नई दिल्ली. Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से जुड़ी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में सुनवाई शुरू. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर आपत्ति जताई है. केंद्र ने कहा कि नए सामाजिक संबंध के निर्माण पर निर्णय लेने के लिए संसद एकमात्र संवैधानिक रूप से स्वीकार्य मंच है. एसजी तुषार मेहता संविधान पीठ से कहा कि अदालत की कार्यवाही में भाग लेने वाले देश के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं और अदालत को पहले यह जांच करनी चाहिए कि क्या अदालत इस मामले को सुन सकती है.
इसमें आ रही कानूनी अड़चनों के मद्देनजर कानून में पति और पत्नी की जगह जीवन साथी यानी स्पाउस शब्द का इस्तेमाल किया जा सकता है. इससे संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद 14 के मुताबिक समानता के अधिकार की भी रक्षा होती रहेगी. सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले दुर्गेश मिश्र और अनुज गर्ग मामले का हवाला देते हुए रोहतगी ने अपनी दलील आगे बढ़ाई है.
याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखते हुए सुनवाई के दौरान मुकुल रोहतगी ने कहा कि समानता के अधिकार तहत हमें विवाह को मान्यता मिलनी चाहिए. क्योंकि सेक्स ओरिएंटेशन सिर्फ महिला-पुरूष के बीच नहीं, बल्कि समान लिंग के बीच भी होता है. वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि 377 हटाकर सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया. लेकिन बाहर हालात जस के तस हैं. समलैंगिकों के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए.
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि नालसा और नवतेज जौहर मामलों में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सरकार ने कुछ नहीं किया. मुकुल रोहतगी ने अपनी दलील 377 के अपराध के दायरे से बाहर किए जाने के मुद्दे से शुरू की. गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार, निजता का सम्मान और अपनी इच्छा से जीवन जीने की दलीलें दीं.