नई दिल्ली, 18 अगस्त 2025। उपराष्ट्रपति चुनाव 9 सितंबर को होने हैं और नामांकन की अंतिम तिथि 21 अगस्त है। इसी बीच सत्तारूढ़ एनडीए ने अपने उम्मीदवार के रूप में महाराष्ट्र के राज्यपाल चंद्रपुरम पोन्नुसामी राधाकृष्णन (सीपी राधाकृष्णन) का नाम घोषित कर सियासी समीकरण बदल दिए हैं। राधाकृष्णन तमिलनाडु के प्रभावशाली ओबीसी समुदाय से आते हैं, आरएसएस से वैचारिक रूप से जुड़ाव रखते हैं और प्रदेश में भाजपा के चेहरे के रूप में पहचान रखते रहे हैं।
क्यों बढ़ेगी I.N.D.I.A. गठबंधन की टेंशन
ओबीसी फैक्टर: तमिलनाडु में ओबीसी वोट बैंक पर डीएमके की पारंपरिक पकड़ रही है। ऐसे में उसी सामाजिक आधार से आने वाले उम्मीदवार का विरोध करना डीएमके और उसके सहयोगियों के लिए राजनीतिक रूप से कठिन हो सकता है।
स्थानीय कनेक्ट: राधाकृष्णन की जमीनी छवि और सामाजिक सेवा का प्रोफ़ाइल उन्हें “सीपीआर” के रूप में लोकप्रिय बनाता है, जिससे क्षेत्रीय स्तर पर नैतिक समर्थन का माहौल बन सकता है।
क्रॉस-वोटिंग की आशा: पिछली कई संवैधानिक पदों की रेस में क्षेत्रीय भावनाओं व सहमति की मिसालें दिखी हैं; एनडीए को भरोसा है कि यह सिलसिला राधाकृष्णन के मामले में भी दिख सकता है।
धनखड़ के बाद ‘तमिल दांव’ क्यों?
2022 में जगदीप धनखड़ का चयन जाट समाज को स्पष्ट संदेश था। अब 2025 में राधाकृष्णन का नाम दक्षिण भारत में विस्तार और ओबीसी सोशल इंजीनियरिंग पर भाजपा की निरंतर रणनीति को रेखांकित करता है—खासतौर पर उन राज्यों में, जहां कर्नाटक को छोड़कर पार्टी को अभी मजबूत पैठ बनानी है।
राधाकृष्णन बनाम धनखड़: शैली और सियासत
शैली का अंतर: धनखड़ अपने बेबाक और मुखर हस्तक्षेपों के लिए सुर्खियों में रहते हैं, वहीं राधाकृष्णन को सौम्य, संयमी और संस्थागत प्रक्रिया-केंद्रित नेता माना जाता है—जो मौजूदा समय में राज्यसभा की गरिमा और संतुलन की जरूरत के अनुकूल माना जा रहा है।
वैचारिक जुड़ाव: राधाकृष्णन का आरएसएस से मजबूत वैचारिक संबंध पार्टी के कोर समर्थक वर्ग में स्वीकार्यता बढ़ाता है।
क्षेत्रीय मुद्दों पर स्टैंड: तमिलनाडु की राजनीति में डीएमके की तीखी आलोचनाओं के बरक्स उन्होंने केंद्र का पक्ष रखा। उदयनिधि स्टालिन की ‘सनातन’ टिप्पणी पर भी उन्होंने सख्त प्रतिक्रिया दी—यह उनकी विचारधारा-आधारित, पर संस्थागत राजनीति का संकेत माना गया।
क्या विपक्ष समर्थन देगा?
भारतीय राजनीति में संवैधानिक पदों के चुनाव में सहमति की परंपरा समय-समय पर दिखती रही है—
प्रणब मुखर्जी को लेफ्ट व टीएमसी का समर्थन,
प्रतिभा पाटिल को शिवसेना का समर्थन,
ज्ञानी जैल सिंह को अकाली दल का समर्थन,
एपीजे अब्दुल कलाम को सपा और कांग्रेस का समर्थन।
इसी पृष्ठभूमि में डीएमके और उसके सहयोगियों के रुख पर सबकी नजर है। तमिल पहचान और ओबीसी प्रतिनिधित्व का संयोजन विपक्ष के लिए कठिन राजनीतिक गणित खड़ा करता है।
प्रक्रिया और अगला कदम
नामांकन की अंतिम तारीख: 21 अगस्त 2025
मतदान की तिथि: 9 सितंबर 2025
इलेक्टोरल कॉलेज: उपराष्ट्रपति का चुनाव सांसदों द्वारा किया जाता है; परिणाम दलगत ताकत और संभावित क्रॉस-वोटिंग/सहमति पर निर्भर करेगा।
निष्कर्ष
एनडीए ने उपराष्ट्रपति पद के लिए तमिल+ओबीसी कार्ड खेलकर दक्षिण के मोर्चे और राष्ट्रीय सोशल इंजीनियरिंग—दोनों पर एक साथ दांव लगाया है। राधाकृष्णन की संयमी शैली, संस्थागत अनुभव और वैचारिक स्पष्टता सत्ता पक्ष को राज्यसभा में अपेक्षित संतुलन दे सकती है। उधर, I.N.D.I.A. गठबंधन, खासकर डीएमके, के लिए यह निर्णय राजनीतिक और प्रतीकात्मक—दोनों स्तरों पर पेचीदा चुनौती खड़ी करता है।
