दिल्ली/रायपुर: छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य विभाग के दवा और उपकरण घोटाले की गूंज से राजनैतिक और प्रशासनिक गलियारा गरमाया हुआ है। कांग्रेस ने इस घोटाले की महादेव ऐप सट्टा घोटाले की तर्ज पर सीबीआई जांच की मांग की है। नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत ने मामले की पारदर्शितापूर्ण उच्च स्तरीय जांच के लिए सदन के अंदर-बाहर सीबीआई जांच की मांग कर कई कारोबारियों और अधिकारियों की नींद उड़ा दी है। दवा-उपकरण घोटाले में CGMSC में पदस्थ कई आईएएस अधिकारियों के खिलाफ पुख्ता दस्तावेजी साक्ष्य उपलब्ध होने के बावजूद आरोपी नहीं बनाये जाने का मामला गरमाया हुआ है।

छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (सीजीएमएससी) में हुए 660 करोड़ के घोटाले में मोक्षित कॉपेरिशन के कर्ताधर्ताओं को जेल की हवा खिला दी गई है, लेकिन उन आईएएस अधिकारियों का काला-चिटठा दस्तावेजी प्रमाण के रूप में विभाग में उपलब्ध होने के बावजूद आरोपी नहीं बनाया गया है, जिन्होंने मोटे कमीशन के मद्देनजर धड़ा-धड़ आर्डर जारी किये, कमीशन प्राप्त किया, फिर दवाओं-उपकरणों के जर्जर पड़ने के बावजूद करोड़ों का आपूर्ति आर्डर फिर जारी कर दिया था। यही नहीं, विधानसभा में मामले के गरमाने, जांच के आदेशों का फरमान सुनाने के बावजूद करोड़ों के आर्डर का भुगतान भी भूपे राज की तर्ज पर सुनिश्चित कर दिया गया था।

राज्य सरकार ने आईएएस अधिकारियों की संदिग्ध भूमिका की ना तो समय पर जांच करवाई और ना ही घोटाले में उन्हें आरोपी बनाया। दावा किया जा रहा है कि जिन आईएएस अधिकारियों के बैनर तले सुनियोजित रूप से इतने बड़े घोटाले को अंजाम दिया गया था, उन्हें आरोपी नहीं बनाने से ना केवल मामला कमजोर साबित हो रहा है, बल्कि सरकारी जांच भी सवालों के घेरे में है। ताजा जानकारी के मुताबिक CGMSC घोटाले में तत्कालीन प्रबंध संचालक चंद्रकांत वर्मा की आपराधिक संलिप्तता सामने आने के बावजूद उन्हें आरोपी नहीं बनाया गया है। जबकि अपने पद और प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए वर्ष 2017 बैच के इस आईएएस अधिकारी ने मोक्षित कॉर्पोरेशन कों जरुरत ना होते हुए भी उपकरणों की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कई बार आर्डर जारी किये थे। यही नहीं उपकरणों की आपूर्ति नहीं करने पर मोक्षित कॉर्पोरेशन को ब्लैक लिस्टेड करने की धमकी भी दी थी।

इसके लिए बाकायदा शासकीय प्रक्रिया के तहत दवा-उपकरण सप्लाई के लिए पत्राचार भी किया गया था। यही नहीं समय पर आपूर्ति सुनिश्चित नहीं करने के लिए जोर-जबरदस्ती दबाव बनाते हुए, उक्त फर्म-कंपनी को ब्लैक लिस्टेड करने की चेतावनी दी गई थी। सूत्र तस्दीक करते है कि CGMSC के तत्कालीन प्रबंध संचालक चंद्रकांत वर्मा घोटाले से वाकिफ थे, उन्हें तत्कालीन भूपे सरकार और उसके चलनशील उच्चाधिकारियों का अभयदान प्राप्त था। नतीजतन, मोटे कमीशन के चक्कर में मोक्षित कॉर्पोरेशन कों धड़ा-धड़ आर्डर जारी किये जा रहे थे। जबकि इस कंपनी की ओर से पूर्व की गई सप्लाई का हवाला देते हुए नए आर्डर की डिलेवरी सुनिश्चित ना करने को लेकर हाथ खड़े कर लिए गए थे। सूत्रों के मुताबिक मोक्षित कॉर्पोरेशन और तत्कालीन प्रबंध संचालक की ओर से जारी दस्तावेज विभाग में उपलब्ध बताये जाते है।

