नक्सल मुक्त बस्तर में ठेका दिया, तो विरोध करेंगे, बस्तर में शांति बहाली पर महंती बोल कितने कारगर ? नेता प्रतिपक्ष को आखिर किसका खटका, क्यों दिया ऐसा बयान ?….
छत्तीसगढ़ नक्सलवाद मुक्त प्रदेश घोषित होने की कगार पर है, बस आउटर में खड़ा है, भाइयों और बहनों के बोल मन की बात में भी गूंज सकते है, इसके आसार जल्द नजर आ रहे है। अगले वित्तीय वर्ष मार्च 2026 से पूर्व राज्य से नक्सलवाद का सफाया हो जायेगा। सरकार का संकल्प यही है, पूत के पांव पालने में नजर आने लगे है, दोराय नहीं कि इतनी महान उपलब्धि का सेहरा बीजेपी सरकार के सिर पर बंधने जा रहा है। प्रदेश में नक्सलवाद के खात्मे के ऐतिहासिक प्रयास विकास का नया दौर लेकर आएंगे। इस बीच बस्तर में शांति बहाली को लेकर राजनीति भी तेज हो गई है।

छत्तीसगढ़ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत ने एक बयान में अजीबो गरीब अंदेशा जाहिर किया है। वैसे तो वरिष्ठ कांग्रेसी नेता बिलासपुर में पार्टी की स्वास्थ्य न्याय यात्रा में हिस्सा लेने पहुंचे थे। लेकिन यहाँ पार्टी कार्यकर्ताओं को न्याय दिलाने के बजाय उन्होंने सरकार की मंशा पर ही सवाल खड़े कर दिए। बजाय तारीफ करने के, महंत ने दो टूक कहा कि ‘सरकार से प्रार्थना है कि बस्तर को नक्सल मुक्त कराइए और शांति लाइए’ हम सब साथ हैं, लेकिन ऐसा ना हो कि बस्तर को नक्सल मुक्त करा दो और बड़े-बड़े उद्योगपतियों को ठेका दे दो’ ? उस समय हम लोग विरोध करेंगे।

डॉ. चरणदास महंत ने साफ शब्दों में एक तरह से अंदेशा जाहिर किया है ? लेकिन वरिष्ठ कांग्रेसी नेता बगैर किसी ठोस कारण के बेमौसम बारिश की तर्ज पर ऐसा बयान आखिर क्यों दे रहे है ? उन्हें अंदेशा किस बात का है, बीजेपी और कांग्रेसी के खेमों में महंत के बयानों के मायने तलाशे जाने लगे है। महंत के बोल यही नहीं थमे, आगे चुटकी लेते हुए नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि पहले विष्णु देव साय को सांय-सांय की उपाधि दी थी, बल्कि, अब पता ही नहीं चल रहा है कि किसकी सरकार चल रही है ? न तो बिलासपुर में न रायपुर में और न प्रदेश में पता चल रहा है कि सरकार कौन चला रहा है ? विष्णु देव साय सरकार चला रहे हैं या फिर ओपी चौधरी चला रहे हैं, कि बाकी डिप्टी सीएम सरकार चला रहे हैं ? कांग्रेस की स्वास्थ्य न्याय यात्रा में अपनी पार्टी का स्वास्थ्य ठीक बनाये रखने के नुस्खों से कार्यकर्ताओं को अवगत कराने के बजाय महंत आखिर किसे सीख दे रहे है ? यह तो वही जाने। लेकिन छत्तीसगढ़ के सुनहरे भविष्य को किसी ‘ठेके’ से जोड़ कर देखने का ‘महंती अंदाज’ इन दिनों राजनैतिक-प्रशासनिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है।

