
बिलासपुर : 2 साल 10 माह की मासूम बच्ची के साथ अशोभनीय हरकत की कोशिश के मामले में आरोपी की अपील को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। कोर्ट ने सत्र न्यायालय द्वारा सुनाई गई सजा को यथावत रखते हुए कहा कि पीड़िता और गवाहों के बयान विश्वसनीय और स्वीकार्य हैं।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा की एकलपीठ में इस मामले की सुनवाई हुई। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ‘उत्कृष्ट गवाह’ ऐसा होना चाहिए, जिसकी गवाही में कोई विरोधाभास न हो और जिस पर कोर्ट बिना झिझक भरोसा कर सके।
घटना का विवरण:
28 नवंबर 2021 को बिलासपुर के तारबाहर क्षेत्र में एक मासूम बच्ची अपने मौसी के घर के सामने खेल रही थी। आरोपी ने पहले बच्ची को चॉकलेट और बिस्किट के लिए पैसे दिए और थोड़ी देर बाद उसे उठाकर अपने घर ले जाने लगा। इस दौरान बच्ची की मौसी ने टोका भी, लेकिन आरोपी ने अनसुना कर दिया।
शाम करीब 6 बजे पड़ोसी ने बच्ची को गोद में उठाकर घर लाया और बताया कि उसने आरोपी को बच्ची के साथ आपत्तिजनक हालत में देखा था। इसके बाद मामले की शिकायत पुलिस में दर्ज की गई। जांच के बाद आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 354(ए)(बी) और पॉक्सो एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत चालान पेश किया गया।
सत्र न्यायालय ने आरोपी को 5 साल की सजा और जुर्माने की सजा सुनाई थी। आरोपी ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी और खुद को झूठा फंसाने का दावा किया था।
कोर्ट का फैसला:
हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से पीड़िता के बयान की दोबारा पुष्टि कराई। 3 अप्रैल 2025 को पीड़िता अपनी मां के साथ प्राधिकरण के समक्ष उपस्थित हुई और आपत्ति दर्ज कराई।
सभी गवाहियों और दस्तावेजों की समीक्षा के बाद हाईकोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष ने आरोपी के खिलाफ मामला संदेह से परे साबित कर दिया है। इस आधार पर कोर्ट ने अपील को खारिज कर सत्र न्यायालय की 5 वर्ष की सजा को बरकरार रखा।