कोरोना संक्रमण से बचने के लिए चींटी की चटनी कितनी कारगर ? आबकारी मंत्री का चींटी चापड़ा फॉर्मूला कही किसी की जान जोखिम में ना डाल दे, छत्तीसगढ़ स्वास्थ विभाग की चुप्पी हैरत भरी, राज्य के आबकारी मंत्री ने बस्तर में खाई जाने वाली लाल चींटी की चटनी को कोरोना से बचाव का फॉर्मूला करार दिया, मंत्री के इस दावे पर आखिर क्यों चुप है स्वास्थ विभाग ? संशय में सरकार, देखे वीडियो

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जगदलपुर / देश – विदेश में कोरोना का संक्रमण जानलेवा साबित हो रहा है। इससे बचने के लिए आप चींटी की चटनी खाइये, यह रामबाण औषधि है। यह दावा छत्तीसगढ़ सरकार के एक जिम्मेदार मंत्री कवासी लखमा ने किया है। लेकिन उनका ये दावा कितना कारगर या जोखिम भरा है, इस पर सरकार की ओर से अभी तक कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। अलबत्ता राज्य के आबकारी मंत्री कवासी लखमा अब कोरोना के रोकथाम के मामलों के जानकार भी बन गए है। उनके दावे को लेकर लोगों के बीच माथापच्ची शुरू हो गई है। दरअसल बस्तर के कई इलाकों में चींटी की चटनी स्वाद लेकर खाई जाती है। खासकर आदिवासी घर – परिवारों में।

मंत्री कवासी लखमा ने जिस चापड़ा चटनी की बात कही हैं, वह लाल चीटीं से बनती है | बस्तर के जंगलों में बहुतायत में सरई, आम-जामुन के पेड़ पाए जाते हैं | इनकी टहनियों पर एक विशेष प्रकार की चीटीं पाई जाती है, जो लाल कलर की होती है, जिसकी चटनी बनाकर यहां के ग्रामीण बड़े चाव से खाते हैं. इसे ‘चापड़ा चटनी’ कहा जाता है | इस चटनी को लाल चींटियों में हरी मिर्च मिलाकर बनाया जाता है |

दरअसल अपने बयानों को लेकर हमेशा चर्चा में रहने वाले छत्तीसगढ़ सरकार के आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने कोरोना संक्रमण की रोकथाम को लेकर इस अनोखे फॉर्मूले की चर्चा उस स्वास्थ्य शिविर में बतौर मुख्य अतिथि के तौर पर की है, जो एलोपैथी पर विश्वास रखता है। जगदलपुर में आयोजित स्वास्थ विभाग के इस शिविर में चटनी -चूरन की चर्चा कई लोगों को हजम नहीं हुई। लखमा ने कहा कि कोरोना महामारी में बस्तर संभाग सेफ जोन रहा | यहां के ग्रामीण अंचलों में रहने वाले बेहद कम लोग इस महामारी के चपेट में आए | क्योंकि यहां के लोग लाल चींटी की चापड़ा चटनी खाते हैं, जिससे वे कोरोना से बचे रहे। मंत्री की इस चापड़ा चटनी के किस्से लोगों की जुबान पर है।

हालाँकि मंत्री लखमा ने किसी खबर का हवाला देते हुए यह नुस्खा सुझाया। उन्होंने कहा कि एक अखबार में उन्होंने पढ़ा था कि ओडिशा हाई कोर्ट ने कोरोना महामारी से बचने के लिए चापड़ा चटनी को रामबाण बताया। इसको लेकर शोध करने को भी कहा था | लखमा ने कहा, ”यह किसी जनप्रतिनिधि या नेता का कहना नहीं है बल्कि ओडिशा हाई कोर्ट की तरफ से यह बात कही गई थी। उन्होंने कहा कि बस्तर के ग्रामीण अंचल में चापड़ा चटनी लोग बड़े चाव से खाते हैं | इसलिए वहां कोरोना का ज्यादा असर देखने को नहीं मिला.”उन्होंने कहा, ”नारायणपुर और सुकमा ऐसे जिले हैं जहां कोरोना से मौत का एक भी केस सामने नहीं आया | एक तरफ जहां इस महामारी की चपेट में आने से अमेरिका जैसे बड़े-बड़े देश भी नहीं बच पाए | प्रदेश की राजधानी रायपुर और देश की राजधानी दिल्ली के लोग बड़ी संख्या में कोरोना पॉजिटिव हुए, दूसरी तरफ कोरोना चापड़ा चटनी की वजह से बस्तर के लोगों का कुछ नहीं बिगाड़ पाया।”

हालाँकि मीडिया कर्मियों ने जब उड़ीसा हाईकोर्ट के समक्ष आये इस मामले की पड़ताल की तब पता पड़ा कि जिस चापड़ा चटनी का जिक्र कवासी लखमा कर रहे थे, वह उड़ीसा के ग्रामीण अंचलों में चलन में है। यह चटनी भी बस्तर में प्रचलित चटनी की तर्ज पर है। बताया गया कि पेशे से इंजीनियर नयाधर पडियाल ने ओडिशा हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी | इस याचिका में दलील दी गई थी कि लाल चींटी से बनने वाली चटनी में कई एंटी. बैक्टीरियल गुण हैं, जो पाचन तंत्र में किसी भी संक्रमण से लड़ने में मदद करते हैं | याचिका में दावा किया गया था कि इस चटनी में प्रोटीन, कैल्शियम और जिंक भी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है, जो इम्युनिटी बढ़ाने में मददगार है |

इस याचिका पर सुनवाई के बाद ओडिशा हाई कोर्ट ने आयुष मंत्रालय, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के निदेशक को नोटिस जारी कर कहा कि इस बारे में वे अपनी राय से अवगत कराये। हाई कोर्ट ने तीन महीने की समय सीमा तय कर यह जानना चाहा कि कोरोना से बचाव के लिए लाल चीटीं की चटनी कारगर है या नहीं? इंजीनियर पडियाल ने भी 23 जून को अपना प्रस्ताव सीएसआईआर को और 7 जुलाई को केंद्रीय आयुष मंत्रालय को भेजा था | हालाँकि इस पर अभी तक कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया है। बावजूद इसके बगैर ठोस पड़ताल और वैज्ञानिक आधारों पर मंत्री जी ने सार्वजनिक रूप से अपना ज्ञान पेल दिया।

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उधर कोरोना से बचाव के लिए इन दिनों कई कंपनियां, वैद्य, आयुर्वेद के जानकार और नीम हाकिम एक से बढ़कर एक दावे कर रहे है। इस मामले में हाल ही में आयुष मंत्रालय ने बाबा रामदेव को भी आड़े हाथों लिया था। यही नहीं कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए इस तरह के दावों से बचने की सलाह आयुष मंत्रालय ने जानकारों को भी दी थी। उसने ICMR की गाइडलाइन और सिर्फ एलोपैथिक डॉक्टरों को ही कोरोना के इलाज के लिए अधिकृत किया था। ऐसे में आबकारी मंत्री का चींटी चापड़ा फॉर्मूला कही किसी की जान जोखिम में ना डाल दे।