रायपुर के शांति नगर घोटाले की फाइल फिर लगी दौड़ने, गड़े मुर्दे लगे उखड़ने….
रायपुर के शांति नगर इलाके की सरकारी कॉलोनी को खाली करा, PPP मॉडल के तहत औने-पौने दाम में बेचे जाने की मुहीम पूर्ववर्ती भूपे राज में सुर्खियां बनी थी। एक बड़े जमीन घोटाले की ओर बढ़ते तत्कालीन कांग्रेस सरकार के हाथ उस समय थम गए थे, जब खुलासा हुआ कि 17 सौ करोड़ की लगभग 29 एकड़ प्राइम लोकेशन वाली जमीन को महज 180 करोड़ में शहर के चर्चित बिल्डरों के हाथों में सौंपा जा रहा है। हाउसिंग बोर्ड में पदस्थ तत्कालीन महा भ्रष्ट अधिकारियों ने इस योजना को अंजाम देने के लिए बाकायदा खानापूर्ति भी कर दी थी। लेकिन चुनाव करीब आते ही PPP मॉडल के फर्जीवाड़े की पोल खुल गई।

हकीकत से वाकिफ पीड़ितों ने हो-हल्ला मचाया, आखिरकार तत्कालीन मंत्री अकबर ने अपने हाथ पीछे खींच लिए। अब शासन बीजेपी का आ गया है, लेकिन भूपे राज की तर्ज पर PPP मॉडल अब भी जस की तस हिलोरे मार रहा है।

सूत्र तस्दीक करते है कि सरकार की छवि को मटिया मेट करने में तुले एक खेमे ने शांति नगर योजना की फाइल में पंख लगा दिए है। करीब 3 सालों से सरकारी अलमारी में कैद इस प्रोजेक्ट की रिपोर्ट अब कुछ रियल एस्टेट कारोबारियों के दफ्तर में माथापच्ची के दौर से गुजर रही है। टेबलों पर पुरानी बोतल में नई शराब भरने का उपक्रम भी शुरू हो गया है। मंसूबा ही नहीं दावा भी जाहिर किया जा रहा है कि जल्द ही यह प्रोजेक्ट आहे भर सकता है। फ़िलहाल, प्रोजेक्ट की आड़ में 420सी के गड़े मुर्दे भी तेजी से उखड़ने लगे है।
आखिर नहीं बदले गए फारेस्ट चीफ, सत्ता के गलियारों में जंगली गोंद का जोड़….

छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्यमंत्री के राज में बस्तर में तेंदूपत्ता घोटाला सामने आया है, जिन श्रमिक आदिवासियों को चरणपादुका सौंप कर उनकी मेहनत और संघर्षों को नमन करने की अनूठी परंपरा प्रदेश में स्थापित की गई है, उस पर जिम्मेदार सरकारी अफसर ही डंक मार रहे है। जंगल राज में ऐसे गरीब वन पुत्रों के बोनस की रकम पर हाथ साफ करने में भी वन अफसरों को गुरेज नहीं है। करीब 7 करोड़ के तेंदूपत्ता घोटाले में एक आईएफएस अफसर जेल की हवा खा रहा है। लेकिन इस घोटाले को अंजाम तक पहुंचाने में अहम कड़ी साबित हुए वन एवं जलवायु विभाग के मुखिया अभी भी ‘कैंपा’ कोला पीने में व्यस्त बताये जाते है। उनके गिरेबान तक पहुंचते-पहुंचते कानून का शिकंजा अचानक ढीला होने लगा है।

जानकार बताते है कि कैंपा यदि पुलिस के हत्थे चढ़ा तो मंत्री जी का क्या होगा ? आखिर खेल तो उनकी सहमति मिलने के बाद ही खेला गया था। आम आदिवासियों के मंसूबों पर पानी फेरने में जुटे इलाके के खास आदिवासी नेता जी तेंदूपत्ता घोटाले में खूब सुर्खियां बटोर रहे है। कानून के हाथ कितने लंबे है, फ़िलहाल, तो लुटे-पीटे पीड़ितों कों इसका अंदाजा हो चला है, सवाल उठ रहा है, पीड़ित आदिवासियों को तेंदूपत्ता बोनस की रकम आखिर कब लौटाई जाएगी ? जांच एजेंसियां जांच में जुटी है, असली गुनहगार सत्ताधारी दल के साथ भी कदमताल करने में कामयाब बताये जाते है, कहते है, कैंपा यहाँ भी ‘कोला’ फ़ंसाने में कारगर साबित हुआ है।