नई दिल्ली / कोरोना संक्रमण की चपेट में आने के बाद शरीर में उसके खिलाफ एंटीबॉडी बनने लगती हैं, लेकिन एक तय समय के बाद एंटीबॉडी में कमी आने पर दोबारा संक्रमण का खतरा हो जाता है। दोबारा संक्रमण न होने की बात गलत है। इसलिए लोगों को सतर्कता बरतनी चाहिए। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने बताया कि कोरोना संक्रमण नया है। ऐसे में इसे लेकर लगातार अध्ययन हो रहे हैं और रिपोर्ट सामने आ रही है।
डॉ. भार्गव ने बताया कि अब तक ऐसे कई चिकित्सीय अध्ययन सामने आए हैं जिनमें एंटीबॉडी के शरीर में रहने की अवधि को अलग-अलग बताया गया है। किसी अध्ययन में तीन से माह तो किसी में पांच माह तक एंटीबॉडी रहने की जानकारी दी गई है। अध्ययन अभी चल रहा है, लेकिन एंटीबॉडी खत्म होने के साथ ही संक्रमण का खतरा फिर होने लगता है। यूरोप, चीन, अमेरिका और रूस सहित कई देशों के वैज्ञानिकों ने अलग-अलग अध्ययन में कोरोना वायरस के खिलाफ बनने वाली एंटीबॉडी अवधि का पता लगाया।
पुणे स्थित एनआईवी के वैज्ञानिक इस पर अध्ययन कर रहे हैं, जिसका परिणाम दिसंबर तक आ सकता है। वहीं, दोबारा संक्रमण के भी कुछ केस सामने आने के बाद सरकार ने उन लोगों को भी सतर्क रहने की सलाह दी जो संक्रमण से ठीक हो चुके हैं।