यह भी बताया जा रहा है कि मोक्षित कॉर्पोरेशन की तर्ज पर दर्जनों अन्य कंपनियों से भी तत्कालीन प्रबंध संचालक का व्यापारिक लेन-देन था। लेकिन उन कंपनियों को घोटाले की जद में ना लेना राज्य सरकार की जांच की मंशा पर सवाल खड़े कर रहा है। सूत्र तस्दीक करते है कि आईएएस वर्मा के इस पद से विदाई के बावजूद स्वास्थ्य विभाग में दवा-उपकरण सप्लाई में भारी-भरकम कमीशनखोरी का खेल यथावत जारी रहा। यहाँ पदस्थ तत्कालीन प्रबंध संचालक चंद्रकांत वर्मा के अलावा अन्य अफसरों ने भी सरकारी तिजोरी पर हाथ साफ करने के लिए अपने हाथ-पैर मारे थे। जानकारी के मुताबिक EOW ने प्रकरण की जांच कर सीजीएमएससी के तत्कालीन प्रभारी महाप्रबंधक बसंत कुमार कौशिक, बायोमेडिकल इंजीनियर छिरोद रौतिया, उपप्रबंधक कमलकांत पाटनवार, डॉ. अनिल परसाई, मेडिकल इंजीनियर दीपक कुमार बंधे को गिरफ्तार कर पूछताछ के लिए 28 मार्च तक रिमांड पर लिया है।

आर्थिक मामलों के जानकारों के मुताबिक EOW की जांच की अपनी सीमाएं है, मुख्यमंत्री की मंशा और दिशा निर्देशों के अंतर्गत ही जांच का दायरा सीमित कर दिया गया है। प्रदेश में EOW को स्वतंत्र एजेंसी के रूप में अभी तक ‘स्वायत्तता’ प्रदान नहीं करने से छोटी ‘मछलियां’ तो उसके चंगुल में फंस जाती है, लेकिन सबूतों के हासिल होने के बावजूद असल ‘मगरमच्छों’ के बच निकलने का रास्ता साफ हो जाता है। बताया जाता है कि प्रदेश में आल इंडिया सर्विस के दर्जनों अधिकारियों के खिलाफ EOW में वर्षों से दर्ज मामले धुल खा रहे है। इसकी जानकारी साल दर साल जनता की अदालत में रखी जाती है, पूरी बेशर्मी के साथ पटल पर पढ़ा भी जाता है, फिर भी नौकरशाही के खिलाफ वैधानिक कार्यवाही को लेकर सत्ताधारी नेताओं के हाथ-पैर फूल जाते है।

बताते है कि यही हाल CGMSC का है। सूत्रों के मुताबिक विवादित कार्यप्रणाली और तत्कालीन भूपे सरकार का संरक्षण प्राप्त होने के कारण आईएएस चंद्रकांत वर्मा ने CGMSC में घोटालों की झड़ी लगा दी थी। छत्तीसगढ़ में आज CGMSC के अलावा CGPSC घोटाले की अदालत में सुनवाई है। रायपुर की अदालत में मोक्षित कॉर्पोरेशन के संचालक शंशाक चोपड़ा की न्यायिक रिमांड पर आज सुनवाई शुरू हो गई है। जबकि अदालत में CGPSC घोटाले की सुनवाई भी आज ही के दिन सुनिश्चित है।

सीजीपीएससी घोटाले में जेल की हवा खा रहे पूर्व अध्यक्ष टामन सिंह सोनवानी, उनके पुत्र नीतेश, भतीजे साहिल, डिप्टी परीक्षा नियंत्रक ललित गणवीर, कारोबारी श्रवण गोयल उनके पुत्र शशांक और बहू भूमिका की रिमांड पेशी पर भी सुनवाई होगी। उक्त सभी आरोपियों के खिलाफ सीबीआई पहले ही चालान पेश कर चुकी है। वहीं, कारोबारी श्रवण गोयल उनके पुत्र शशांक और बहू भूमिका (कटियार) सहित अन्य की जमानत को कोर्ट पहले ही खारिज कर चुकी है। फ़िलहाल, दोनों ही मामलों को लेकर अदालत के गलियारे में गहमा-गहमी देखी जा रही है।