और निवेश से संबंधित इनपुट हासिल किये है। हालांकि छापेमारी में जब्त सामग्री को लेकर ED की ओर से अभी कोई आधिकारिक जानकारी साझा नहीं की गई है। शराब घोटाले में दर्ज ईसीआईआर में ED ने दावा किया है कि पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा को अपने पद पर रहते हुए हर माह, 50-50 लाख रुपए मिलते थे।

यही नहीं ED ने अदालती दस्तावेजों में यह भी साफ़ किया है कि घोटाले को अंजाम देने के लिए मुख्यमंत्री की शक्तियों का सुनियोजित दुरूपयोग किया जा रहा था। प्राइवेट और सरकारी लोग ही प्रदेश की जनता की गाढ़ी कमाई पर हाथ साफ कर रहे थे। इसके चलते सरकारी तिजोरी पर हर माह करोड़ों का चूना लगाया जा रहा था। ED के अलावा EOW भी घोटाले की तफ्तीश में जुटी बताई जा रही है। सूत्र तस्दीक करते है कि शराब घोटाले में कारोबारी अनवर ढेबर, ए.पी. त्रिपाठी, रिटायर्ड आईएएस अनिल टुटेजा, पूर्व मुख्यमंत्री बघेल की पसंदीदा उपसचिव सौम्या चौरसिया के ढुलमुल और गैर-वाजिब बयानों के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपे बघेल की गिरफ्तारी लटक गई है।

दरअसल, घोटाले में शामिल आबकारी विभाग के ज्यादातर अफसरों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री बघेल और आबकारी मंत्री लखमा की कार्यप्रणाली को लेकर ना तो नामजद कोई तथ्य पेश किये है, और ना ही कोई ठोस बयान दर्ज कराने में रूचि दिखाई है। सूत्र बताते है कि दर्ज बयानों में गोलमोल जवाब देकर पूर्व मुख्यमंत्री बघेल की संलिप्ता छिपाई गई है। आबकारी विभाग के वरिष्ठ सरकारी सेवकों के रुख से एजेंसियां पसोपेश में बताई जाती है। इस सिलसिले में ED ने लगभग 70 अधिकारियों और कारोबारियों के खिलाफ अपनी ECIR में गंभीर आरोप लगाए है।

प्रशासनिक मामलों के जानकार तस्दीक कर रहे है कि शराब घोटाले की जांच का दायरा बढ़ा कर पूरा प्रकरण सीबीआई के हवाले किया जाना मुनासिब होगा। उनके मुताबिक इस घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री की संलिप्ता स्पष्ट प्रमाणित हो रही है। लेकिन उनके राजनैतिक रसूख के चलते छत्तीसगढ़ कैडर के कई अधिकारियों के अलावा संबंधित गवाह भी असलियत जाहिर करने के मामले में अपना मुँह खोलने से बच रहे है। ऐसी स्थिति में घोटालेबाजों के खिलाफ वैधानिक कार्यवाही कमजोर भी साबित हो रही है। बहरहाल, लोगों की निगाहे 2 जनवरी पर टिक गई है। इस दिन भी लखमा एंड कंपनी ED मुख्यालय में दस्तक देगी या नहीं, यह देखना गौरतलब होगा। फ़िलहाल, प्रदेश की एक और डर्टी कंपनी पूर्व मुख्यमंत्री के संपर्क में बताई जाती है।